कुल्लू के जंगलों से गायब हो रहा दियार-कायल

भुंतर –पिछली सदी के दौरान कभी जिला कुल्लू की शान बढ़ाने वाले दियार-कायल सहित विभिन्न प्रकार के जंगल धीरे-धीरे अपना रुतबा खो रहे हैं। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की दिशा में अहम भूमिका निभाने वाले जंगलों पर आरी ऐसे चल रही है कि कुछ स्थानों पर कई प्रजातियां अपने अस्तित्व की जंग खोने की तैयारी मंे हैं। हालांकि सरकार और वन विभाग की पहल से कुछ प्रजातियों का दायरा काफी बढ़ा भी है। प्रदेश के क्लाइमेट चेंज सेंटर द्वारा जारी एक रिपोर्ट की मानें तो जिला में 1500 से 2500 की उंचाई वाले इलाकों में दियार-कायल जैसी प्रजातियों को ज्यादा खतरा पैदा हुआ है। स्टेट सेंटर फार क्लाई चेंज के वैज्ञानिकों डा. एसएस रंधावा, कुणाल सत्यार्थी व अन्य वैज्ञानिकों द्वारा वन विभाग के आंकड़ों व अन्य एजेंसियों के सर्वेक्षणों के आधार पर तैयार की गई। इस रिपोर्ट में कुल्लू वन सर्किल में पाई जाने वाली पेड़ों की प्रजातियों में हुए 1950 से लेकर 21वीं सदी के आरंभ तक हुए सामयिक बदलाव को सामने रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार एक प्रजाति की अधिकता वाले क्षेत्रों के तहत पार्वती वन मंडल में दियार के पेड़ों की संख्या 89 से बढ़कर 92 प्रति हेक्टेयर पहुंची है तो कायल 67 से 43 पेड़ प्रति हेक्टेयर, रई-तोष 27 से 15 हो गए हैं। हालांकि चीड़ के पेड़ों की घनत्व संख्या 62 से 86 और चौड़ी पत्ती 83 से 100 तक पहुंच गए हैं। कुल्लू मंडल में इसी अवधि के दौरान दियार के पेड़ों की घनत्व संख्या 101 से 32 हो गई है। हालांकि यहां कायल के पेड़ों की संख्या 40 से बढ़कर 59 प्रति हेक्टेयर, रई 44 से 46 और चौड़ी पत्ती 44 से 46 हुई है। सराज वन मंडल में 1986 से 2013 की अवधि के दौरान दियार के पेड़ों का घनत्व 159 से घटकर 98 रह गया है तो कायल का 140 से 58, चीड़ का 89 से 30 जबकि चौड़ी पती का घनत्व 327 से 90 के स्तर पर जा पहुंचा है। हालांकि रई के पेड़ों का घनत्व 159 से 186 और तोष का 236 से 301 हुआ है। पार्वती वन मंडल में 1500 से 2000 की ऊंचाई वाले इलाकों में कायल सबसे ज्यादा 40 फीसदी कम हुई है। सरकार ने हाल ही के सालों में व्यापक स्तर पर पौधारोपण अभियान चलाकर वन आवरण को बढ़ाने की दिशा में पहल आरंभ की है।