बंदर आदमी हो गए हैं

By: Jan 28th, 2020 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

पंडित जॉन अली काफी धार्मिक प्रवृत्ति के आदमी थे। उन्होंने सड़क के बीचोंबीच झटके से अपनी गाड़ी खड़ी कर, बंदरों को चने डालना शुरू कर दिए। उनका मंगल भारी था। ज्योतिषी ने उन्हें सलाह थी, इस दिन मारूतिरूतों को चने खिलाने की। अपना मंगल हल्का करने के लिए उन्होंने दूसरों का रास्ता रोक कर उनका मंगल भारी करना आरंभ कर दिया। हम उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। उनके एकाएक ब्रेक लगाने से हम उनकी गाड़ी से ठुकते-ठुकते बचे। हालांकि सरकार द्वारा बंदरों या अन्य जानवरों को सड़क के किनारे खाना-दाना न डालने की चेतावनी वाले बोर्ड में पारित नए अधिनियम के तहत कड़े जाने पर, दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई तथा सजा के प्रावधान का हवाला था,  लेकिन सभी लोग काफी धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और पुलिस भी इसका अपवाद नहीं। इसीलिए  पुलिस कभी किसी इस अधिनियम के तहत दंडित नहीं करती। इस चेतावनी को अनदेखा कर पंडित जी बड़ी बेफिक्री, धार्मिकता और सादगी के साथ अपने पूर्वजों को दाना डालने में व्यस्त थे। उनकी देखा-देखी कई और  पवित्र आत्माएं अपने कर्मों का भार हल्का करने के लिए सड़क पर आ जुटीं। ये सभी धर्मात्मा बड़ी ही तन्मयता के साथ बंदरमय हो गए थे। जिस तरह राशन मिलने पर बीपीएल परिवारों के चेहरों पर सुकून दिखता है, वैसी संतुष्टि दाना मिलने पर बंदरों के चेहरे पर देखी जा सकती थी। सभी धर्मात्माओं के चेहरे पर वैसे ही भक्तिमय भाव खिले हुए थे, जैसे बीमार बाप को कोने में टकने और उसकी मौत के बाद उसके श्राद्ध में कोई बेटा किसी पंडित को जीमने के लिए बुलाता है। सड़क पर मौजूद बंदरों के कई झुंडों में छोटे बंदरों की संख्या जंगलों में रहने वाले झुंड़ों की अपेक्षा कम थी। गाड़ी में बैठे पुलिसिया मित्र हवलदार जुल्मी सिंह ने बताया कि पिछले दिनों एक रिपोर्ट छपी थी, जिसमें इनसानों का खाना खाने से बंदरों की पौटेंसी या प्रजनन क्षमता में अंतर पड़ने की बात कही गई थी। ज़ुल्मी ने बताया कि लोग अगर इसी तरह बंदरों को ईमानदारी से इनसानी खाना खिलाते रहें तो कुछ समय बाद बंदरों की संख्या अपने आप  नियंत्रित हो जाएगी और सरकार को बंदर नसबंदी अभियान नहीं चलाना पड़ेगा क्योंकि ये सभी लोग अपने ग्रहों की चाल ठीक करने के साथ राष्ट्रीय हितों का भी पूरा ध्यान रख रहे हैं। स्थल पर पुलिसिया मित्र के होने के बावजूद यातायात बाधित था। जब उन्हें उनकी वर्दी की दुहाई देते हुए उनसे यातायात बहाली का आग्रह किया तोवह बोले,‘‘अरे साहिब, क्यों हमारा जन्म भ्रष्ट करते हो? कहीं हनुमानजी नाराज हो गए तो ट्रांसफर कम उगाही वाले एरिया में करवा देंगे।’’ लेकिन बंदरों का व्यवहार आदमियों वाला हो चुका था। अपने भाई-बंधुओं का ख्याल किए बिना सब अपना-अपना दाना पाने में व्यस्त थे। किसी को यह परवाह नहीं थी कि कोई बच्चा है, बूढ़ा है या बीमार। किसी मां को यह  परवाह नहीं थी कि उसका छोटा बच्चा कहां है? बच्चे भी अपनी मांओं से दूर दाना खाने में मस्त थे। सभ्य समाज के पढ़े-लिखे लोगों की तरह तमाम बंदर गाडि़यों के रास्ते में आराम से चल रहे थे। इस बीच किसी गाड़ी वाले ने जल्दी में गाड़ी निकालने के चक्कर में एक छोटे बंदर को कुचल दिया, परंतु बंदरों का भाईचारा कहीं नजर नहीं आ रहा था। छोटे बंदर की लाश किनारे पर पड़ी हुई थी और उसको अनदेखा कर अन्य बंदर दाना चुगने में व्यस्त थे। उसकी मां का भी कहीं अता-पता न था।


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