डीए रत्न धन पायो

By: Jan 29th, 2020 12:05 am

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com

कल फिर हफ्ते बाद बिल बाबू के दफ्तर गया तो हरदम जला चेहरा लिए कुर्सी पर बैठे बिल बाबू उस वक्त बेहद प्रसन्न दिखे तो जान में जान आई। लगाए ज्यों वसंत से पहले उनके चेहरे पर वसंत आ गया हो। पर बाद में पता चला कि वे ही क्या, उस दिन तो गेट से लेकर महकमे के स्टोर तक में घुसा छिपा हर कोई प्रसन्न था। डेली वेजर से लेकर परमानेंट तक सब कोई  ‘बिल बाबू राम राम! बड़े प्रसन्न लग रहे हो आज? क्या हमारे लोकप्रिय बिल बाबू का आज जन्मदिन है? हे बिल बाबू! तुम इस महकमे में रहो हजार साल और साल के दिन हो दस हजार। भगवान आपके चेहरे पर पतझड़ में भी ऐसी ही हंसी बनाए रखे। वारि जाऊं इस अमर हंसी पर। किसी की नजर न लगे बिल बाबू की इस छमाही हंसी कोए’ मैंने शुद्ध गाय का देशी मक्खन लगाते कहा तो ये मुस्कराते बोले, ‘नहीं यार! आज बात ही ऐसी है कि….’ आखिर बात क्या है बिल बाबू जो…. जरूर हमसे कुछ छुपा रहे हो?’ कह मैं अपने को उनका खास बनाने में मौका मिलते ही मन से जुट गया। बंदा पता नहीं यहां रह कब तक खून पिएगा, यह सोच कर। ‘यार परेड को मार गोली। घर में सुबह शाम बीवी इतनी परेड करवाकर रखती है कि….’ आगे कहने से वे अचानक रुक गए। शायद उन्हें पता चल गया था कि अगर उन्होंने घर में होने वाले अपने शोषण को जाहिर कर दिया तो हम जैसों के बीच उनकी बनी बनाई साख शेयर बाजार की तरह धड़ाम से वह भी औंधे मुंह गिर सकती है। ‘तो क्या अपाचे हेलिकॉप्टर देखे टीवी पर बिस्तर में घुसे-घुसे? बिल बाबू! मानों या न मानों पर हैं बड़े खतरनाक हेलिकॉप्टर वे भी। मेरा बस चले तो मैं शांति के दिनों में उनकी सहायता दफ्तरों में बरसों से छुपी पड़ी जनता की फाइलों को ढूंढवाने के लिए लूं।’ ’देखो ! तुम चाहे अपाचे का बाप भी फाइल ढूंढवाने के लिए लगा दो। कोई भी अपाचे मेरी रखी फाइल ढूंढ ले तो उसके जूते पानी पीऊं’? कह उन्होंने एक बार फिर अपने खड़े कालर और खड़े किए’ और हां! देखो! तुम हद से आगे जा रहे हो। गण के साथ तंत्र की सबसे बढ़ी मुश्किल यही है कि वह जो उसके साथ जरा सा भी खुल जाए तो वह सीधा सिर पर आ बैठता है, तंत्र के सिर को अपने बाप का पुश्तैनी सिर समझ।’ ‘सॉरी बिल बाबू सॉरी! पर बिल बाबू! प्रसन्नता की कोई बात तो जरूर है जिसे आप जनता से छुपा रहे हो?’ मैं फिर काइयां हुआ। वैसे सरकारी दफ्तरों से जनता को अपना काम निकलवाने के लिए उसे भी पता नहीं कि उसे क्या-क्या होना पड़ता है?’ सरकार ने पांच परसेंट डीए दिया है यार! बस, अपन इसलिए खुश है। सच कहूं! मेरा तो टीवी पर गणतंत्र की परेड देखने को तब तक ही मन बना रहा जब तक सरकार ने डीए की घोषणा नहीं की। कई बार तो बीच-बीच गुस्सा भी आ रहा था कि सरकार डीए अनाउंस करने में इतनी देरी क्यों कर रही है? पहले दिवाली को इंतजार था कि सरकार डीए अनाउंस करेगी। पर वह दुबकी रही। फिर न्यू ईयर पर इंतजार था कि सरकार अब तो डीए अनाउंस कर ही देगी। पर वह फिर भी होंठ पर होंठ धरे खामोश ही रही। सोचा नहीं था यार कि इस मंदी में भी हमें…. पर सरकार को पता है कि उसे काम किससे करवाना है? सच पूछो तो कर्त्तव्यनिष्ठ से कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मचारी नौकरी लगने के बाद बस दो ही चीजों के लिए नौकरी करता है, एक पे-स्केल के लिए तो दूसरे डीए के लिए…. ये दोनों चीजें मरने के बाद भी एक सरकारी कर्मचारी के लिए कितनी सुखकारी होती हैं, इस बात का पता करना हो तो मरे भोलाराम के जीव से पूछ लो जो पेंशन की फाइल आज तक दबी होने के बाद भी जब-जब डीए की किस्त और नए पे-स्केल मिलते हैं तो अपना मरापन भुला एरियर काउंट करता बिल्लियां उछल लेता है,’ वैसे आपको खबर कर दूं ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आए कि बिल बाबू अपनी जेब से कभी बीड़ी भी नहीं पीते पर….


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