गीता रहस्य

By: Jan 18th, 2020 12:16 am

स्वामी रामस्वरूप

ऋग्वेद मंत्र 1/8/2,3 का भाव है कि जीव विद्या प्राप्त करके अपने शरीर, बुद्धि बल को बढ़ाएं, युद्ध सामग्री इत्यादि प्राप्त करके देश की रक्षा से प्राणियों के लिए सुख उत्पन्न करें। इस विज्ञान विद्या में प्रवीण मनुष्य देव कहलाते हैं और जो ऐसे देवों की संगत में रहकर इनका आदर, मान-सम्मान, पूजा करता है वह भी उन जैसी विद्या को प्राप्त करके देव बन जाता है…

गतांक से आगे…

श्लोक 9/25 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि हे अर्जुन! विद्वानों की भक्ति करने वाले भक्तगण विद्वानों को प्राप्त होते हैं,पितरों की भक्ति करने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं,भूतों की पूजा करने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरी पूजा करने वाले भक्त मुझको प्राप्त होते हैं।

भावः यजुर्वेद मंत्र 1/5 में ‘व्रतम चरिष्यामि’ का अर्थ है कि हे परमेश्वर ! मैं सत्य भाषण,सत्य आचरण, सत्य मानना रूप जो व्रत है उसका ‘चरिष्यामि’ पालन करूंगा। (देवव्रताः) पुरुष ज्ञानवान,सत्य बोलना, सत्य सुनना,सत्य मानना और सत्य पर चलना इन गुणों को जीवन में धारण करते हैं।  वेदों में दो अर्थ हैं पारमार्थिक एवं व्यावहारिक इसे यूं भी कह सकते हैं कि भौतिक उन्नति के लिए और साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति कि लिए प्रयोग किए शब्द। ऋग्वेद मंत्र 1/11/1 एवं 2 के अध्ययन से पता चलता है कि देव शब्द के जो भौतिक अर्थ हैं, वह हैं मनुष्य की ग्यारह इंद्रियां,भौतिक विद्या जैसे अग्नि/विद्युत आदि के ज्ञान एवं प्रयोग से बड़े-बड़े कारखानों का चलना,इसी प्रकार वायु आदि अन्य जड़ देवता,तीसरा दिव्य दृढ़ ऋतुएं एवं अच्छे-अच्छे अन्न,जल,परिवार के सुख आदि भोगने योग्य पदार्थों का भोग। भाव यह है कि यह सब भोग भी स्कूल, कालेजों, इंजीनियरिंग कालेज, मेडिकल विद्यालय में शिक्षा प्राप्त किए हुए विद्वानों को प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद मंत्र 1/8/2,3 का भाव है कि जीव विद्या प्राप्त करके अपने शरीर, बुद्धि बल को बढ़ाएं, युद्ध सामग्री इत्यादि प्राप्त करके देश की रक्षा से प्राणियों के लिए सुख उत्पन्न करें। इस विज्ञान विद्या में प्रवीण मनुष्य देव कहलाते हैं और जो ऐसे देवों की संगत में रहकर इनका आदर, मान-सम्मान, पूजा करता है, वह भी उन जैसी विद्या को प्राप्त करके देव बन जाता है। इन्हीं वेद मंत्रों के भावों को यहां श्रीकृष्ण महाराज ने (देवव्रताःदेवान यांति) शब्दों से प्रकट किया है अर्थात समझाया है कि हे अर्जुन! ऐसे भौतिक विद्या के ज्ञाता, विद्वानों की सेवा करके, उनसे ज्ञान लेने वाले मनुष्य उन जैसे विद्वान बन जाते हैं।                  – क्रमशः

 


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