शनि मंदिर कोकिलावन

By: Jan 18th, 2020 12:22 am

दिल्ली से 128 किमी.की दूरी पर तथा मथुरा से 60 किमी.की दूरी पर स्थित कोसी कला स्थान पर सूर्य पुत्र भगवान शनिदेव जी का एक अति प्राचीन मंदिर स्थापित है। इसके आसपास ही नंदगांव, बरसाना एवं श्री बांके बिहारी मंदिर स्थित है। कोकिलावन धाम का यह सुंदर परिसर लगभग 20 एकड़ में फैला है। इसमें श्री शनि देव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर,श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां दो प्राचीन सरोवर और गोशाला भी हैं। कहते हैं जो यहां आकर शनि महाराज के दर्शन करते हैं, उन्हें शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या में शनि नहीं सताते। प्रत्येक शनिवार को यहां पर आने वाले श्रद्धालु शनि भगवान की 3 किमी. की परिक्रमा करते हैं। शनिश्चरी अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। शनि महाराज भगवान श्री कृष्ण के भक्त माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि कृष्ण के दर्शनों के लिए शनि महाराज ने कठोर तपस्या की। शनि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने इसी वन में कोयल के रूप में शनि महाराज को दर्शन दिए। इसलिए यह स्थान आज कोकिलावन के नाम से जाना जाता है।

माता यशोदा ने नहीं करने दिया शनि को कृष्ण दर्शन- जब श्री कृष्ण ने जन्म लिया, तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पधारे। कृष्णभक्त शनिदेव भी देवताओं संग श्रीकृष्ण के दर्शन करने नंद गांव पहुंचे। परंतु मां यशोदा ने उन्हें नंदलाल के दर्शन करने से मना कर दिया,क्योंकि मां यशोदा को डर था कि शनि देव कि वक्र दृष्टि कहीं कान्हा पर न पड़ जाए। परंतु शनिदेव को यह अच्छा नहीं लगा और वो निराश होकर नंद गांव के पास जंगल में आकर तपस्या करने लगे। शनिदेव का मानना था कि पूर्ण परमेश्वर श्रीकृष्ण ने ही तो उन्हें न्यायाधीश बनाकर पापियों को दंडित करने का कार्य सौंपा है तथा सज्जनों, सतपुरुषों, भगवत भक्तों का शनिदेव सदैव कल्याण करते हैं। भगवान श्री कृष्ण शनि देव की तपस्या से प्रसन्न हो गए और शनि देव के सामने कोयल के रूप में प्रकट हो कर कहा, हे शनि देव आप निःसंदेह अपने कर्त्तव्य के प्रति समर्पित हो और आप के ही कारण पापियों,अत्याचारियों, कुकर्मियों का दमन होता है और परोक्ष रूप से कर्म परायण, सज्जनों, सतपुरुषों, भगवत भक्तों का कल्याण होता है, आप धर्म परायण प्राणियों के लिए ही तो कुकर्मियों का दमन करके उन्हें भी कर्त्तव्य परायण बनाते हो, आप का हृदय तो पिता की तरह सभी कर्त्तव्यनिष्ठ प्राणियों के लिए द्रवित रहता है और उन्हीं की रक्षा के लिए आप एक सजग और बलवान पिता की तरह सदैव उनके अनिष्ट स्वरूप दुष्टों को दंड देते रहते हो। हे शनि देव! मैं आप से एक भेद खोलना चाहता हूं  कि यह बृज क्षेत्र मुझे परम प्रिय है और मैं इस पवित्र भूमि को सदैव आप जैसे सशक्त रक्षक और पापियों को दंड देने में सक्षम कर्त्तव्य परायण शनि देव की छत्रछाया में रखना चाहता हूं।  इसलिए हे शनि देव आप मेरी इस इच्छा को सम्मान देते हुए इसी स्थान पर सदैव निवास करो, क्योंकि मैं यहां कोयल के रूप में आप से मिला हूं। इसीलिए आज से यह पवित्र स्थान कोकिलावन के नाम से विख्यात होगा। यहां कोयल के मधुर स्वर सदैव गूंजते रहेंगे, आप मेरे इस बृज प्रदेश में आने वाले हर प्राणी पर नम्र रहें साथ ही कोकिलावन धाम में आने वाला आपके साथ-साथ मेरी भी कृपा का पात्र होगा।

मंदिर का इतिहास- गरुड़ पुराण में व नारद पुराण में कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है। तो शनि महाराज का भी कोकिलावन में विराजना भगवान कृष्ण के समय से ही माना जाता है। बीच में कुछ समय के लिए मंदिर जीर्णशीर्ण हो गया था। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व में राजस्थान में भरतपुर महाराज हुए थे, उन्होंने भगवान की प्रेरणा से इस कोकिलावन में जीर्णशीर्ण हुए मंदिर का अपने राजकोष से जीर्णोद्धार कराया। तब से लेकर आज तक दिन पर दिन मंदिर का विकास होता चला आ रहा है।

 

 


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