बजट से छोटे उद्योगों की उम्मीदें

By: Jan 20th, 2020 12:07 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

गौरतलब है कि पिछले दिनों देश के छोटे और मध्यम उद्योगों से संबंधित उद्यमियों ने वित्तमंत्री के साथ बजट पूर्व बैठक में इस क्षेत्र को मुश्किलों से बचाने के लिए कई जरूरी अपेक्षाएं प्रस्तुत की हैं। कहा गया है कि  एमएसएमई द्वारा दी जाने वाली पेशेवर सेवाओं पर वस्तु एवं सेवा कर ‘जीएसटी’ की दर 5 फीसदी की जाए, यह अभी 18 फीसदी है…

इन दिनों देश के सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों ‘एमएसएमई’ से संबद्ध उद्यमियों की निगाहें एक फरवरी 2020 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वित्त वर्ष 2020-21 के नए बजट की ओर लगी हुई हैं। इन्हें नए बजट से उम्मीद है कि इस समय जो एमएसएमई मांग में सुस्ती और कर्ज न मिल पाने से नकदी के संकट के दौर से गुजर रहा है, उसे नए बजट से नई जान मिल सकेगी। गौरतलब है कि पिछले दिनों देश के छोटे और मध्यम उद्योगों से संबंधित उद्यमियों ने वित्तमंत्री के साथ बजट पूर्व बैठक में इस क्षेत्र को मुश्किलों से बचाने के लिए कई जरूरी अपेक्षाएं प्रस्तुत की हैं। कहा गया है कि  एमएसएमई द्वारा दी जाने वाली पेशेवर सेवाओं पर वस्तु एवं सेवा कर ‘जीएसटी’ की दर 5 फीसदी की जाए, यह अभी 18 फीसदी है।

इस समय एमएसएमई में बैंकों का एनपीए 70,000 करोड़ रुपए है, इसे वर्ष 2022 तक नियमित लोन माना जाए। मुश्किलों से घिरे छोटे व मध्यम उद्योगों को राहत देने के लिए बैंकों द्वारा एमएसएमई से वसूले जाने वाले सभी तरह के सर्विस चार्ज पूरी तरह माफ किए जाएं। जब एक एमएसएमई दूसरे एसएमई से कारोबार करे तो सर्विस चार्ज 5 फीसदी ही होना चाहिए, यह अभी 12 फीसदी है। एमएसएमई सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए एक अलग पेंशन फंड बनाया जाना चाहिए। नए बजट के परिप्रेक्ष्य में एमएसएमई उद्यमियों ने वित्त मंत्री से मांग की है कि इस सेक्टर के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कोलेटरल-फ्री लोन की जो सीमा दो करोड़ रुपए है उसे बढ़ाया जाए। सूक्ष्म इकाइयों के लिए इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपए, लघु उद्यम के लिए 15 करोड़ रुपए और मध्यम आकार के उद्यम के लिए 25 करोड़ रुपए किया जाए।

एमएसएमई के शेयरों में खरीद-फरोख्त के लिए 20,000 करोड़ रुपए का एक इन्वेस्टमेंट फंड बनाया जाए। इसी तरह से वित्त मंत्री से मांग की गई है कि सरकार ने कंपनियों के लिए आयकर की दरों में जो कटौती की घोषणा की है, इसका फायदा प्रोपराइटरी या पार्टनरशिप फर्म के तौर पर रजिस्टर्ड एमएसएमई को भी दिया जाए। चूंकि यह क्षेत्र बड़ी मात्रा में रोजगार पैदा करता है, इसलिए इसे वित्तीय लाभ के अलावा रोजगार सृजन पर टैक्स में छूट दी जाए। पिछले बजट में कैपिटल गेन से स्टार्टअप में निवेश करने पर आयकर छूट दी गई थी। कैपिटल गेन से एमएसएमई में निवेश करने पर भी आयकर छूट दी जाए।

चूंकि छोटी और मझौली औद्योगिक-कारोबारी इकाइयां देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा हैं, अतः आर्थिक सुस्ती के दौर में बड़े उद्योगों की तरह इस क्षेत्र के लिए भी कारोबार सुगमता जरूरी है। वर्ष 2020-21 के नए बजट में ध्यान देना होगा कि छोटे उद्योग देश में विकास दर और रोजगार बढ़ाने के परिप्रेक्ष्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। देश में कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार एमएसएमई क्षेत्र के द्वारा ही दिया जा रहा है। देश की जीडीपी में छोटे और मझोले उद्योग-कारोबार का हिस्सा 28 फीसदी है। देश में एमएसएमई के तहत कोई 6.5 करोड़ उद्यम आते हैं जो 15 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं और देश की लगभग आधी आबादी इनसे जुड़ी है। छोटे और मध्यम उद्योग-कारोबार का देश के औद्योगिक उत्पादन में करीब 45 फीसदी एवं निर्यात में करीब 40 फीसदी योगदान है। ऐसे में छोटे उद्योगों को नए बजट से राहत जरूरी है।

नए बजट में एमएसएमई कारोबारियों के द्वारा की जा रही उस अपेक्षा पर भी ध्यान दिया जाना उपयुक्त होगी, जिसमें एमएसएमई सेक्टर की परिभाषा बदलने और छोटे उद्योगों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करके तत्काल राहत मुहैया कराए जाने की उम्मीद की जा रही है।  छोटे उद्यमी व कारोबारी चाहते हैं कि इन्हें कई श्रेणियों में बांटा जाए ताकि इनकी दिक्कतें समय से पहचानी जा सकें। विभिन्न सेक्टर के हिसाब से श्रेणी बनाकर टर्नओवर की सीमा तय की जाए ताकि कारोबारियों को जीएसटी रिफंड के साथ दूसरी रियायतें तेजी से मिल सकें। छोटे उद्यमी-कारोबारी चाहते हैं कि उन्हें तकनीकी विकास और नवाचार का भी लाभ मिले। खासतौर से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी छोटे उद्यमी और कारोबारी बड़ी राहत की अपेक्षा कर रहे हैं। निःसंदेह आर्थिक सुस्ती के वर्तमान दौर में वर्ष 2020-21 के नए बजट के माध्यम से  सरकार के द्वारा  छोटी-मझौली इकाइयों की कारोबारी सुगमता के लिए देश की वित्तीय और औद्योगिक संस्थाओं को मजबूती दी जानी होगी। इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति और मौजूदा नकदी संकट को देखते हुए सरकार के द्वारा इस क्षेत्र के लिए समर्पित कोष बनाना जरूरी दिखाई दे रहा है।

इस हेतु नए बजट में 25,000 से 30,000 करोड़ रुपए के एमएसएमई कोष की जरूरत है। साथ ही इस कोष से दिए जाने वाले ऋण पर कोई जमानत न मांगी जाए। एमएसएमई की वृद्धि बहाल करने के लिए ऐसी वित्तीय पहुंच बढ़ाई जानी जरूरी है। यद्यपि सरकार के द्वारा एमएसएमई को तेजी से भुगतान करने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है लेकिन फिर भी छोटे कारोबारियों का भुगतान बड़े पैमाने पर अटका है। सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियां भुगतान में देरी कर रही हैं। ऐसे में नए बजट में छोटे उद्योगों के भुगतान समय पर होने की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान जरूरी हैं। चूंकि एमएसएमई क्षेत्र में कर्ज पर ब्याज बहुत ज्यादा है। अतः नए बजट के तहत इस क्षेत्र के लिए कर्ज पर ब्याज दरों में कमी किए जाने की जरूरत है। भारत में छोटे उद्योग-कारोबार की लागत भी कम करनी होगी। 

सरकार ने कारपोरेट कर कम कर दिया है, लेकिन एमएसएमई इस श्रेणी में नहीं आते हैं। छोटे कारोबार पर कर कम होना चाहिए। निःसंदेह नए बजट के माध्यम से सरकार के द्वारा छोटी-मझौली इकाइयों की कारोबारी सुगमता के लिए देश की वित्तीय और औद्योगिक संस्थाओं को मजबूती दी जानी होगी। उद्योग-व्यापार में नवाचार को प्रोत्साहन दिया जाना होगा। हम आशा करें कि वित्त मंत्री वर्ष 2020-21 के नए बजट में सूक्ष्म, छोटी और मझौली इकाइयों में नई जान फूंकने हेतु ज्यादा व सस्ते कर्ज की सुविधा, पेशेवर सेवाओं पर जीएसटी की दर में कमी, बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले सर्विस चार्ज की समाप्ति, पेंशन फंड के सृजन, आयकर छूट के लाभ, कोलेटरल-फ्री लोन की सीमा बढ़ाने, तकनीकी उन्नयन राहत तथा निर्यात प्रोत्साहनों से सुसज्जित करेगी।

निश्चित रूप से यदि नए बजट में छोटे उद्योग-कारोबार को राहत देने के लिए इन सभी नए जरूरी कदमों को आगे बढ़ाया जाएगा तो इस क्षेत्र की इकाइयां कारोबार, आय वृद्धि, रोजगार वृद्धि और अर्थव्यवस्था की चमकीली संभावनाओं को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दिखाई दे सकेंगी।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App