घर में आयुर्वेद

By: Jan 4th, 2020 12:20 am

यह झाड़ीनुमा पौधा होता है, जो की वर्षाऋतु के साथ अंकुरित होता है और हर जगह पाया जाता है। इसका बोटेनिकल नाम एसाईरेंथ्स एस्पेरा है। इसकी जड़, तना, पत्ते, फूल व फल पंचांग चिकित्सा में प्रयोग होते हैं…

अपामार्ग या पुठकंडा के गुणः

यह झाड़ीनुमा पौधा होता है जो कि वर्षाऋतु के साथ अंकुरित होता है और हर जगह पाया जाता है। इसका बोटेनिकल नाम एसाईरेंथ्स एस्पेरा है। इसकी जड़, तना, पत्ते, फूल व फल पंचांग चिकित्सा में प्रयोग होते हैं।

गुर्दे की पथरी में 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में पीस कर  इसका घोल पिलाते हैं।

बवासीर में छह पत्ते, पांच काली मिर्च के साथ पीस कर देना चाहिए।

इसके बीज का चूर्ण मिसरी के साथ 5 ग्राम सुबह- शाम जल के साथ सेवन करें।

जड़ का चूर्ण एक चम्मच सुबह-शाम।

गर्दन जकड़न में पत्तियों का रस गर्दन में मलना चाहिए।

खांसी में पतियों की राख चीनी मिलाकर एक चम्मच सुबह- शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।

कुकुर खांसी में पंचांग भस्म मधु के साथ देना चाहिए।

बिच्छु के काटे पर इसकी जड़ को पीस कर लगाना फायदेमंद  है।

पीलिया व लिवर विकार में पंचांग का काढ़ा देना चाहिए।

खारिश में पत्ती व बीज चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम देना तथा पंचांग

का काढ़ा पानी में डालकर नहाना चाहिए।

चोट में 2-3 पत्तों का रस खून रोकता है। काढ़े से घाव को धोना चाहिए।

जोड़ों के दर्द में इसके पत्ते बांधना व लेप लगाना चाहिए।

जड़ का काढ़ा कमर व जोड़ों के दर्द में लाभप्रद है।

इसकी जड़ से दातुन करने से दांतों की जडें़ मजबूत होती हैं व दांत मोतियों के जैसे चमकते है। इसलिए इसे बज्र दंती भी कहते हैं।

दांतों का हिलना, मसूड़ों के रोगों व मुखपाक में पंचांग के काढ़े के गरारे करने चाहिए।

ज्यादा भूख में इसके बीज मिसरी में मिलाकर 5 ग्राम सुबह शाम देना चाहिए।

सामान्य मात्राः रस 15 बूंद, जड़ चूर्ण 3 ग्राम, बीज 3 ग्राम।


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