वार्षिक योजना में विजन कितना-2

By: Jan 13th, 2020 12:04 am

हिमाचल में जनप्रतिनिधि अपने विजन के कारण तसदीक होते हैं या चुनाव प्रक्रिया पापड़ की तरह फूलती नहीं, बल्कि आंतरिक यह भी मिर्च मसाले का जिक्र है। जनता की वोट नीति शायद राजनीति की लंबी पारी में समाहित नहीं है, इसलिए विजन के बजाय सियासी मिर्च मसाला ही भरा जा रहा है। विकास या विजन के पथ पर चर्चित नेता हारे या सैद्धांतिक विमर्श में हिमाचली जनता केवल निजी स्वार्थ की गहराई जानती है। जो भी हो लेकिन भविष्य के सांचे में विधायक की समीक्षा, अब उसके मौलिक चिंतन या विजन की विचारधारा लिखने की कसौटी है। यानी देखा यह जाएगा कि लीक से हटकर हिमाचल क्या करता है। वार्षिक योजना को संबोधित करते जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकताएं, न तो दबंगता से कुछ कहने का सामर्थ्य रखती हैं और न ही अपने-अपने क्षेत्रों को पारंगत करने का कोई खाका पेश करती हैं। कमोबेश हर विधानसभा  क्षेत्र एक सरीखे प्रयास में वही सब कुछ चाहता है, जो उसकी पृष्ठभूमि की कद्र नहीं। इस बार भी कालेजों की मांग होती है,लेकिन किस तरह के शिक्षण संस्थान चाहिएं यह विधायकों को भी मालूम नहीं। जनप्रतिनिधियों को चाहने के लिए तो वह सब कुछ चाहिए जो अन्य क्षेत्रों को मिल चुका है,लेकिन अपनी पृष्ठभूमि को कोई नया मॉडल नहीं चाहिए। किसी एक विधायक ने ऐसी कोई प्राथमिकता नहीं बताई जिससे रोजगार या स्वरोजगार के अवसर बढ़ें। किसी ने कला-संस्कृति या लोक कलाकार के लिए अपने मन के उद्गार पेश नहीं किए। नशा उन्मूलन के  लिए किसी विधानसभा क्षेत्र की चिंता और समाधान का रास्ता नहीं खोजा गया। जनता के मनोरंजन की बात नहीं हुई और न ही प्रदूषण,पोलिथीन और चैक डैमों में फंसी गाद से मुक्त होने की कोई अपील हुई। यह दीगर है कि कांगड़ा के विधायक ने गगल एयरपोर्ट विस्तार जैसे विषय को सियासत से ऊपर उठकर देखा या बंजार में बाइपास की मांग हो गई, वरना किसने कहा कि उसके विधानसभा क्षेत्र में शहरीकरण को समझा जाए। वार्षिक विचारों के आदान-प्रदान में जब भी जनप्रतिनिधि अपने आलोक की अभिव्यक्ति में समां बांधते हैं, तो वे केवल जनता की तालियां ही सुनना चाहते हैं, वरना ग्राम एवं नगर योजना कानून का वर्तमान हाल न होता। शहरी आबादी को बड़ा दायरा चाहिए, लेकिन जनप्रतिनिधि ऐसे विषयों को लटका देते हैं। धर्मशाला के कोतवाली बाजार को वन-वे की अनिवार्यता में ढालने के प्रशासनिक प्रयास को खुर्द-बुर्द करना अगर जनप्रतिनिधित्व की ताकत है, तो  क्षेत्रीय जरूरतें दरअसल राजनीतिक प्राथमिकताओं के आगे दब जाएंगी। पूरे प्रदेश में कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर कितने जनप्रतिनिधि सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं। क्या प्रदेश के शहरी निकायों के आर्थिक ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए हिमाचली विधायक काम कर रहे हैं। आश्चर्य यह कि मंदिर आय के सही इस्तेमाल या इनके प्रबंधकीय ढांचे को दुरुस्त करने की बात नहीं होती। ऐसे में हिमाचल में विधायक प्राथमिकताएं, विकास की नई कसौटियों और भविष्य के लिए युवा पीढ़ी को शायद ही तैयार कर पाएंगी। हिमाचल के हर विधानसभा क्षेत्र को अपने खाके में कम से कम नवाचार का दम भरते हुए अपनी क्षमता का निरूपण करना होगा। हर विधानसभा क्षेत्र के लिए कम से कम एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन व पर्यटन गांव की अवधारणा या हाई-वे पर्यटन की दृष्टि से सैलानी सुविधाओं के परिसर विकसित करके होगा। हर विधानसभा क्षेत्र में उन्नत खेती- बागबानी के साथ- साथ सब्जी-फल मंडियों का प्रसार तथा कोल्ड स्टोर स्थापित करने की प्राथमिकता चाहिए। विधायकों को अपने क्षेत्र का ब्रांड बनने के लिए खेल ढांचे को सशक्त और प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखना होगा। ऐसे निवेश केंद्रों को विकसित करने की जरूरत है, जहां युवा स्वरोजगार की तरफ बढ़ें। इसके  लिए हर विधानसभा क्षेत्र के लिए एक गैर राजनीतिक सलाहकार समिति का गठन हो जो क्षेत्रीय संभावना  को क्षमता में बदलने का अभिप्राय बने, लेकिन राजनीति तरक्की कोई व्यावहारिक सरलता नहीं, ताकत का प्रदर्शन है।  

 

 


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