गेहूं-जौ पर मौसम की मार

By: Jan 23rd, 2020 12:20 am

स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में खुलासा, खरीफ  फसलों पर जलवायु परिवर्तन का असर कम

भुंतर – जलवायु परिवर्तन का भूत कुल्लू जिला की गेंहू और जौ की पारंपरिक फसलों को निगल गया है। सर्दियों में मौसम के साल-दर-साल बदलते मिजाज की भेंट यहां की खेतीबाड़ी भी चढ़ गई है। इसका खुलासा राज्य के मौसम वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण में भी हुआ है। इनके अनुसार रबी फसल के दौरान मौसम बदलावों का असर सबसे ज्यादा फसलों के उत्पादन और क्षेत्र पर पड़़ा है। स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट की मानें तो फसलों चक्र में लगातार हो रहे बदलाव और नकदी फसलों के प्रति किसानों के रुझान का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी है। इस रिपोर्ट के अनुसार रबी फसल के दौरान जिला के औसत न्यूनतम तापमान में 0.02 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। वर्ष 1971 से 2016 की अवधि में रबी फसलों के दौरान वर्षा दिनों की संख्या में भी कमी पाई गई है और इस दौरान का औसत अधिकतम तापमान बढ़ा है। तापमान में बढ़ोतरी के चलते बारिश और बर्फबारी पर पड़े प्रभावों ने किसानों की फसलों को भी चपेट में लिया है। बता दें कि कुल्लू में लगतार गेहूं, जौ, धान, मक्की सहित अन्य पारंपरिक फसलों का क्षेत्र सिमटता जा रहा है और किसान नकदी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं। इस बदलाव से हालांकि एक ओर किसान अपनी जेबें तो भर रहे हैं, लेकिन साथ ही किसानों को खाद्य फसलों के न उगने की चिंता भी सता रही है। वैज्ञानिकों की मानें तो रबी की फसलों में बदलाव का कारण मौसमी बदलाव है, लेकिन खरीफ की फसलों पर जलवायु परिवर्तन का असर न के बराबर ही दिखा है। कृषि विभाग के उपनिदेशक राजपाल शर्मा की मानें तो इस बार भी गेहूं और जौ की फसल की कम बिजाई हुई है। बजौरा में स्थित जिला कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डा. केसी शर्मा कहते हैं कि अक्तूबर से मार्च तक के मौसम में पिछले दशक के दौरान अहम बदलाव देखने को मिले और इन बदलावों ने किसानों को बड़े स्तर पर नई फसलों को लगाने के लिए प्रेरित किया।


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