वक्त के थपेड़ों ने फौलाद बना दी स्नेहलता, पाना-चाबी उठा बन गई मेकेनिक

By: Jan 8th, 2020 12:03 am

मनई की बिटिया ने हालात को मात देकर सीखा जिंदगी का फलसफा, नगरोटा बगवां स्थित ऑटोमोबाइल कंपनी में कर रही नौकरी

नगरोटा बगवां  – भारत का इतिहास वीरांगनाओं के शौर्य से तो भरा ही है। साथ ही जीवन में आई आकस्मिक चुनौतियों  का साहस और बल से मुकाबला करने में भी नारी शक्ति किसी से कम नहीं। इस तथ्य को पुष्ट करते उदाहरण भी समय-समय पर हमारे समाज में सामने आते रहे हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों के लबादे को तिलांजलि देकर अपने फौलादी जज़्बे से समय को अनुकूल चलने के लिए मजबूर बना रही कांगड़ा जिला की तहसील शाहपुर के मनई गांव की 22 वर्षीय स्नेहलता उन लाखों युवतियों के लिए प्रेरणा हो सकती हैं, जो खुद को कमजोर मान कर हालात के सामने अकसर घुटने टेक देती हैं। मात्र 10 साल की उम्र में अपने सिर से मां-बाप का साया खो चुकी स्नेहलता आज से करीब 35 साल पहले आशा भोंसले द्वारा गाए गीत ‘कोमल है, कमजोर नही तू शक्ति का नाम ही नारी है’ को सार्थक करने में इस कद्र जुटी हैं कि एक महिला होने का एहसास उसके रास्ते का कभी रोड़ा बन ही नहीं पाया। अपने भाई की मदद से शाहपुर से आईटीआई से इलेक्ट्रिशियन का डिप्लोमा कर नगरोटा बगवां स्थित एक ऑटोमोबाइल शोरूम में बतौर मेकेनिक हर-तरह के छोटे-बड़े औजारों के साथ पसीना बहाती स्नेह लता को आम देखा जा सकता है। भले ही आज हर क्षेत्र में महिलाओं ने पदार्पण कर अपने हुनर का लोहा मनवाया हो, लेकिन सैकड़ों पुरुष सहयोगियों के बीच अकेली युवती एक वर्कशॉप में मेकेनिक के रूप में अपनी सेवाएं देने की हिम्मत दिखाए, तो उसकी मजबूरी पर संवेदनाओं से ज्यादा हौसले को सलाम बनता है। स्नेहलता का कहना है कि उसे उसकी योग्यता के अनुसार काम करने का अवसर मिला है, जिससे वह पूरी तरह से संतुष्ट है। स्नेहलता के बुलंद हौसले और जज़्बे को ‘दिव्य हिमाचल’ सलाम करता है और हर संभव सहयोग का भरोसा भी दिलाता है।

रुला देते हैं बीते दिन

‘दिव्य हिमाचल’ से विशेष बातचीत के दौरान स्नेहलता बीते दिनों को याद कर भावुक हो जाती है। स्नेहलता आज अपने काम और कमाई से पूरी तरह संतुष्ट हैं। कंपनी की और से फिलवक्त छात्रवृत्ति के रूप में सात हजार मेहनताना ही मिलता है।

कंपनी से उज्ज्वल भविष्य का भरोसा

महिंद्रा शोरूम के सर्विस मैनेजर राकेश ठाकुर ने ‘दिव्य हिमाचल’ को स्नेहलता के उज्ज्वल भविष्य के लिए आश्वस्त किया है तथा शीघ्र ही उसके प्रशिक्षण काल के बाद नियमित कर आगे बढ़ने का भरोसा भी दिलाया है। उन्होंने कहा कि कंपनी का प्रयास है कि जरूरतमंद लड़कियां इस फील्ड में भी आगे आएं। कंपनी ने प्रशिक्षण संस्थान से इसे स्वयं तलाश कर नई शुरुआत कर दी है।

आठ साल की उम्र में उठा पिता का साया

स्नेहलता जब आठ साल की थीं, तो पिता गुजर गए और जब 12 साल की हुईं तो मां भी चल बसीं। आठ भाई बहनों का पालन-पोषण अब दादी पर आ गया, पर 2017 में अब दादी भी भगवान को प्यारी हो गईं। स्नेह लता की दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है, जबकि दो बहनें और दो भाइयों का खर्च स्नेह लता पर है।


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