पर्यटन की नई अभिव्यक्ति

By: Jan 16th, 2020 12:05 am

इस खिचड़ी ने न केवल परंपरा का निर्वहन किया, अपितु हिमाचल को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सौंप दिया। जाहिर है तत्तापानी में खिचड़ी पका कर हिमाचल पर्यटन ने अपनी क्षमता का सांगोपांग वर्णन किया है। यह मकर संक्रांति पर्व का हिमाचली उल्लास और पर्यटन की नई राहों का उत्साह है, जो नई अभिव्यक्ति की तरह परिभाषित व परिमार्जित है। खान-पान की दृष्टि से विश्वभर में कई रिकार्ड व दस्तावेज सुरक्षित हैं, लेकिन खिचड़ी बनाने की महारत में भारतीय परिदृश्य का मेला तत्तापानी के नाम हो गया। हिमाचल का पर्यटन निगम चाहे तो ऐसे अनेक रिकार्ड अपने नाम कर सकता है और इस सफलता के बाद प्रदेश का प्रदर्शन अपने लिए साहसिक प्रतिस्पर्धा चुन सकता है। पर्यटन की उम्मीदों में ताजगी भरते हुए निगम ने जिस तरह एक परंपरा को विशालता की पराकाष्ठा तक पहुंचाया, ठीक उसी तरह के प्रयोग हिमाचली पकवानों का संरक्षण कर सकते हैं। बेशक पर्यटन निगम के होटलों में हिमाचली खान-पान की विविधता के दर्शन होते हैं, लेकिन पूरे प्रदेश की तस्वीर से कई अन्य पकवानों को चुनना बाकी है। जाहिर तौर पर पिछले कुछ सालों में सैलानियों की रुचि हिमाचली पकवानों की तरफ बढ़ी, तो सिड्डू ने खुद को बेहतरीन साबित किया। इसके लिए विभिन्न व्यापारिक मेलों का योगदान रहा, जहां सिड्डू खाने की परंपरा घर से निकलकर स्वयं ही बाजार बन गई। हिमाचली खान-पान की परंपराओं पर भौगोलिक व मौसम का प्रभाव रहा है और इनकी पौष्टिकता का महत्त्व पहाड़ की कठोर जिंदगी से रू-ब-रू है। ऐसे में पर्वतीय पकवानों की फेहरिस्त में हिमाचल का हर क्षेत्र अपनी रूह का रिश्ता रखता है। चंबा से सिरमौर, भरमौर से किन्नौर या लदरौर से चन्नौर तक फैली संस्कृति ने चूल्हे को हमेशा जिंदा रखा है। इसलिए धाम की संस्कृति में खान-पान की सामूहिक पेशकश हमें सभ्यता की संपूर्णता से जोड़ती है। घाटियां किसी मनमोहक मैन्यू की तरह पन्ना दर पन्ना धाम को अपने हिसाब से लिखती हैं, तो इस विविधता की महक में हमारे तमाम समारोह नाचते हैं। धाम का अभिप्राय केवल पकवान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक तौर पर एक साथ खाने की अनिवार्य परंपरा है। पालमपुर के जैव प्रौद्योगिकी संस्थान ने कांगड़ी धाम की कुछ वस्तुओं को अपने अंदाज में पेश किया, तो ऐसे प्रयोग विस्तृत रूप से हिमाचल का नाम रोशन कर सकते हैं। हिमाचल का एक शाही मैन्यू बन सकता है, जो सारे प्रदेश के क्षेत्रीय खान-पान को एक सूत्र में पिरो दे। पर्यटन निगम की हिमाचली रसोई का रुतबा परवान चढ़ता है, तो प्रदेश अपने फूड फेस्टिवल आयोजनों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति से जोड़ पाएगा। इतना ही नहीं हिमाचल में उपलब्ध तरह-तरह के हर्बल तथा वनों से प्राप्त खाद्य पदार्थों की प्रस्तुति को अगर बाजार के सामने खड़ा किया जाए, तो प्रदेश की थाली भी सैलानियों के अनुभव को बढ़ाने का काम करेगी। निश्चित तौर पर तत्तापानी में खिचड़ी की ब्रांडिंग हुई है और इससे हिमाचली रसोई में नए प्रयोगों को बल मिलेगा। हाई-वे पर्यटन की दृष्टि से हिमाचली पकवानों की फेहरिस्त से सुसज्जित रेस्तरां श्रृंखला स्थापित की जा सकती है, जहां धाम का परिमल सशक्त होगा। दूसरी ओर खिचड़ी का विश्व रिकार्ड ऐसे आइडिया और नवाचार को प्रेरित करते हुए तमाम उत्सवों में कुछ नया करने को प्रोत्साहित करता है, इन्हीं संदर्भों में भले ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कांगड़ा के घृतमंडल को जिला स्तरीय घोषित किया है, लेकिन इस परंपरा को पर्यटन एहसास का व्यापक समर्थन मिलना चाहिए।


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