मनमाने तरीके से की गई प्लेसमेंट रद्द

हाई कोर्ट ने राज्यपाल सचिवालय में चपरासी की तैनाती पर दिए आदेश

 शिमला-प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्यपाल सचिवालय में मनमाने तरीके से चपरासी के पद पर प्लेसमेंट दिए जाने वाले आदेशों को निरस्त कर दिया। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि प्रार्थी, जो कि नवंबर, 1993 में बेलदार के पद पर दैनिक भोगी के तौर पर नियुक्त किया गया था, को 10 वर्षों बाद अक्तूबर, 2003 में नियमित किया गया। हालांकि निजी तौर पर प्रतिवादी बनाई गई रेखा को पहली दिसंबर, 2009 को बेलदार के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्ति दी गई। उसे मात्र एक साल के बाद रेगुलर भी कर दिया गया। यही नहीं, 23 जनवरी, 2015 को बेलदारों की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए उसे चपरासी के पद पर प्लेसमेंट दे दी गई। राजभवन द्वारा दायर किए गए अनुपूरक शपथ पत्र के अनुसार प्रतिवादी रेखा को एक वर्ष के पश्चात राज्यपाल के आदेशानुसार नियमित किया गया और उसे राज्यपाल के आदेशों से ही चपरासी के पद पर प्लेसमेंट दी गई। शपथ पत्र के अनुसार राज्यपाल स्टाफ  के मामले में स्वेच्छा से निर्णय लेने की शक्ति रखते हैं। कोर्ट ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि न्यायालय शपथ पत्र के साथ दायर किए गए नियमों से अनजान नहीं है, परंतु यह शक्ति कानून के विपरीत नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्वेच्छा से निर्णय लेने वाली शक्तियों का इस्तेमाल बिना किसी दुर्भावना के किया जाना चाहिए।

सोशल मीडिया पर न डालें कोई पोस्ट

शिमला। प्रदेश हाई कोर्ट ने लोक सेवा आयोग की सदस्य डा. रचना गुप्ता और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की पोस्ट डालने पर रोक लगा दी है। अदालत ने प्रार्थी रचना गुप्ता द्वारा दायर आवेदन की सुनवाई के पश्चात आदेश पारित किए कि प्रतिवादी देवाशीष भट्टाचार्य भविष्य में प्रार्थी और उसके परिवार के विरुद्ध सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की पोस्ट नहीं डालेगा। प्रार्थी के खिलाफ  सोशल मीडिया पर टिप्पणियां करने पर प्रतिवादी पर एक करोड़ रुपए मानहानि का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में मामला दायर किया गया है, जो सुनवाई के लिए लंबित है।