पूर्णता में शरीक

By: Jan 28th, 2020 12:05 am

अपनी पूर्णता में शरीक हिमाचल प्रदेश का वर्णन इस बार पूर्ण राज्यत्व से गणतंत्र दिवस में समझना होगा। विकास के पथ पर हिमाचल का विजयपथ अब निजी सफलता की कहानियां बता रहा है, तो देश के सामने प्रदेश की तस्वीर को पेश करते अभिराज राजेंद्र मिश्रा और कंगना रणौत को मिले पद्मश्री पुरस्कारों का वर्णन खूब होगा। संस्कृत के शोध पक्ष में अभिराज राजेंद्र मिश्रा ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय को भी अपने पदक से अलंकृत किया है। दूसरी तरफ अपने फिल्मी सफर की नायिका और हिमाचली बेटी कंगना रणौत ने इसे अपनी शर्तों पर हासिल किया है। यह हिमाचल के नारी सशक्तिकरण तथा युवा मंतव्यों की आजादी का सबब भी है कि एक बेटी अपने सीमित परिवेश के बाहर बुलंदियों के कई बंद ताले खोलती है। फिल्मी संसार की ऐसी इकलौती चरित्र बनती है, जो असमानता के दुर्गों को फतह करते हुए अंततः अपनी पताका को फहराती है। जाहिर है पद्मश्री के फलक पर हिमाचली मेहनत का कारवां इस बार खूबसूरती से चिन्हित है, तो यह हर पूर्णता का संघर्ष और जिद को कायम रखने का मंसूबा भी है। हमारे अपने वजूद की निशानियों में गणतंत्र दिवस परेड के मायने उस वक्त गौरवान्वित होते हैं, जब देव संस्कृति के प्रतीकों में से एक यानी कुल्लू दशहरा से निकली भगवान रघुनाथ की झांकी राजपथ पर पहुंच जाती है। यह वह शोभला हिमाचल है जो माटी के विविध रंगों के साथ परंपराओं को तसदीक करता है। दुर्भाग्यवश अब भौतिकवादी चर्चाओं में संस्कृति से नजदीकियां घट रही हैं और ऐसे ही किसी फरेब में सरकाघाट की घटना में देव परंपरा के नाम पर बूढ़ी औरत को घसीट दिया जाता है। देवताओं की पालकी किसी सड़क पर अटक कर भिखारी बन जाती है या गूरों के समूह देवालयों से बाहर निकलकर तीर्थ यात्रा को उपभोग यात्रा बना लेते हैं। आज भी मिड-डे मील की पांत में जातिगत शिनाख्त हो जाती है, तो समाज के दायरे सिमट जाते हैं। बहरहाल हिमाचल अपने पूर्ण राज्यत्व के पचास सालों के बीच कई क्षेत्रों में दौड़ा है, तो मंजिलों पर मुकाबले में बड़े राज्यों से आगे निकलने की होड़ भी स्पष्ट रही। आंकड़े बताते हैं कि किस तरह ये नन्हे कदम अब बड़े-बड़े डग भरने लगे हैं और सामूहिक चेतना के बीच प्रतिस्पर्धा ने निजी हकीकत के अक्स बड़े कर दिए। इसीलिए सरकार पूर्ण राज्यत्व प्राप्ति के पचास सालों को एक बड़े कैनवास पर दिखाना चाहती है। बाकायदा इक्यावन समारोह मनाकर पूर्णता का विश्वास अर्जित किया जाएगा। हमारा मानना है कि प्रदेश अपनी पूर्णता के लिहाज से इक्यावन के पहाड़े में नए लक्ष्य निर्धारित कर सकता है। मसलन पूर्ण राज्यत्व के सफर पर निकला प्रदेश इक्यावन की गिनती में नए बस स्टैंड, नए पार्किंग स्थल, आदर्श स्कूल एवं कालेज, पर्यटक स्थल, सिंचाई परियोजनाएं, बाजार, आदर्श गांव, सांस्कृतिक व खेल केंद्र, सभागार, पुस्तकालय, पार्क, गार्डन तथा चौराहे इत्यादि चुनकर ऐसी योजनाओं को अंगीकार करके भविष्य के संकल्प बनाए। तमाम घटनाक्रमों की सुर्खियों में रहे हिमाचल का कर्मचारी वर्ग पुनः पूर्ण राज्यत्व दिवस की भेंट स्वरूप पांच फीसदी महंगाई दर से अपने भविष्य का हिसाब करेगा और राज्य की आर्थिक उधेड़बुन में ढाई सौ करोड़ रुपए का व्यय बढ़ जाएगा। तरक्की की गणना में बेशक हिमाचल ने अपनी भौगोलिक वर्जनाओं से काफी हद तक पीछा छुड़ा लिया या हर क्षेत्र में इजाफा किया, फिर भी वित्तीय व्यवस्था में आत्मनिर्भरता के घोर अंधेरों से मुक्ति का पथ चाहिए। राज्य ने अवश्य ही निजी निवेश की दिशा में खुद को पेश किया है, लेकिन इसके साथ-साथ अनुपयोगी व घाटे के सरकारी उपक्रमों का विनिवेश भी लाजिमी तौर पर करना होगा।


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