चौकीदार से सीधे छत्रपति शिवाजी

By: Jan 28th, 2020 12:05 am

रविंदर सिंह मोदी

नांदेड़

भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के सभी तत्त्व समेटने में लगी हुई है। हिंदुत्व से जुड़े इतिहास, प्रसंग और व्यक्तित्व को किस तरह भुनाया जाए उसके लिए हर तरह से जददेजहद की जा रही है। कुछ सालों में महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल को भाजपा ने अपने साथ कर लिया। अब छत्रपति शिवाजी महाराज की छवि भी उन्हें अपनी पार्टी के प्रत्तीक के रूप में चाहिए। तभी तो 40 साल पुरानी भाजपा सारे आदर्श व्यक्तियों, महापुरुषों की कतार का जमघट लगाने की जुगाड़ कर रही हैं। ऐसे समय में यदि चायवाला की प्रतिमा से उठकर देश के प्रधानमंत्री बनें नरेंद्र मोदी बाद में चौकीदार की भूमिका अपनाते हैं। अब चौकीदार की उपाधि से ऊपर उठकर वह स्वयं को महाराजा ‘छत्रपति’ के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, तब मन में यह भी प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि छत्रपति के बाद भगवान से भी उनकी तुलना संभव है? भविष्य में यदि ऐसी दास्तां लिखी जाए कि आज के भगवान श्री श्री….. तो भारतीय जनमानस को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि भाजपा अब हिंदुत्व को किसी के पास अकेला छोड़ने को तैयार ही नहीं है। शिवसेना ने बड़ी मशक्कत के साथ वगत 60 वर्षों से छत्रपति शिवाजी महाराज को अपनी पार्टी की बुनियाद बनाएं रखा था, लेकिन हालिया प्रकाशित हिंदी पुस्तक ‘आज के शिवाजीः नरेंद्र मोदी’ द्वारा भाजपा ने सीधे शिवसेना पार्टी की बुनियाद को कमजोर करने का पैंतरा ही खेल लिया है। भले ही लेखक ने अपना मंतव्य पीछे लेने की पेशकश की है, लेकिन जब यह बात निकल ही गई है तो निश्चित है कि दूर तक भी चलती चलीं जाएगी। यह विषय अब महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की आपसी राजनीतिक रंजिश को और हवा देगा इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है। हालिया विमोचित पुस्तक ‘आज के शिवाजीः नरेंद्र मोदी’ के लेखक का नाम भी दिलचस्प है ‘जय भगवान गोयल’ उनकी तो भाजपा जय-जय कर रही हैं। दिल्ली में गत रविवार को इस पुस्तक का विमोचन संपन्न क्या हुआ, महाराष्ट्र की राजनीति और समाज में जैसे एक भूचाल सा आ गया। महाराष्ट्र में जिस छत्रपति शिवाजी महाराज को आराध्य देव के रूप में उल्लेखित किया जाता है, उनकी तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के साथ? जनता में रोष सा छा गया। हर तरफ  से विरोध और निषेध की ध्वनियां गूंजने लगीं। तब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लीपापोती करते हुए ये बयान जारी कर दिया कि लेखक जय भगवान गोयल ने माफी मांग ली है, लेकिन कहीं पर भी जय भगवान गोयल का व्यक्तिगत बयान जारी नहीं हुआ। पुस्तक के संदर्भ में पहली राय तो यही निकलकर सामने आ रही है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को कोई ठोस चुनावी मुद्दा चाहिए था कि, जिससे दिल्ली के मतदाताओं का मन नागरिकता कानून के मुद्दे से भटके और किसी नए विषय को लेकर लोगों में बहस छिड़ जाए।


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