विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Jan 11th, 2020 12:20 am

स्वास्थ्य के साधारण नियमोपनियम एक ओर, इनकी मनमानी एक ओर, तथा इस रस्साकशी में सामान्य व्यवस्था लड़खड़ा जाती है और इन हारमोनों की मनमानी जीतती है। इन स्रावों का रासायनिक विश्लेषण करने पर वे सामान्य स्तर के ही सिद्ध होते हैं, उनमें कुछ ऐसी अनहोनी मिश्रित नहीं दीखती, जिससे ऐसे उथल-पुथल भरे परिणाम होने चाहिए…

-गतांक से आगे….

शरीर-शास्त्रियों ने इस अद्भुत जीवनदायिनी तत्त्व को ढूंढने का प्रयत्न किया तो उनकी पकड़ में अंतःस्राव ग्रंथियां आ गईं। इनमें कुछ प्रधान हैं, कई उपप्रधान हैं। इनमें तनिक-तनिक से रस स्रवित होते रहते हैं और वे रेंगकर रक्त में जा मिलते हैं, जिन्हें हारमोन कहते हैं। इनके भी कई भेद-उपभेद ढूंढे गए हैं। इतना सब होते हुए भी आश्चर्य का विषय है कि इनमें आखिर ऐसा क्या जादू है, जो शरीर की सामान्य व्यवस्था में इतनी भयानक उलट-पुलट वे करके रख देते हैं। स्वास्थ्य के साधारण नियमोपनियम एक ओर, इनकी मनमानी एक ओर, तथा इस रस्साकशी में सामान्य व्यवस्था लड़खड़ा जाती है और इन हारमोनों की मनमानी जीतती है। इन स्रावों का रासायनिक विश्लेषण करने पर वे सामान्य स्तर के ही सिद्ध होते हैं, उनमें कुछ ऐसी अनहोनी मिश्रित नहीं दीखती, जिससे ऐसे उथल-पुथल भरे परिणाम होने चाहिए। पर ‘चाहिए’ को ताक पर रखकर जब ‘होता’ है, सामने आता है, तो बुद्धि चकरा जाती है और इस अंधाधुंधी में हाथ पर हाथ डालकर बैठना पड़ता है। जहां तक खोज का विषय है, उन अंतःस्रावी ग्रंथियों का, उनसे प्रवाहित होने वाले रसों का स्वरूप समझ लिया गया है और उनका रासायनिक विश्लेषण कर लिया गया है, पर उनकी असाधारण महत्ता और असाधारण हरकत का कुछ कारण नहीं जाना जा सका। इतना ही नहीं, उनके नियंत्रण का भी कोई उपाय हाथ नहीं लगा है। यह मोटा और भोंडा तरीका है कि उसी स्तर के रसायन बाहर से पहुंचाकर, उन स्रावों की कमी-वेशी के परिणामों को रोकने का प्रयत्न किया जाए। इतना ही बन पड़ा है, सो किया भी गया है। अन्य जीवों से प्राप्त करके अथवा रासायनिक पद्धति से विनिर्मित करके, उन रसों को व्यक्ति के शरीर में पहुंचाकर, यह प्रयत्न किया जाता है कि विकृतियों पर नियंत्रण किया जाए, उसका लाभ होता तो है पर रहता क्षणिक ही है। भीतर का उपार्जन बंद हो जाए, तो बाहर से पहुंचाई मदद कब तक काम देगी? इसी प्रकार जमीन फोड़कर स्रोत निकल रहा हो, तो उसे एक जगह से बंद करने पर दूसरे छेद से फूटेगा। यह तो तात्कालिक या क्षणिक उपचार हुआ। बात तब बनती है, जब उत्पादन के केंद्र स्वतः ही अपने स्रावों को घटा या बढ़ा लें।

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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