दयालु नन्हीं लड़की की कहानी

By: Jan 25th, 2020 12:20 am

एक समय की बात है कि एक गांव में एक बहुत उदार तथा दयालु नन्हीं लड़की रहती थी। वह थी तो अनाथ, पर ऐसा लगता था जैसे सारा संसार उसी का है। वह सभी से प्रेम करती थी और दूसरे सब भी उसे बहुत चाहते थे। पर दुख की बात यह थी कि उसके पास अपने रहने के लिए कोई घर न था। एक दिन इस बात से वह इतनी दुखी हुई कि उसने किसी को कुछ बताए बिना ही अपना गांव छोड़ दिया। वह जंगल की ओर चल दी। उसके हाथ में बस एक रोटी का टुकड़ा था। वह कुछ ही दूर गई थी कि उसने एक बूढ़े आदमी को सड़क के किनारे बैठे देखा। वह बूढ़ा बीमार-सा लगता था…

इस बार हम पाठकों के लिए परियों की कहानियां लेकर आए हैं। इस सीरीज में हम आपको कई रोचक कहानियां सुनाएंगे।  पहली कड़ी में हम एक कहानी बता रहे हैं जिसका शीर्षक है ‘दयालु नन्हीं लड़की’। तो हम इस कहानी को शुरू कर रहे हैं… एक समय की बात है कि एक गांव में एक बहुत उदार तथा दयालु नन्हीं लड़की रहती थी। वह थी तो अनाथ, पर ऐसा लगता था जैसे सारा संसार उसी का है। वह सभी से प्रेम करती थी और दूसरे सब भी उसे बहुत चाहते थे। पर दुख की बात यह थी कि उसके पास अपने रहने के लिए कोई घर न था। एक दिन इस बात से वह इतनी दुखी हुई कि उसने किसी को कुछ बताए बिना ही अपना गांव छोड़ दिया। वह जंगल की ओर चल दी। उसके हाथ में बस एक रोटी का टुकड़ा था। वह कुछ ही दूर गई थी कि उसने एक बूढ़े आदमी को सड़क के किनारे बैठे देखा। वह बूढ़ा बीमार-सा लगता था। उसका शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र था।

अपने लिए स्वयं रोटी कमाना उसके बस का काम नहीं था। इसलिए वह भीख मांग रहा था। उसने आशा से लड़की की ओर देखा। ‘ओ प्यारी नन्हीं बिटिया, मैं एक बूढ़ा आदमी हूं। मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। मेहनत-मजदूरी करने की मेरे शरीर में शक्ति नहीं, तीन दिन से मैंने कुछ नहीं खाया है। मुझ पर दया करो और मुझे खाने को दो।’ वह बूढ़ा व्यक्ति गिड़गिड़ाया। नन्हीं लड़की स्वयं भी भूखी थी। उसने रोटी का टुकड़ा इसीलिए बचा रखा था ताकि खूब भूख लगने पर खाए। फिर भी उसे बूढ़े व्यक्ति पर दया आ गई। उसने अपना रोटी का टुकड़ा बूढ़े को खाने के लिए दे दिया। वह बोली, ‘बाबा, मेरे पास बस यह रोटी का टुकड़ा है। इसे ले लो, काश मेरे पास और कुछ होता।’ इतना कहकर और रोटी का टुकड़ा देकर वह आगे चल पड़ी। उसने मुड़कर भी नहीं देखा। वह कुछ ही दूर और आगे गई थी कि उसे एक बालक नजर आया, जो ठंड के मारे कांप रहा था। उदार और दयालु तो वह थी ही, उस ठिठुरते बालक के पास जाकर बोली, ‘भैया, तुम तो ठंड से मर जाओगे। मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकती हूं?’ 


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