साहित्यकार जटियानंद

By: Jan 17th, 2020 12:05 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

वे नई सदी के साहित्यकार थे। लिखते कम और बोलते ज्यादा थे। उपदेश के पाठ उन्हें पूरी तरह कण्ठस्थ थे। उम्र में थोड़ा अधेड़ होने से वे नए रचनाकारों पर टूट पड़ते तथा उन्हें अदभुत और जीवंत लिखने की सीख देते। अंग्रेजी लेखकों का उदाहरण देकर समझाते कि वे लोग वाकई मेहनत करते हैं और वे अपने लेखन में मील का पत्थर गाड़ते हैं। एक बार मैं भी उनके चक्कर में आ गया और देने लगे कबीर की साखियों सी सीख। अधकचरा समझकर मुझसे बोले-शर्मा तुम्हारे भीतर प्रतिभा का पुंज है, लेकिन तुम्हारी संगत और उठा-बैठक गलत लोगों के साथ होने से तुम्हें कोई धांसू ब्रेक नहीं मिल रहा। हमारे साथ रहो, अविलंब साहित्याकाश पर धूमकेतु की तरह देदीप्यमान हो जाओगे। मैंने कहा-प्रभो मैं तो छोटा-सा स्टार हूं। बस यों ही शौकिया लिख-पढ़ लेता हूं। मैं साहित्य को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं हूं। इस बार उन्होंने मुट्ठी को ताना और मेज ठोककर बोले-हम तुम्हें स्टार नहीं, साहित्य का सुपरस्टार बना सकते हैं, बशर्ते तुम अपनी संगत को सुधारो। शायद तुम नहीं जानते कि आज साहित्य में गुटबाजी कितनी गहराई का रूप ले चुकी है। भाई यह क्यों नहीं समझते कि तुम्हारी बीस किताबें आने के बाद भी कोई पुरस्कार नहीं मिल रहा। उधर हमारे ग्रुप के लोग हर वर्ष पुरस्कारों में बाजी मार रहे हैं। लाभ-हानि का गणित समझना होगा शर्मा, वरना घास खोदते रहो, पहचान का संकट तुम्हारे सामने आजीवन बने रहने वाला है। मैंने तुम्हारे भीतर टेलेंट की चिंगारी देखी है, इसलिए तुम हमें ज्वाइन कर लो, सब ठीक हो जाएगा। नई सदी के साहित्यकार जटियानंद दूसरे की सुनते कम और अपनी कहते ज्यादा थे। वह बिना मेरे उत्तर सुने आगे बोले-फिर हिंदी में लिखा भी बहुत हल्का जा रहा है। हिंदी लेखक पढ़ता नहीं, लिखता ज्यादा है। इस तरह कूड़े की अभिवृद्धि में हिंदी लेखकों का योगदान निस्सीम है। तुम्हारी रुचि अनुवाद में हो तो मैं तुम्हें कुछ काम बता सकता हूं। देखो तुम्हें ब्रेक कैसे नहीं मिलता? मैंने बीच में ही कहा-लेकिन जब मैं मौलिक लेखन कर सकता हूं तो मुझे अनुवाद क्यों करना चाहिए? दरअसल जटियानंद जी बात यह है कि अनुवाद साहित्य की श्रेणी में नहीं आता। मैं अच्छी व्यंग्य रचनाएं लिख सकता हूं तो अनुवाद से मुझे हासिल क्या होगा? जटियानंद जी मेरी बात से बौखलाए, कान में अंगुली घुमाकर एक अंग्रेजी पत्रिका के पन्ने पलटते हुए बोले-यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें अंग्रेजी आती ही नहीं। भाई तुम अंग्रेजी नहीं जानने से बहुत पीछे हो। सवाल अनुवाद का नहीं है। अनुवाद से तुम्हें भाषा का संस्कार मिलेगा और यह संस्कार ही तुम्हें साहित्य में ऊंचाई दे सकता है। मैं फिर कहूंगा कि तुम हमारी संस्था ज्वाइन कर लो। हमारी संस्था से बड़े-बड़े लोग जुड़े हुए हैं। ये ही पुरस्कार देते हैं और पुरस्कार निर्णायक समितियों के सदस्य होते हैं। हमने अभी कपिल कुमार ‘कपिल’ एकदम युवा साहित्यकार को पुरस्कार देकर सम्मानित करवाया है। बात के मर्म को समझ सको तो समझो वरना हवा में मुट्ठी तानने से कुछ नहीं होने वाला।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App