श्रवण कुमार की गाथा अब नहीं सुनाई पड़ती

करसोग – पाश्चात्य संस्कति की गुलामी और पैसे की खनक मे माघ महीने गाए जाने वाली वास्तबारा (मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की गाथा) की धुन लुप्त होती जा रही है। पांगणा मण्डी जिला ही नहीं अपितु हिमाचल प्रदेश का ऐतिहासिक गांव है। यहां के उप-गांव बाग-भुट्ठा में पारंपरिक लोक गाथाओं का मौखिक भंडार है। सिया, ऐंचली, जति, हणु, माड़गीत, नैहरी कुल्ह, नृत्य गीत, संस्कार गीत जैसे अनेक गीतों के साथ गुग्गा गाथा, बास्तवारा जैसी लोकगाथाओं की समृद्ध धाराएं आज भी व्रत-त्योहार-उत्सव में प्रवाहित होती रहती हैं। आज का समाज भारतीयता से ऊबकर पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम में धकेल रहा है। दिग्भ्रांत समाज की दिशा बदलने के लिए वास्तबारा(श्रवण गाथा) का शिक्षाप्रद 13 मिनट का प्रेरक गाथा गायन सदियों से चली आ रही माता तीर्थ, पिता तीर्थ की बहुत ही अनूठी संस्कार संपन्न परम्परा का आलोक फैलाता ज्योति पुञ्ज है। लेकिन कितने शर्म की बात है कि इस वर्ष भी इस गाथा का गायन पांगणा-करसोग के किसी भी घर के आंगन में नहीं हुआ। गाथा गायक परसराम और कलीराम का कहना है कि कांढी, सराओड़ी, काहली, अणैल, थाच, चटोल, सूईं और घांघली गांव में मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की इस अमर गाथा और गाथा गायकों का आज भी बहुत ज्यादा आदर सम्मान किया जाता है। इन गांवों में गाथा सुनने के लिए लोकगायकों को सम्मान पूर्वक बैठाकर तथा परिवार के सभी सदस्य सामने बैठकर श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति की अमर गाथा श्रद्धा भाव और चाव से सुनकर स्वयं को धन्य करते हैं। झांझ वाद्य की मधुर धुन के साथ लोकगाथा सुनाकर माता-पिता की सेवा का दिव्य संदेश देकर सभी को आकर्षित करते हैं। इस गाथा में वृद्ध-दुर्बल अंधे माता-पिता को कंधे पर वाहंगी उठाकर चारधाम यात्रा करवाते समय ऋषि माता-पिता द्वारा प्यास लगने पर श्रवण कुमार सरयू की जलधारा से जल लाने गये। गड़वी में जल भरते समय गड़गड़ की आवाज से श्रवण कुमार की जगह किसी वन्य जीव को जल ग्रहण करते समझ अयोध्या के महाराजा दशरथ जी द्वारा अनजाने में छोड़े गए शब्दभेदी बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु होने तथा पुत्र वियोग में ऋषि दंपति द्वारा देह त्याग करने से पूर्व ऋषि द्वारा अयोध्या के राजा दशरथ को भी पुत्र वियोग में मृत्यु शाप का करुणा प्रधान मार्मिक वर्णन है, कि पुत्र के वियोग में जिस तरह हम व्याकुल होकर देह त्याग रहे हैं उसी तरह पुत्र की वियोग जनित व्याकुलता से राजन आपके भी प्राण जाएंगे। इस प्रकार वैश्य ऋषि दंपति राजा दशरथ को शाप देकर करूणायुक्त विलाप करते हुए दोनों स्वर्ग सिधार गए। इस गाथा गायन के माध्यम से समृद्ध भारतीय संस्कति का निकट से दर्शन करवाते लोकगाथा गायक परसराम और कलीराम का कहना है कि गाथा गायन के बाद कई परिवार तो चरण स्पर्श कर आशीर्वाद भी लेते हैं तथा अन्न के साथ पर्याप्त मात्रा में धनदान कर पारिवारिक सुख समृद्धि की मंगल कामना के साथ अगले वर्ष फिर गाथा गायन का निमंत्रण भी एक वर्ष पूर्व ही दे देते हैं। सुकेत संस्कति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष साहित्यकार डाक्टर हिमेंद्र बाली हिम पुरात्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्व.चंद्रमणी पुरातत्व चेतना राज्य पुरस्कार से व अनेक जिला व राज्य पुरस्कारों से सम्मानित संस्कति ममर्ज्ञ डाक्टर जगदीश शर्मा, व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता, पतंजलि योगपीठ के भारत स्वाभिमान ट्रेस्ट के जिलाधिकारी जितेंद्र महाजन, तहसील प्रभारी चेतन शर्मा, युवा प्रेरक पुनीत गुप्ता और वरिष्ठ समाज सेवी डी.पी.शर्मा जी का कहना है कि मोबाइल के चलचित्र रूपी जहर से आज हमारी संस्कृकृति बिखरती जा रही है। चारों ओर झूठी प्रतिष्ठा है तो पाश्चात्य रहन-सहन, पहनावे, पाश्चात्य गीतों व पाश्चात्य मूल्यों की है। यही कारण है कि हमारी गौरवपूर्ण लोक संस्कति का क्षय हो रहा है।