वार्षिक योजना में विजन कितना-1

By: Jan 11th, 2020 12:05 am

हिमाचल के विधायकों को वार्षिक योजना में कितना विजन चुनना है, इसका एक परिचय हाल ही में बैठकों के दौर से मिलता है। बेशक एक लंबी फेहरिस्त इस साल भी वार्षिक योजना के प्रारूप में विधायकों की प्राथमिकताएं तय करती है, लेकिन सोच की कुंडलियों में फंसी संकीर्णता भी जाहिर होती है। ऐसे अनेक विधायक देखें जाएंगे, जो अपने सपनों में स्कूल-कालेज देख रहे हैं, जबकि कुछ पर्यावरणीय दृष्टि से खनन रोकना चाहते हैं। जयसिंहपुर के विधायक रविंद्र कुमार ब्यास तटीकरण के साथ-साथ अवैध खनन रुकवाना चाहते हैं। हरोली के विधायक मुकेश अग्निहोत्री ने भी अवैध खनन पर चिंता प्रकट की है, लेकिन बाकी विधायकों ने इस विषय को गौण ही माना। यह दीगर है कि आनी के विधायक किशोरी लाल ईको पर्यटन की निगाहों से पर्यावरण का संरक्षण चाहते हैं, तो श्रीखंड यात्रा को नए आयाम तक पहुंचाने का विजन रखते हैं। रेणुका जी के विधायक विनय कुमार ‘चूड़धार-नोहराधार-कुपवी’ पर्यटन सर्किट की अवधारणा में जिस साहसिक पर्यटन को आवाज दे रहे हैं, वह मनाली-मकलोडगंज में बिछते कंकरीट से कहीं बेहतर विकल्प हो सकता है। कुछ इसी तरह के अभिप्राय में बिलासपुर से बंगलाधार के लिए रज्जु मार्ग बनाने का जिक्र छेड़कर विधायक सुभाष ठाकुर, हिमाचल में पर्यटन विकास की नई राह चुनते हैं। बड़सर के विधायक इंद्रदत्त लखनपाल पूर्व प्रस्तावित शाहतलाई-दियोटसिद्ध रज्जु मार्ग को आगे बढ़ाने की मांग उठाते हैं। आश्चर्य यह कि विजन की ऐसी पसंदीदा फरमाइश भी वर्षों तक नजरअंदाज होती रही है। वार्षिक योजना में विधायक अगर पिछले कई वर्षों के संकल्प दोहराते हैं, तो हिमाचली प्रगति की निगाहें हैं कहां। शाहतलाई से दियोटसिद्ध के बीच रज्जु मार्ग का होना क्यों नहीं सालों बाद हकीकत में बदला, यह कथनी और करनी का फासला है, जो केवल हमें बरगलाता है। क्या प्रदेश अपने एक दशक का विजन दस्तावेज बनाकर नहीं चल सकता। क्या योजनाएं-परियोजनाएं भी सत्ता बनाम विपक्ष के बीच का फासला है, जिसे कभी लांघा नहीं जा सकता। हिमाचल के मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र के बाहर अपनी विभागीय कसौटियां तय करें, तो पूरे प्रदेश की प्राथमिकताओं में निखार आएगा वरना सत्ता का असर एक सीमित परिधि और खास पसंद में ही देखा जाएगा। इसीलिए हिमाचल में बार-बार विकास के मायनों में क्षेत्रवाद लौटता है। बस स्टैंड निर्माण की घोषणाओं में क्षेत्रवाद का लबादा नहीं उतरेगा, तो न जाने कब हमीरपुर या धर्मशाला के परिसर बनेंगे। ऐसे में विधायक अशीष बुटेल की प्राथमिकता में चीख बनकर उभर रही पालमपुर बस स्टैंड के साथ-साथ पार्किंग की मांग को समझना होगा। जिस तरह का बस स्टैंड ऊना में निर्मित हुआ, उसके मॉडल में कमोबेश हर शहर में इस तरह का संकल्प पूरा होना चाहिए। अनेक विधायकों ने चिकित्सा और शिक्षण संस्थानों की स्थिति सुधारने की अपेक्षा वर्तमान सरकार से की है, जबकि कई अन्य केवल कुछ कार्यालयों को खुलवा कर अपने सियासी प्रतीकों को जिंदा रखने की जिद पर अड़े हैं। किसान-बागबान की बात या रोजगार के नए अवतार को खोजने का जुनून हो हिमाचली विधायकों के पास शायद नवाचार को अपनाने का संकल्प दिखाई नहीं देता। रटी-रटाई और औपचारिक प्राथमिकताओं के बीच अगर ठियोग और नादौन के विधायक राकेश सिंघा और सुखविंदर सिंह सुक्खू कोल्ड स्टोर मांग रहे हैं, तो ऐसी मांग का प्रतिनिधित्व सभी विधानसभा क्षेत्रों में होना चाहिए। ऊना के विधायक सतपाल रायजादा यातायात समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में अगर शहर के लिए रिंग रोड की मांग कर रहे हैं, तो कमोबेश सभी शहरों के लिए परिवहन व्यवस्था को सही करने के लिए नवाचार चाहिए। बंजार के विधायक सुरेंद्र शौरी ने बाइपास की अहमियत में जो संकल्प लिया, उसकी सबसे अधिक जरूरत में जोगिंद्रनगर, बैजनाथ, ज्वालामुखी और योल छावनी जैसे शहर दिखाई देते हैं। एक अलग धरातल पर खड़े कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर ने भांग की खेती को वैध तरीके से उगाने की नीति मांगी है, तो ऐसे विषयों पर एक व्यापक चिंतन व सहमति की जरूरत है। बहरहाल हिमाचल के विधायकों द्वारा जारी अभिमत ऐसे विकास का शब्दकोश है, जो स्वाभाविक अर्थों में क्षेत्र की जनता के समक्ष खुद को प्रतिबिंबित करता है। वहीं स्कूल-कालेज या किसी छोटे-बड़े कार्यालय की मांग के अलावा जनप्रतिनिधियों ने ऐसे खाके तैयार नहीं किए, जो वर्तमान युग की प्रासंगिकता में खड़े रहने की अनिवार्यता है। वर्ष को विकास के मुहावरों में चित्रित करना आसान है, लेकिन भविष्य की गणना में सही लक्ष्यों को चुनना और उनकी परिभाषा को गढ़ना ही वक्त की मांग है।

शेष अगले अंक में। 


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