श्री गोरख महापुराण

By: Jan 18th, 2020 12:16 am

गुरु मछेंद्रनाथ ने अपने प्रिय शिष्य को सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देकर श्रेष्ठ आसन पर बिठाया। उसके बाद कुशल क्षेम पूछा। तब गोरखनाथ ने अपने बारह वर्ष की विद्या प्राप्ति का ब्यौरा दिया कि किस प्रकार भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और राजा गोपीचंद के राज्य में पहुंच कर जालंधरनाथ की कैद का हाल जानना और कणिफानाथ से आपके यहां मिलने का समाचार सुनना। हनुमान और श्रीराम की भेंट का विवरण और कलिंगा सुंदरी के त्रियाराज्य में आने और स्त्री रूप धारण करने वगैरह का सारा हाल और कहां किस प्रकार विद्याएं सीखीं सब कुछ सुना डाला…

गतांक से आगे…

कारण यह था कि इतना सस्ता आदमी जो दिन भर में केवल दो रोटियां ही खाए और हरफनमौला की तरह काम करे मिलना मुश्किल है। पर ईश्वर इच्छा के आगे मजबूर है। यह सोचकर सीने पर पत्थर रखकर कलिंगा सुंदरी ने अपने मन को काबू में किया। जान बची और लाखों पाए लौट के बुद्धु घर को आए।

गोरखनाथ की मछेंद्रनाथ से भेंट

गोरखनाथ पकड़े गए। कितने खटराग करके वह इस त्रिया राज्य में आए थे कि अपनी माता मैनाकिनी से जान-पहचान कर अपने गुरु से वार्तालाप करेंगे। परंतु महारानी मैनाकिनी अपनी सेविकाओं को उपदेश देकर चली गई कि इस स्त्री भेषधारी पुरुष को मेरे सामने लाकर उपस्थित करो। गोरखनाथ सेविकाओं के साथ राजी-खुशी चले गए। वहां उन्हें अति श्रेष्ठ स्थान बैठने के लिए दिया गया। तब रानी बोलीं, मैं आपका परिचय जानना चाहती हूं। गोरखनाथ को हनुमानजी द्वारा रानी को सचेत करने की उस बात का पता था, जो श्रीराम और हनुमान जी के बीच हुई थी। इसलिए योग विद्या द्वारा अपना असली रूप प्रकट करके बोले, माता जी अब मैं अपने यथार्थ रूप में हूं। आपके राज्य में पुरुष प्रवेश वर्जित था इसलिए योग विद्या द्वारा मुझे स्त्री रूप धारण करना पड़ा। मेरा नाम गोरखनाथ है और योगी मछेंद्रनाथ मेरे गुरुदेव हैं। यह सुनकर रानी बोलीं कि बेटा मैं तुम्हें तुम्हारे गुरु से मिलाए देती हूं। फिर गुरु चेला आपस में निपट लेना। इतना कहकर वह गोरखनाथ को संग लेकर मछेंद्रनाथ के पास जा पहुंची और बोली, आपके शिष्य आपसे वार्तालाप करने आए हैं। गोरखनाथ ने अपने गुरु को रत्नजडि़त सिंहासन पर तकिए के सहारे आसीन पाया, तो वह तुरंत ही मछेंद्रनाथ के चरणों को स्पर्श करके बोले, गुरुदेव आपका शिष्य गोरख आपको नमस्कार करता है।

गुरु मछेंद्रनाथ ने अपने प्रिय शिष्य को सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देकर श्रेष्ठ आसन पर बिठाया। उसके बाद कुशल क्षेम पूछा। तब गोरखनाथ ने अपने बारह वर्ष की विद्या प्राप्ति का ब्यौरा दिया कि किस प्रकार भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और राजा गोपीचंद के राज्य में पहुंच कर जालंधरनाथ की कैद का हाल जानना और कणिफानाथ से आपके यहां मिलने का समाचार सुनना। हनुमान और श्रीराम की भेंट का विवरण और कलिंगा सुंदरी के त्रियाराज्य में आने और स्त्री रूप धारण करने वगैरह का सारा हाल और कहां किस प्रकार विद्याएं सीखीं सब कुछ सुना डाला। मछेंद्रनाथ ने गोरखनाथ के गौरव की प्रंशसा की। अपने गुरु से अपनी प्रशंसा सुनकर गोरखनाथ बोले, गुरुदेव मुझे जो भी विद्याएं प्राप्त हुई हैं, वह सब आपके ही आशीर्वाद का फल है। मेरे क्रिया-कलापों में आपका ही आशीर्वाद समाया हुआ है। इसी कारण मुझे कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। मछेंद्रनाथ चुपचाप अपने शिष्य की वार्तालाप सुनते रहे। अपने गुरु को चुप्पी साधे हुए देखकर गोरखनाथ बोले, गुरुदेव आप स्वयं भी तो ऊर्ध्वरती योगी हैं। आपको इस त्रिया राज्य की रानी के भोग विलास में लिप्त देखकर हमारे नाथ पंथ की कितनी निंदा हो रही है। गोरखनाथ की बात सुनकर मछेंद्रनाथ लज्जा सी दर्शाते हुए बोले, बेटा गोरखनाथ तुम्हारा कहना मिथ्या नहीं है। परंतु मैं विवशता वश ही यहां ठहरा हुआ हूं। गोरखनाथ बोले, क्या आप मुझे समझाने की कृपा करेंगे कि वह कौन सी विवशता है? मछेंद्रनाथ बोले, जब मैं तुम्हें बद्रीनाथ जाने का आदेश देकर स्वयं तीर्थ यात्रा को चल पड़ा, तो सेतुबंध रामेश्वरम में मेरी हनुमान जी से भेंट हुई।                                                                       – क्रमशः

 


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