प्रेस विज्ञप्ति

By: Jan 20th, 2020 12:02 am

कुल राजीव पंत

kulrajeevpant1952@gmail.com

छुट्टियां बिताने आए साहब स्विमिंग पूल के किनारे लगी आराम कुर्सी पर बैठे, रंगीन चश्मा लगाए चारों तरफ  के नजारे का आनंद उठा रहे थे। बीच-बीच में गिलास से ठंडे पेय के सिप भी ले लेते। इसी बीच मोबाइल की घंटी बज उठी। स्क्रीन पर बड़े बाबू पांडे का नाम चमक रहा था। दो दिन छुट्टी आने पर भी इन्हें चैन नहीं, साहब ने मन-ही-मन बड़बड़ाते फोन काट दिया। पर कुछ क्षणों बाद सोचने लगे, चलो मैं ही फोन मिलाता हूं, कहीं कोई आफत न आ गई हो जो पांडे फोन कर रहा है। पर तभी फोन पर पांडे जी फिर प्रकट हो गए। साहब ने फोन मिलाते ही चिढ़ी हुई आवाज में पूछा, हां, कहो क्या आफत आ गई? माफ  करना साहब मसला ही ऐसा है, आपको फोन करना पड़ा, पांडे घबराई आवाज में बोल रहे थे। अब कहो कहां गोली चल पड़ी? साहब गोली क्या गोला समझो। रात चार ट्रक और जेसीबी रेत-बजरी चुराते पकड़े गए। एसडीएम साहब खुद मौके पर मौजूद थे। पत्रकारों की टोली अलग। बार-बार आपको पूछ रहे थे। यह सुनते ही साहब के पांव तले की जमीन खिसक गई। फिर कुछ सोचा और बोले, पांडे, ध्यान से सुनो। एक प्रेस विज्ञप्ति बनाओ और सब अखबार वालों तक पहुंचाओ तुरंत। समझ गया साहब। जैसे पहले निकालते रहे हैं, उसी की कॉपी कर देंगे। पांडे ने होशियारी दिखाते हुए कहा। नहीं-नहीं, पहले की कॉपी नहीं। यह प्रेस विज्ञप्ति अलग ढंग की होगी। उसमें लिखना, नदी हमारी मां के समान है। जीवनदायिनी है। इसे पवित्र रखना हर नागरिक का कर्त्तव्य है। इसका अपमान राष्ट्रीय अपमान है जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वाह! साहब, वाह! क्या भूमिका बांधी है। बडे़ बाबू ने चापलूसी करते हुए कहा। साहब फूल कर कुप्पा हो गए और कहने लगे, बाकी तुम्हें पता है क्या लिखना है। यानी वही सरकार की दूरगामी नीति, समाज का नैतिक पतन व संस्कारों का अभाव, पिछले सालों में मारे गए छापे इत्यादि, इत्यादि। साहब सोच रहा हूं इसमें यह भी लिख दूं, कोई बच नहीं पाएगा, घसीट-घसीट कर मारेंगे या कानून के हाथ…। बंद करो यह बकवास। बस जितना कहा है उतना लिखो और प्रेस में देने से पहले मुझे मेल करो। और सुनो, यह जरूर लिखना खनन माफिया की यह कायराना हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी। साहब साइट पर एक बात काफी लोग बोल रहे थे कि यह महकमा तो है ही खाऊ महकमा। माफिया के साथ इनकी मिलीभगत है। साहब आपके लिए भी… हर कुछ बोल रहे थे। आपका….। बड़े बाबू अपनी बात पूरी करते, उससे पहले ही साहब ऊंची आवाज में बोले, क्या, मेरे बारे में क्या, क्या बोल रहे थे। साहब वही, आपके पुराने केस, घर पर पड़े छापे की बात, इन्क्वायरी वगैरह। पर छोड़ो साहब वह तो एक दिन दूध-का-दूध, पानी-का-पानी हो जाएगा और आप पाक साफ  निकल कर आएंगे। हां, हां, सब जानता हूं। साहब की आवाज से रौब की परत उतर चुकी थी, यह हमारे घर पर छापा वगैरह हमारे दुश्मनों की चाल थी। हमारे घर, बैंक खातों और लॉकर्स की छानबीन हो गई। पर बड़े बाबू की बात से साहब भीतर तक आहत हो गए थे। साहब ने फिर जोश में कहा, यह भी लिखना-भ्रष्ट अधिकारी नपेंगे। कोई बख्शा नहीं जाएगा। भ्रष्टाचारियों को जमीन के नीचे भी नहीं छोड़ेंगे। यह सुन बड़े बाबू की हंसी निकल गई। इसमें हंसने की क्या बात है? साहब ने तिलमिलाकर पूछा। कुछ नहीं साहब, कुछ नहीं। मुझे लगा, पर साहब गलत भी तो लग सकता है। पर फिर भी साहब बुरा न मानना यह डायलॉग कुछ फिल्मी सा लगता है। पर साहब छोड़ो यह चलेगा, और खूब चलेगा, चलेगा क्या जमेगा। जमीन के नीचे भी नहीं छोड़ेंगे। क्या बात कही आपने। मजा आ गया। साहब असमंजस में थे कि बाबू मेरी तारीफ  कर रहा है या खिल्ली उड़ा रहा है। साहब एक आइडिया है, बुरा न मानों तो बताऊं। हां, बोलो, क्या आइडिया है? साहब कुछ गंभीर होकर बोले। साहब, सोच रहा था खनन माफिया के खिलाफ  एक गीत बनाते हैं। स्कूल के बच्चों को बुला लेंगे। वह गीत गाते, नारे लगाते एक रैली भी निकाल लेंगे। बाद में उन्हें पर्यावरण बचाने की शपथ भी दिला देंगे। हराम… साहब की डांट खा बड़े बाबू चुप हो गए और उनके आदेशानुसार सिर झुका प्रेस विज्ञप्ति बनाने में जुट गए।


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