बजट में घरेलू कागज उद्योगों को मिले राहत

इंडियन पेपर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन की आयात शुल्क बढ़ाने की मांग

नई दिल्ली – कागज के भारी पैमाने पर आयात से घरेलू उद्योगों के हितों की हिफाजत की दिशा में सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों से उत्साहित घरेलू कागज उद्योग ने आगामी बजट में आयातित कागज पर सीमा शुल्क बढ़ोतरी की मांग की है। भारत का कागज उद्योग 70000 करोड़ रुपए का है। भारतीय बाजार में बड़ी मात्रा में आयातित कागज पहुंचता है। इंडियन पेपर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) ने बजट से अपनी उम्मीद जाहिर करते हुए कहा कि देश में कम या शून्य आयात शुल्क विशेषरूप से मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) के प्रावधानों का लाभ उठाते हुए कई बड़े पेपर उत्पादक देश भारतीय बाजार को लक्ष्य बना रहे हैं। आईपीएमए के अनुसार वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए भारतीय पल्प एवं पेपर उद्योग संकट में है। बड़े पेपर उत्पादक देश तेजी से उभरते भारतीय बाजार में बड़ी मात्रा में पेपर और पेपरबोर्ड का निर्यात कर रहे हैं। इन देशों में इंडोनेशिया और चीन शामिल हैं, जहां के मैन्यूफैक्चरर्स को निर्यात पर बड़े इन्सेंटिव मिलते हैं। साथ ही उन्हें सस्ता कच्चा माल और ऊर्जा भी उपलब्ध है।

25 फीसदी बढ़ाया जाए स्वास्थ्य बजट

नई दिल्ली – स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी हस्तियों ने आगामी बजट में लोगों की सेहत का खास ख्याल रखे जाने की उम्मीद जताते हुए कहा है कि इतना धन तो उपलब्ध कराया ही जाना चाहिए जिससे उपचार कराना आम आदमी की पहुंच में हो सके और गरीबों को भी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करायी जा सकें। डिजिटल हेल्थ केयर के क्षेत्र में अग्रणी शिफा केयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं संस्थापक मनीष छाबड़ा ने कहा कि पिछले वर्ष के स्वास्थ्य क्षेत्र के 62398 करोड़ रुपए के बजट में कम से कम 25 फीसदी की वृद्धि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को करनी चाहिए।

नौकरियां देने और आय बढ़ाने के किए जाएं उपाय

नई दिल्ली – साख निर्धारक तथा बाजार सलाह एवं अध्ययन कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती के कारक निकट भविष्य में दूर होते नहीं दिख रहे और सरकार को बजट में इस प्रकार निवेश करना चाहिए, जिससे रोजगार सृजन हो तथा लोगों की व्यय योग्य आय बढ़े। एजेंसी की बुधवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा अनुमानित पांच प्रतिशत की विकास दर के अगले वित्त वर्ष में मामूली सुधार के साथ 5.5 प्रतिशत पर पहुंचने की उम्मीद है। उसने कहा है कि विकास दर के 5.5 पांच प्रतिशत से नीचे रहने का जोखिम बना रहेगा। इंड-रा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कई कारक हैं। इनमें बैंकों के ऋण उठाव में सुस्ती और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के ऋण उठान में अचानक तेज गिरावट, आम लोगों की आमदनी और उनकी बचत में कमी आना तथा फंसी हुई पूंजी से जुड़े विवादों के जल्द निपटारे में समाधान और न्याय प्रणाली की विफलता प्रमुख हैं।