तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Jan 11th, 2020 12:20 am

जिसी मुझे एक निर्जन स्थान पर ले गई। उसने अनेक साधनाएं बतलाईं और स्वयं करके दिखलाईं। उसकी बतलाई सारी पद्धति अत्यंत रहस्यमय और रोमांचक थी। मैं आश्चर्य से देखता रह गया। वास्तव में ‘तिब्बती तंत्र’ विचित्र है। मैं जिसी के साथ वापस आ गया। जिसी के साथ मेरी अंतरंगता देखकर डोलमा को विश्वास हो गया कि मैं अवश्य ही कोई महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूं, अन्यथा जिसी किसी को घास नहीं डालती…

-गतांक से आगे…

‘मान लो, खरा न उतरता तब…?’ ‘तब शास्ता तुमसे मिलते नहीं। वापस कर दिए जाते। भगा दिए जाते। जो अपने मन पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वह भला क्या साधना करेगा। शास्ता ने इसी कारण मुझको रख छोड़ा है और इसी काम पर लगाया है। जाने कितने वापस हो गए? मैंने सबकी परीक्षा ली।’ मैं मौन होकर जिसी की ओर देखता रह गया। वह कहे जा रही थी। ‘शास्ता और मुझमें कोई अंतर नहीं है। इस रहस्य को कुछ ही साधक जानते हैं। हां, सांसारिक दृष्टि से हम स्वामी और सेविका हैं। कुशोक! तुम यह रहस्य किसी से न कहना।’ मैं होंठ काटकर जिसी की ओर देखता रह गया। जिसी मुझे एक निर्जन स्थान पर ले गई। उसने अनेक साधनाएं बतलाईं और स्वयं करके दिखलाईं। उसकी बतलाई सारी पद्धति अत्यंत रहस्यमय और रोमांचक थी। मैं आश्चर्य से देखता रह गया। वास्तव में ‘तिब्बती तंत्र’ विचित्र है। मैं जिसी के साथ वापस आ गया। जिसी के साथ मेरी अंतरंगता देखकर डोलमा को विश्वास हो गया कि मैं अवश्य ही कोई महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूं, अन्यथा जिसी किसी को घास नहीं डालती। अगले दिन मैंने चलना चाहा। मेरे मन में शास्ता के दर्शन की प्रबल इच्छा थी। जिसी खिलखिलाकर हंस पड़ी। ‘क्या करोगे शास्ता के दर्शन करके। मुझमें और शास्ता में क्या अंतर है?’ ‘फिर भी…।’ मैंने अनुरोध किया। वह मुस्कराई- ‘मैं ही शास्ता हूं। मैं ही जिसी हूं। मैं ही साध्य हूं। मैं ही साधिका हूं। अर्धनारीश्वर रूप याद है ना?’ मैंने नमन किया और मुझे आशीर्वाद मिला। ‘जाओ कुशोक। ‘ओं मणि पद्में हूं हीं’ मंत्र को सदैव याद रखना। यह तुम्हें अनेक चमत्कारी सिद्धियां देगा। जाओ अपनी तंत्र साधना में सफल हो।’ मैंने अपनी पलकों पर हाथ लगाया। वह नम थीं। सोचा कहां से यह आंसू आ गए। जिसी हंस पड़ी- ‘तंत्र का साधक इतना निर्बल? आने वाले का सुख क्या और जाने वाले का दुख क्या? यहां से जाने के उपरांत हमें कभी याद न करना। देखो। पीले लोग हमारा द्वार खटखटा रहे हैं। अब तुम निकल जाओ।’ यह कहकर जिसी गोम्फा में प्रवेश कर गई और गोम्फा का द्वार हल्की-सी चरमराहट के साथ बंद हो गया। मैंने नमन किया और आशीर्वाद पाकर चला आया। डोलमा ने विदा किया। लंबा सफर तय कर मैं वापस आ गया। बरसों हो गए, पर जिसी और शास्ता को भुला नहीं पाया। सोचता हूं कि क्या वह भुलाने की चीज है? और हां…यह न पूछिए कि साधना की है मैंने अथवा नहीं। ‘ओं मणि पद्में हूं हीं’ का जाप आज भी करता हूं। सच बड़ा सुख मिलता है।              


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