जीवन का ध्येय

By: Jan 18th, 2020 12:20 am

श्रीश्री रवि शंकर

यदि कोई व्यक्ति दुष्भावना से झूठ बोलता है, तो उसका असर उसके कार्य पर भी पड़ता है। उसके कार्य में भी दोष आ जाएगा। तुम समझ रहे हो न? इसे ऐसे समझें कि कोई व्यक्ति गलती करता है और तुम उसकी गलती के कारण क्रोधित हो उठते हो, तो तुम भी गलती करने वाले व्यक्ति की श्रेणी में आ गए। तुम उससे कोई बेहतर नहीं रहे…

समस्त संसार प्रेम से बना है। प्रत्येक व्यक्ति भी प्रेम से बना है। तुमने सुना होगा, सभी कुछ परमात्मा है, सभी कुछ प्रेम है। यदि ऐसा ही है, तो फिर जीवन का ध्येय क्या है? सभी कुछ परमात्मा है, ऐसा मानने से हम पहुंचते कहां हैं? कहते हैं कि जीवन संपूर्णता की ओर बह रहा है, क्योंकि हम सब पूर्ण होना चाहते हैं। तो क्या जीवन का अस्तित्त्व प्रेम स्वरूप ही है, फिर भी प्रकृति के संपर्क  से इस प्रेम में छः प्रकार की विकृतियां हैं और वे हैं, क्रोध लोभ, ईर्ष्या, घमंड और विभ्रम। पशुओं में भी ये छः विकृतियां पाई जाती हैं, परंतु उनके पास इन विकृतियों से पार जाने का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि वे प्रकृति के वश में हैं। चैतन्य आत्मा शुद्ध प्रेम है। पदार्थ विकृति है। परंतु मनुष्य में विवेक रूपी गुण भी विद्यमान है ताकि व्यक्ति इन विकृतियों के पार पूर्ण एवं शुद्ध प्रेम का अनुभव कर सके। साधना और ध्यान का यही लक्ष्य है। साधना के द्वारा मनुष्य प्रकृति में विद्यमान विकारों से दूर हो अपनी शुद्धता व अपनी पूर्णता में स्थापित हो सकता है। परिपूर्णता शुद्धता भी तीन प्रकार की है। एक है कृत्य में, दूसरी वाणी में शुद्धता और तीसरी भावना में परिपूर्णता। ये तीनों प्रकार की परिपूर्णताएं एक ही व्यक्ति में होनी अत्यंत दुर्लभ हैं। यह असंभव तो नहीं परंतु  दुर्लभ अवश्य हैं। कुछ लोग कार्यकुशल तो बहुत होते हैं, परंतु भीतर से क्रोध और क्लेश के भाव से भरे हुए होते हैं। यद्यपि वे बाह्य कार्य तो बहुत बढि़या करते हैं, परंतु वे वाणी और भावना के स्तर पर संपूर्ण नहीं होते। कुछ लोग बाहर से झूठ आदि भी बोलते हों या उनकी वाणी इतनी शुद्ध न भी हो, परंतु भीतर के भाव सुंदर होते हैं। जैसे एक डाक्टर मरीज को कह देता है कि तुम जल्दी ठीक हो जाओगे, यद्यपि भीतर से वह जानता है कि मरीज ठीक नहीं भी हो सकता, परंतु वह मरीज को निगाह में रखकर ऐसा बोलता है। भीतर उसकी भावना शुद्ध है, चाहे बोलने में वह थोड़ा झूठ भी कह रहा है। यह कभी-कभी हम बच्चों से कह देते हैं कि उनके छोटे भाई या बहन तो कोई पक्षी आकाश से आकर उनकी झोली में डाल गया है। यह कथन सत्य नहीं है, परंतु बच्चे अभी इस सत्य को समझ नहीं पाएंगे, इसलिए उनसे ऐसा कह देते हैं। वाणी तो अशुद्ध है, परंतु पीछे छिपा भाव शुद्ध और पूर्ण है। यदि कोई व्यक्ति दुष्भावना से झूठ बोलता है, तो उसका असर उसके कार्य पर भी पड़ता है। उसके कार्य में भी दोष आ जाएगा। तुम समझ रहे हो न? इसे ऐसे समझें कि कोई व्यक्ति गलती करता है और तुम उसकी गलती के कारण क्रोधित हो उठते हो, तो तुम भी गलती करने वाले व्यक्ति की श्रेणी में आ गए। तुम उससे कोई बेहतर नहीं रहे। क्योंकि उसके अपूर्ण कृत्य के कारण तुम्हारी भावनाएं भी अशुद्ध और त्रुटिपूर्ण हो गईं और तुम भी अपूर्ण हो गए।


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