पुस्तक समीक्षा

By: Jan 26th, 2020 12:05 am

हिमालय की बिल्लियां : एक रोचक पुस्तक

गत दिनों गोपालपुर (कांगड़ा) में एशियाई शेरों के जोड़े को जन-पर्यटकों के लिए रखा गया तो उसी स्थान व समय पर डा. संजय कुमार धीमान (एचएएस) द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन माननीय वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर द्वारा किया गया। यह पुस्तक लेखक की ग्यारहवीं पुस्तक है तथा हिमालय क्षेत्र में रहने वाली अति दुर्लभ व सुंदर बिल्लियों जैसे बर्फानी तेंदुआ, तेंदुआ, लिंक्स, जंगली बिल्ली, तेंदुआ बिल्ली, रस्टी बिल्ली व घरेलु बिल्ली के व्यवहार, रहने के ठिकानों, खान-पान व विलुप्ति के स्तर को दर्शाने वाली एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। लेखक, जो हिमाचल केसरी अवार्ड से भी सम्मानित हैं, ने सच ही लिखा है कि समय रहते हमें इन बिल्लियों के बचाव के लिए कुछ करना चाहिए अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि हमारी आने वाली पीढि़यां उनकी एक झलक के लिए तरस जाएं। इस पुस्तक को 4 भागों में बांटा गया है। पहले भाग में लेखक ने हिमालय क्षेत्र, विशेषकर हिमाचल प्रदेश में रहने वाले जंगली जीव-जंतुओं तथा आम जनमानस के आपसी संबंध का अति  सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है। दूसरा भाग बर्फानी तेंदुआ, सामान्य तेंदुआ, लिंक्स, तेंदुआ बिल्ली, जंगली बिल्ली, रस्टी बिल्ली व घरेलु बिल्ली के व्यवहार व विशेषताओं के ऊपर है। तीसरा भाग मनुष्य व जानवर के लगातार बढ़ते संघर्ष के कारणों की तरफ  वैज्ञानिकों व सरकार का ध्यान आकर्षित करता है। अंतिम व चौथे भाग में यह बताया गया है कि कैसे मनुष्य व जानवर के बीच उत्पन्न हो रहे संघर्ष को दूर किया जा सकता है तथा इस संघर्ष को जानवर व इनसान के बीच अच्छे संबंध में कैसे बदला जा सकता है?

पुस्तक की एक और खूबी है बिल्लियों का मानचित्र! इसमें बिल्लियों के प्रवास व रहने के ठिकानों को दर्शाया गया है जो पाठकों को यह बताएगा कि बिल्लियों की कौन सी प्रजातियां हिमालय क्षेत्र में कहां पाई जाती हैं? कुल मिलाकर ‘कैट्स ऑफ हिमालयाज’ पर्यटकों, बुद्धिजीवी वर्ग, वैज्ञानिकों, फोरेस्ट व वन्यप्राणी विभाग के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। लेखक की अन्य पुस्तकों की भांति यह पुस्तक भी बाजार में उपलब्ध है और पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है। पुस्तक अंग्रेजी में होने के कारण इसकी अपनी सीमाएं भी हैं।                               

                                                  -फीचर डेस्क

किसानों को समर्पित है ‘दृष्टि’ का नया अंक

अशोक जैन द्वारा संपादित लघुकथा को समर्पित अर्द्धवाषिक पत्रिका ‘दृष्टि’ का अंक-7 किसान, मजदूर, किन्नर और अन्य विषयों पर केंद्रित है। हर बार की तरह पत्रिका में संकलित लघुकथाओं पर वरिष्ठ लघुकथाकार डा. अशोक भाटिया की सारगर्भित टिप्पणी पाठक की जिज्ञासा को उत्तरोत्तर बढ़ा रही है। सिमर सदोष की लघुकथाएं अपने कथ्य, शिल्प और प्रस्तुतिकरण के कारण पाठक के दिलोदिमाग पर असर करती हैं। लता अग्रवाल ने वरिष्ठ साहित्यकार मोहन राकेश से साक्षात्कार के माध्यम से विधा की बारीकियों को उजागर करने का सार्थक प्रयास किया है। सविता इंदु गुप्ता ने अपने आलेख ‘समकालीन लघुकथा : विषय महत्त्वपूर्ण अथवा प्रस्तुति’ के बहाने कुछ कालजयी रचनाओं का चुनाव किया है। किसान विषयक लघुकथाएं पढ़कर देश में बुलंद नारा ‘जय जवान जय किसान’ खोखला सा नजर आता है। किसान को अन्नदाता की संज्ञा से नवाजा जाता है, पर उसकी हालत देखकर रोना आता है जिसका जीता-जागता सबूत डा. अशोक भाटिया के लेख से स्पष्ट हो जाता है। कमलेश भारतीय की लघुकथा ‘प्रयास’ और तारा पांचाल की लघुकथा ‘जंग लगे सपने’ में किस तरह फसल के साथ उनके अरमान आसमान को छूने लगते हैं, पर फसल का उचित भाव न मिलने पर वही अरमान कैसे धराशायी हो जाते हैं, इसे दर्शाने का प्रयास किया है। त्रिलोक कुमार ठुकरेला की लघुकथा ‘माटी की गंध’ में किसान और उसके खेत एक-दूसरे के पर्याय बन जाते हैं। माधव नागदा की लघुकथा ‘कर्मयोगी’ में किसान की हाड़तोड़ मेहनत के सामने बड़े-बड़े योगियों का योग फीका पड़ जाता है।

श्याम सुंदर दीप्ति की लघुकथा ‘शीशा’ और सुनीता प्रकाश की ‘आधुनिक कृषक’ लघुकथा किसान को निराशा के अंधकार से निकालकर उनके जीवन में आशा का प्रकाश भर देती हैं। मजदूर विषयक लघुकथाओं के अंतर्गत अशोक जैन की लघुकथा ‘भूख के आर-पार’ और योगेंद्रनाथ शुक्ल की लघुकथा ‘क्षणजीवी’ मजूदरों की मर्मांतक स्थिति को पाठकों के सामने एक सवाल की तरह रखती हैं। कांताराय की लघुकथा ‘श्रम की कीमत’ मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत लगी। इसी तरह कई अन्य कथाकारों ने भी अपनी लेखनी चलाई है। किन्नर विषयक लघुकथाओं में किन्नर के प्रति समाज की नकारात्मक सोच एवं किन्नर का मनोविश्लेषण बहुत गहरे से हुआ है। सुंदर अंक के लिए संपादन मंडल को बधाई। पत्रिका का संपर्क सूत्र है : दृष्टि, अशोक जैन, नेक सदन, 908, सेक्टर-7, एक्सटेंशन, अर्बन स्टेट, गुरुग्राम-122001 (हरियाणा)।

 -राधेश्याम भारतीय, घरौंडा, करनाल


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