श्री गोरख महापुराण

By: Jan 4th, 2020 12:20 am

गतांक से आगे…

अपने सामने हुनमानजी  को देखकर वह हड़बड़ा कर उठ बैठी और हनुमान जी को बैठने के लिए आसन दिया। रानी मैनाकिनी हनुमानजी के आगे हाथ जोड़कर बोली, प्रभु इस समय कष्ट उठाने का कारण। हनुमान जी बोले, जिसका भक्त संकट में हो उसे कैसे चैन पड़ सकता है। हनुमानजी की बातें सुनकर रानी ने अधीर होकर पूछा, प्रभु मुझ पर ऐसा कौन सा संकट आने वाला है? हनुमानजी बोले, कोई खास बात नहीं, पर मानसिक कष्ट तो है ही। रानी बोली, आपकी रक्षा में रहते हुए संकट? यह तो बड़े आश्चर्य की बात है। रानी तुम्हारे कहने से मैंने मछेंद्रनाथ को तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करने के लिए यहां भेजा था। वह बारह वर्ष से तुम्हारी इच्छा पूर्ति कर रहे हैं,जिनकी वजह से तुम्हें एक पुत्र रत्न भी प्राप्त हुआ है। परंतु मछेंद्रनाथ का चेला गोरखनाथ बड़ा ही दुराग्रही और शक्ति संपन्न है। वह अपने गुरु को यहां से निकालने के लिए आ पहुंचा है और अपने गुरु को यहां से साथ लेकर ही लौटेगा। हनुमानजी की बात सुनकर मैनाकिनी रानी बहुत उदास हो गई और बोली, प्रभु किसी युक्ति से आप उसे समझाइए। हनुमानजी बोले,वह समझने वाला नहीं है। उसका एक ही लक्ष्य है कि उसे अपने गुरु को इस नरक कुंड की दलदल से बाहर निकालना है। रानी मैनाकिनी बोली, प्रभु तो क्या फिर कोई उपाय नहीं है। हनुमानजी ने उत्तर दिया कि रानी मेरी समझ में तो एक ही उपाय आ  रहा है कि तुम अपने मोहिनी रूप के त्रिया जाल में  मछेंद्रनाथ को फंसाए रखो, जिससे गोरखनाथ का कोई उपाय सफल ही न हो। अगर तुम्हारे रूप जाल का बंधन ढीला रह गया, तो गोरखनाथ अपने गुरु को यहां से निकाल ले जाने में सफल हो जाएगा। रानी मैनाकिनी कुछ और कह पाती इससे पहले ब्रह्ममुहूर्त आ जाने के कारण दिन निकलने से पहले ही हनुमान जी अंतर्ध्यान हो गए। दिन निकलते ही रानी की सखियों की निद्रा भंग हो गई। कालिंगा सुंदरी और उसकी सखियों ने देखा कि गोरखनाथ पद्म आसन लगाए बैठे हैं। वह सब जल्दी-जल्दी नित्य कर्मों से फारिग हुईं। गोरखनाथ तैयार ही  थे। सबके रथ में सवार हो जाने पर वह सारथी के स्थान पर बैठ रथ हांकने लगे। चिन्नापट्टन से चला रथ शृंगमुंड राजधानी त्रिया राज्य के प्रथम द्वार पर आ पहुंचा जिसे कालिंगा सुंदरी ने तुरंत रुकवा दिया और गोरखनाथ से कहा कि अब आप भी अपना स्त्री रूप धारण कर लें। इतने में सब सुंदरियां रथ से उतर गईं, तो गोरखनाथ ने अपनी योगमाया द्वारा अपने चोले को नारी रूप में परिवर्तित कर दिया। उनका नारी रूप निहार सभी सुंदरियों को हैरत हुई और कलिंगा सुंदरी प्रसन्न होकर बोली, बाबा जी आपने तो सुंदरताई को भी मात दे दी। मेरे विचार से मो इस त्रिया राज्य की कोई भी सुंदरी आपके मुकाबले में नहीं ठहर सकेगी। कलिंगा सुंदरी की बात सुनकर गोरखनाथ मुस्करा दिए। तब कलिंगा सुंदरी ने नियमानुसार अपनी एक सेविका को रानी मैनाकिनी के दरबार में भेजा। जिससे मछेंद्रनाथ के पास बैठी महारानी को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया और फिर बोली आदरणीय महारनी जी मेरी स्वामिनी कलिंगा आपको संगीत कला का प्रदर्शन दिखाना चाहती हैं।          


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