रचनाकर्म के हवाले से सुखद रहा बीता वर्ष

By: Jan 5th, 2020 12:05 am

मुरारी शर्मा

मो.-9418025190

वर्ष 2019 साहित्यिक नजरिए से भले कोई विशेष उपलब्धियों भरा नहीं रहा, लेकिन रचनाकर्म के हवाले से इसे सुखद कहा जा सकता है। वहीं साहित्य में लगातार अच्छा लिखने के लिए बेहतर रचनाओं और श्रेष्ठ किताबों में से गुजरना जरूरी है। बीते वर्ष ज्यादा कुछ लिखने के बजाय पढ़ने का क्रम बदस्तूर जारी रहा जिसमें पत्र-पत्रिकाओं के अलावा कुछ महत्त्वपूर्ण किताबों को पढ़ने का मौका मिला।अमरीकी मूल की लेखिका मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति मदर इंडिया, अमित मनोज द्वारा संपादित कथा में किसान, डा. चिरंजीत परमार की दुनिया जैसी मैंने देखी, प्रमोद रंजन की शिमला डायरी के अलावा पहल, नया ज्ञानोदय जैसी पत्रिकाएं भी पढ़ने का अवसर मिला। जहां तक किसी किताब द्वारा प्रभावित करने का सवाल है तो निःसंदेह मिस कैथरीन मेयो की कृति मदर इंडिया है जिस पर मशहूर हिंदी फिल्म मदर इंडिया बनी और अभिनेत्री नरगिस दत्त मदर इंडिया के नाम से मशहूर हुई। इस किताब को पहली बार फारवर्ड प्रेस द्वारा हिंदी में प्रकाशित किया गया है जिसका अनुवाद कंवल भारती द्वारा किया गया है।

मदर इंडिया विश्वविख्यात कृति है। सन् 1927 में प्रकाशित इस पुस्तक ने भारत, ब्रिटेन और अमरीका में खलबली मचा दी थी। यह किताब जितनी लोकप्रिय हुई, उतनी ही विवादास्पद भी रही। मदर इंडिया के पन्ने पलटते हुए भारतीय समाज की उन सच्चाइयों से साक्षात्कार होता है जिन सच्चाइयों को फुले अंबेडकर और पेरियार ने अपने-अपने तरीके से उजागर किया है।मदर इंडिया प्राचीन भारतीय समाज की सामाजिक-आर्थिक वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है, वहीं पर सामाजिक विषमता, अंध परंपराओं, अशिक्षा और गीरीबी में जकड़े उस समय के भारत की तस्वीर पेश करती है। इस किताब ने अपने समय की विश्व की प्रसिद्ध हस्तियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इनमें रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, पेरियार, विंस्टन चर्चिल, सरोजनी नायडू, रुडयार्ड किपलिंग और ऐनी बेसेंट आदि शामिल हैं।डा. अंबेडकर ने तो अपनी रचनाओं में भी कई जगह इस किताब का जिक्र किया है। जहां तक साहित्यिक आयोजनों से युवा पीढ़ी को प्रोत्साहन का सवाल है, ऐसे आयोजन छुटपुट सरकारी स्तर पर ही होते हैं। मगर निजी संस्थाओं के प्रयास इस दिशा में होना जरूरी हैं। मंडी में स्कूल व कालेज परिसरों में कुछ कार्यक्रम हुए हैं।इसके लिए सब तरफ  से प्रयास होने चाहिए। हिमाचल के चर्चित कवि सुरेश सेन निशांत की तीसरी पुस्तक ‘मैं यहीं रहना चाहता हूं’ हाल ही में अंतिका प्रकाशन से आने वाली है। इस पुस्तक के संयोजन के दौरान एक बार फिर उनकी कविताओं और उनके रचनाकर्म से गुजरना हुआ।निःसंदेह निशांत हिमाचल ही नहीं, बल्कि देश के अग्रणी कवियों की पंक्ति में खड़े होते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में पहाड़, नदी, झरने, पेड़, खेत, यहां की औरतों के जीवट, काफल, बाघ,तेंदुआ, अस्पताल, जीवन और मृत्यु जैसे अनेक विषयों पर प्रभावशाली कविताएं लिखी हैं।सही मायने में निशांत का यह तीसरा कविता संग्रह पहाड़ पर खड़े व्यक्तिका बयान है, जो अपने अंचल से बेहद प्यार करता है और तमाम बुराइयों एवं कठिनाइयों के बावजूद वह यहीं पर रहना चाहता है।इसके अलावा हाल ही में दिवंगत हुए कहानीकार नरेश पंडित की कहानी ‘जहर की खेती’ ने भी बहुत प्रभावित किया। दोनों ही रचनाकार अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर वे अपनी रचनाओं के माध्यम से हमारे बीच हमेशा रहेंगे।

 


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