जैविक पर भारी जीरो बजट खेती

By: Jan 19th, 2020 12:10 am

देश के पहले केंद्र पालमपुर में रिसर्च से खुलासा

प्राकृतिक खेती हर लिहाज से फायदेमंद है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में खेती की विभिन्न तकनीकों पर हुए शोध के दौरान यह खुलासा हुआ है। समूचे देश में प्राकृतिक खेती पर शोध का एकमात्र केंद्र पालमपुर में स्थापित किया गया है,जहां प्रारंभिक शोध के रिजल्ट जीरो बजट खेती के पक्ष में आए हैं। दो साल के शोध में पता चला है कि एक तो जैविक कृषि में प्रयोग होने वाले संघटक एवं विधियां काफी जटिल व महंगी हैं, दूसरे इसमें पौधों की मांग के अनुरूप पोषक तत्वों की मौजूदगी कम पाई जाती है।  शोध में जीरो बजट से पैदा मूली जैविक खेती के मुकाबले 31 प्रतिशत अधिक हुई है। इसी तरह बंदगोभी, फूलगोभी, लहसुन, मसूर, गेहूं, चना, गोभी सरसों तथा तिलहन के रिजल्ट भी शानदार रहे हैं।  अपनी माटी के लिए हमारे सहयोगी जयदीप रिहान को कुलपति अशोक सरयाल ने बताया कि जीरो बजट खेती के बेहतर रिजल्ट सामने आए हैं, वहीं वैज्ञानिक डा. रामेश्वर ने कहा कि खेती की तकनीकों पर शोध में कई रोचक पहलू सामने आए हैं, जिनका आगामी समय में किसानों को फायदा होगा। इसी तरह एक अन्य वैज्ञानिक डा. गोपाल कतना का कहना था कि यह शोध किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। तो किसान भाइयों कैसी लगी आपको यह जानकारी हमें जरूर बताएं। जल्द मिलेंगे नई स्टोरी के साथ

रिपोर्ट जयदीप रिहान, पालमपुर

जीरो बजट खेती से जुड़े 30 हजार

प्रदेश में कृषि विभाग ने आंकड़ा छूते ही तय किया नया लक्ष्य, मार्च तक टारगेट पूरा करने की चुनौती, जिला की हर सब्जी मंडी में खुलेगा प्राकृतिक खेती का एक आउटलेट…

हिमाचल में किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए हर जतन किया जा रहा है। कृषि विभाग ने नया दावा किया है कि अब तक 30 हजार किसानों को जीरो बजट खेती से जोड़ लिया गया है। विभाग का यह भी दावा है कि जीरो बजट खेती का प्रशिक्षण पाने वाले किसानों का आंकड़ा 50 हजार को छू रहा है, ऐसे में विभाग ने मार्च माह तक 50 हजार किसानों को जीरो बजट खेती से जोड़ने का टारगेट तय किया है।  इससे पहले 30 हजार किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे पार कर दिया गया है। 40 से 45 हजार के करीब किसान अब तक प्रशिक्षण हासिल कर चुके  हैं, जिसके बाद लक्ष्य को बढ़ाकर 50 हजार कर दिया गया है। बताया जाता है कि मार्च महीने तक यह लक्ष्य पूरा हो जाएगा जिसके लिए रणनीति बना ली गई है। इसके साथ कृषि महकमा यह तय कर रहा है कि प्राकृतिक खेती से होने वाले उत्पादों की बिक्री के लिए हरेक जिला की बड़ी सब्जी मंडी में एक आउटलेट खोला जाए। अभी जिलाधीश कार्यालयों में ऐसे आउटलेट खोले जा रहे हैं। अब देखना यह है कि प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहे यह कदम कहां तक चलते हैं।

शकील कुरैशी, शिमला

किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण

दिया जा रहा है,जिसका पुराना लक्ष्य हासिल हो चुका है। इस लक्ष्य को बढ़ाकर 50 हजार किया गया है। मार्केटिंग की पूरी व्यवस्था करने की तैयारी है

– ओंकार शर्मा, प्रधान सचिव कृषि

रिटायर्ड डिप्टी रेंजर से सीखें देवदार उगाने का मंत्र

भोटा के साथ लगती पंचायत सौर के गांव मनसूई छोड़व में रिटायर डिप्टी रेंजर किशोरी लाल शर्मा ने देवदार के पेड़ उगा डाले हैं।  किशोरी लाल का कहना है कि उन्होंने देवदार के पौधे 2008 में लगाए थे। उन्होंने बताया कि उनका सपना था कि वह अपने घर के पास देवदार का बागीचा लगाएंगे। वहीं देवदार के पेड़ों की ऊंचाई लगभग 20 से 25 फीट तक है। उल्लेखनीय है कि देवदार के पेड़ शिमला-कुल्लू व मंडी में पाए जाते हैं। वहीं अब मनसूई छोड़व में रिटायर डिप्टी रेंजर ने देवदार के पेड़ उगाकर सभी को हैरान कर दिया। उनका कहना है कि उन्होंने देवदार के पेड़ पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने के लिए उगाए हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ों को इतना बड़ा करने में बहुत सालों तक मेहनत की है। उनका कहना है कि जहां एक तरफ प्रकृति से मनुष्य लगातार पेड़ों का दोहन कर रहा है वहीं किशोरी लाल ने पर्यावरण के प्रति एक बहुत अच्छी मिसाल पेश की है।

निजी संवाददाता, भोटा

प्याज की रेट लिस्ट कितनी जरूरी

सोलन में जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक विभाग ने जाबली व धर्मपुर में दुकानों का औचक निरीक्षण किया है। इस दौरान विभाग ने दुकानों में जाकर प्याज के दाम चैक किए हैं। बताया जा रहा है कि दुकानों द्वारा प्याज को उच्च दामों में बेचे जाने की शिकायत के बाद यह निरीक्षण विभाग द्वारा किया है। यह निरीक्षण खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले धर्मपुर निरीक्षक धर्मेश शर्मा द्वारा किया गया है। निरीक्षण के दौरान धर्मपुर और जाबली में 15 दुकानें चैक की गई हैं। निरीक्षक धर्मेश शर्मा ने बताया कि प्याज की अधिक मूल्य वसूले जाने के बारे में लोगों ने शिकायत की थी। जिस शिकायत पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करते हुए दुकानों का निरीक्षण किया गया है। उन्होंने सभी थोक एवं परचून व्यापारियों से आग्रह किया है कि वह भविष्य में भी निर्धारित थोक व परचून लाभांश से ज्यादा लाभांश न लें। सब्जी व किराना दुकानों में प्याज की मूल्य सूची लगाने व पोलिथीन का प्रयोग न करने बारे कहा गया है।

 आदित्य सोफत, सोलन

गोभी-टमाटर के बाद अब गेहूं भी साफ किसान खेती छोड़ने को मजबूर

हिमाचल की 2300 से ज्यादा पंचायतों में लावारिस पशुओं ने आतंक मचा रखा है। कड़ी मेहनत से तैयार फसल को बर्बाद होते देखकर कई किसान खेती को छोड़ चुके हैं। कई ऐसे हैं,जो हिम्मत दिखाकर खेती तो कर रहे हैं, लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब वे भी इस व्यवसाय को छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे। यूं तो समूचे प्रदेश में लावारिस पशुओं ने उत्पात मचा रखा है, लेकिन कांगड़ा, चंबा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर व मंडी में हालत बेहद खराब हैं। किसानों का कहना है कि पहले आवारा पशु नकदी फसलों गोभी, मटर, टमाटर को चट कर रहे थे, लेकिन अब तो खेतों में फू ट रही गेहूं को भी नहीं छोड़ रहे। अपनी माटी टीम ने कांगड़ा जिला के देहरा हलके का दौरा किया। यहां ढलियारा पंचायत के किसानों ने बताया कि उनके खेत पूरी तरह उजड़ चुके हैं। फिलहाल ऐसी कहानी सिर्फ देहरा की ही नहीं है,बल्कि पूरे प्रदेश में किसानों को तंग होना पड़ रहा है। किसानों को उम्मीद है कि पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर गो सेंक्चुरी भले ही देर से खुलवाएं, लेकिन पहले से चल रहे गोसदनों की हालत जरूर सुधार देंगे।

रिपोर्ट अनिल डोगरा, देहरा गोपीपुर

मौसम का हाल

निचले क्षेत्रों में जहां प्याज की तैयार पनीरी रोपित न की गई  हो वहां 15 गुणा 10 सेंटीमीटर फासलें पर रोपित करें। मूली तथा शलगम की बीज वाली फसल में नत्रजन 10 किलोग्राम/बीघा डालें।

बागबानी संबंधित कार्य

बागबानों को सलाह दी जाती है कि क्लोनल रुटस्टॉक एम-7-9,एमएम-111, एमएम-106 पर कलमबंदी किए हुए श्रेष्ट प्रजातियों के  सेब के  फल पौधों पर फल दो से चार वर्ष  के अंतराल में आता है। इसलिए जहां पानी की व्यवस्था सही है वहां पर इन्हें ही रोपित करें। एल्स्टोंमीरिया के  पौधों को स्टाकिंग की आवश्यकता पड़ती है। सहारा देने के  लिए प्लास्टिक की नेट धागों व रस्सियों का प्रयोग किया जाता है। जालों का आकार 20 गुणा 20 सेंटीमीटर तथा जमीन से क्रमश 20, 30 व 50 सेंटीमीटर ऊंचाई  तक लगाया जाता है।

खुंब उल्पादन संबंधित कार्यः

बटन मशरूम की फसल आने पर थैलों के  ऊपर हल्के  पानी से छिड़काव करें। कमरों में नमी बनाए रखने के लिए दीवारों  व फर्श पर भी पानी का छिड़काव करें। कमरे का तापमान 14 डिग्री सेल्सीयस से नीचे आने पर हीटर जला कर कमरे का तापमान बनाए रखें। कमरों में दिन में 2-3 बार शुद्ध हवा आने दें।           -मोहिनी सूद, नौणी (सोलन)

 

आंवला-हल्दी और लहसुन का दीवाना हुआ हिमाचल, अचार की भी खूब डिमांड

हिमाचल में अंग्रेजी दवाओं के साइड इफेक्ट से खौफजदा लोग प्राकृतिक बूटियों और फलों को अपना रहे हैं। प्रदेश में ऐसे लोगों का एक बड़ा हिस्सा है,जो आंवला,लहसुन, हल्दी, हरड़ आदि की तलाश करता हुआ नजर आता है। लोगों के लगातार नेचुरल बूटियों की तरफ बढ़ रहे रुझान की एक झलक मंडी जिला मुख्यालय में देखने को मिली। मंडी में इंदिरा मार्केट में चंद रोज पहले खादी मेला लगा था। मेले में खास बात यह रही कि ज्यादातर लोगों ने  आंवले और लहसुन का अचार खरीदा, वहीं , जामुन और, ऐलू की चटनी का तो पता भी न चला कि कब बिक गया। खादी मेले में यह बात भी देखने में आई कि कई ग्राहक ढयूं और बांस का अचार भी खोजते रहे। खादी ग्रामोद्योग संस्थान नगरोटा के दुकानदार प्रकाश चंद ठाकुर ने कहा कि मेले में उन्होंने डेढ़ लाख से ज्यादा के उत्पाद बेचे हैं। इससे  पहले चंबा और  कुल्लू लगे इन मेलों में जबरदस्त रिस्पॉंस मिला था। गौर रहे कि हिमालय में 3500 किस्म की हर्ब्ज और फूल पाए जाते हैं,जिनमें से 800 का इस्तेमाल दवाओं में होता है। तो अगर आपके खेत या बागीचे में हर्ब्ज या औषधीय पौधे हैं,तो उन्हें यूं न गंवाकर कामर्शियल यूज करें।

-रिपोर्टः मंडी

सेब का रूट स्टाक बड़े काम  का

क्या है रूट स्टॉक

रूट स्टॉक दो प्रकार का होता है। टिशू कल्चर से तैयार रूट स्टॉक और क्लोनल रूट स्टॉक। सीडलिंग पर पौधा बीजों से तैयार होता है जबकि क्लोनल जड़ों से तैयार होता है। इससे तीन तरह के पौधे तैयार होते हैं जिनमें डवारफ, सेमी डवारफ और बिगरस रूट स्टॉक शामिल हैं। जबकि टिशू कल्चर विधि में रूट स्टॉक पौधों के विभिन्न भागों के उतकों से तैयार किया जाता है…

बदलाव के दौर से गुजर रही हिमाचल की सेब बागबानी में बागबानों को कई स्मार्ट फैसले लेने होंगे। ऐसा करने से आने वाले समय में उन्हें काफी फायदा होगा। एक्सपर्ट का मानना है कि इसके लिए क्लोनल रूट स्टाक या टिशु कल्चर रूट स्टॉक का चयन हो सकता है। इससे रि-प्लांटेशन में आने वाली दिक्कतें तो कम होंगी ही, साथ ही बागबान अपनी सुविधानुसार पौधों का आकार भी तय कर पाएंगे। इसके अतिरिक्त क्वालिटी प्रोडक्शन भी संभव हो पाएगा और लेबर कॉस्ट भी घटेगी। जिन देशों में काफी समय से रूट स्टॉक पर बागबानी हो रही है, वहां बागीचे सीडलिंग के मुकाबले 8 से 10 गुना अधिक पैदावार दे रहे हैं।  सेब के उत्पादन में चीन ने भी इसी राह पर चलकर कामयाबी की इबारत लिखी है, जबकि दो दशक पहले उसकी स्थिति भी संतोषजनक नहीं थी। यूरोप में रूट स्टॉक पर बागबानी की शुरूआत के बाद प्रति एकड़ पौधों की संख्या पांच हजार का इजाफा हुआ है।  बागबानी विभाग कुल्लू के उपनिदेशक राकेश गोयल ने बताया कि रूट स्ॅटाक प्रजाति के पौधे का चयन बागबानी विशेषज्ञों की सहमति से करें कि किस क्षेत्र के लिए कौन का रूट स्टॉक सही है और कौन नहीं। दूसरी ओर सेब उत्पादन में अग्रणी इटली में सघन खेती तेजी से बढ़ रही है। वहां ज्यादातर बागीचे एम-9 रूट स्टॉक पर लगाए जा रहें हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा प्लांटेशन हो सके। आमतौर पर सीडलिंग पर पौधे 18 से 25 फुट पर लगाए जाते हैं। बागबानी विशेषज्ञों का कहना है कि एम-09 में पौधे से पौधे की दूरी 4 से 8 फुट, एम-26 की 8 से 12 फुट, एम-07 की 10 से 14 फुट, एमएम-106 की 12 से 16 फुट और एमएम-111 की दूरी 14 से 18 फुट रखनी चाहिए। रूट स्टॉक सघन बागबानी पौधारोपण के लिए उपयुक्त है।  प्रदेश में सेब के अलावा नाशपाती और चैरी आदि के रूट स्टॉक भी उपलब्ध हैं। 9 हजार फुट से ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों के बड रूट स्टॉक हैं। में लगातार गिरावट आ रही है।                    निजी संवाददाता, पतलीकूहल

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