साहित्यिक फिजाओं में कितनी हुई सरकारी कदमताल

By: Jan 12th, 2020 12:05 am

हिमाचली साहित्य वार्षिकी : भाग-तीन

वर्ष 2019 में हिमाचल में साहित्य के क्षेत्र में क्या उपलब्धियां रहीं, इसका लेखा-जोखा हम प्रतिबिंब में देने जा रहे हैं। साहित्यिक फिजाओं में सरकारी कदमताल कितनी रही, नए लेखकों ने साहित्य के आसमान को कितना खोजा, इसका ब्योरा भी हम इस अंक में दे रहे हैं। साथ ही सृजन की दृष्टि से इस साल को विभिन्न साहित्यकार कैसे देखते हैं, इस पर भी नजर डालेंगे। पेश है साहित्य वार्षिकी पर प्रतिबिंब की तीसरी और अंतिम किस्त:

रमेश चंद्र ‘मस्ताना’

मो.-9418458914

हिमाचल की साहित्यिक फिजाओं में रंग भरने तथा सृजनकर्ताओं की कला को निखारने के लिए कुछ एक सरकारी उपक्रमों का योगदान सराहनीय कहा जा सकता है। वर्ष 2019 के साहित्यिक परिदृश्य पर यदि विहंगम दृष्टिपात किया जाए तो कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां भी सामने आई हैं तो कुछ एक स्थानों पर साहित्यिक समाज को निराशा भी हाथ लगी है। सर्वप्रथम यदि भाषा एवं संस्कृति विभाग की बात की जाए तो इसके तत्त्वावधान में संस्कृत दिवस, हिंदी दिवस और पहाड़ी दिवस के जिला और प्रदेश स्तरीय आयोजनों के अतिरिक्त समर फेस्टिवल के आकर्षक कार्यक्रम प्रदेश की संस्कृति और साहित्यिक प्रतिभा को उभारने में सफल रहे हैं। इस संदर्भ में पहाड़ी दिवस एवं पहाड़ी सप्ताह का आयोजन सराहनीय रहा है, परंतु पहाड़ी भाषा की संवैधानिक मान्यता के मसले पर आज तक कोई सार्थक पहल न हो पाना वेदना की अनुभूति कराता है। विभिन्न जयंती समारोह के क्रम में 6-7 जुलाई को चंद्रधर शर्मा गुलेरी जयंती चंबा में और 3 दिसंबर को यशपाल जयंती धर्मशाला में मनाई गई जिनमें संबंधित विभूतियों पर शोध पत्र एवं चर्चा के साथ बहुभाषी कवि सम्मेलनों का भी आयोजन किया गया। उधर, हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी द्वारा गत वर्ष भी पूर्व परंपरा अनुसार छह जयंती समारोह आयोजित किए गए जिनमें 15-16 फरवरी को ठाकुर राम सिंह जयंती हमीरपुर में, 3 अप्रैल को लालचंद प्रार्थी जयंती बिलासपुर में, 12 अप्रैल को मनोहर सिंह जयंती शिमला में, 11 जुलाई को पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम जयंती बड़ोह में, 4 अगस्त को डा. वाईएस परमार जयंती एवं 28 सितंबर को आचार्य दिवाकर दत्त जयंती का आयोजन शिमला में किया गया।

जयंतियों के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले समारोहों के बीच पहाड़ी गांधी जयंती में बाबा कांशी राम के पैतृक घर को धरोहर के रूप में स्वीकृति मिलने की जो आशाएं प्रबुद्ध समाज ने लगाई हुई थीं, उस पर भी सरकार की ओर से स्पष्ट सार्थक संदेश न मिलना आज की तारीख तक कचोट रहा है। पत्रिका प्रकाशन के क्रम में अकादमी द्वारा पहाड़ी में हिम भारती, हिंदी में सोमसी और संस्कृत में श्यामला का प्रकाशन तो हो ही रहा, परंतु कई बार संयुक्त अंक निकालने की प्रथा में कुछ लंबा इंतजार भी करना पड़ता है। गत वर्ष ही चिर-प्रतीक्षित अकादमी पुरस्कारों की घोषणा भी काफी सुखद संदेश लेकर आई, जिसमें गंगाराम राजी, केशव राम शर्मा, जाहिद अबरोल, बद्री सिंह भाटिया, इंद्र सिंह ठाकुर, सरोज परमार व चंद्ररेखा ढडवाल के नाम उनकी अमूल्य रचनाधर्मिता के लिए घोषित हुए हैं। इसी प्रकार हिमाचल संस्कृत अकादमी के माध्यम से जहां संस्कृत के प्रचार-प्रसार एवं उत्थान के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए और विद्या ज्योति नामक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है, वहां गत वर्ष के मध्य हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा संस्कृत को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता देने, प्राइमरी स्तर से पढ़ाए जाने और संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना से संबंधित आधिकारिक घोषणा ने संस्कृत एवं संस्कृति प्रेमियों के बीच एक सुखद एहसास की अनुभूति कराई है। वर्ष 2019 में साहित्य प्रेमियों के लिए आयोजित शिमला एवं धर्मशाला में पुस्तक मेलों की भी खूब धूम मची और इन मेलों के मध्य विविध साहित्यिक आयोजनों में कई साहित्यकारों ने मंचीय प्रस्तुतियों से अपनी-अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया। कागंड़ा जनपद में पहली से आठ नवंबर तक आयोजित त्रिगर्त उत्सव की धूम भी पूरे जिलाभर में रही, जिसमें मुख्यालय धर्मशाला में आयोजित विविध कार्यक्रमों के अतिरिक्त नूरपुर, देहरा, कांगड़ा एवं पपरोला के बहुभाषी कवि सम्मेलन, शोध पत्र प्रस्तुतियां एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। इस सबके अतिरिक्त सरकारी माध्यम से साहित्य के क्षेत्र में प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं में सूचना एवं जन संपर्क विभाग की मासिक पत्रिका हिमप्रस्थ तथा साप्ताहिक पत्र गिरिराज का नियमित रूप से प्रकाशन लेखकों के लिए वरदान से कम नहीं है। साहित्य को समृद्ध बनाने और संस्कृति को सुदृढ़ करने की दिशा में प्रत्येक जनपद में जिला भाषा अधिकारी की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। कई जिलों में मासिक अथवा द्विमासिक गोष्ठियां भी होती है, जबकि कुछ एक जिलों में मात्र एक-दो ही गोष्ठियां होने से काव्य जगत में सूखे की सी स्थिति भी रहती है।

हमीरपुर में आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों में संस्कृत एवं हिंदी दिवस के कार्यक्रम, राजभाषा पखवाड़े के कार्यक्रम, गांधी जयंती पर नादौन में कवि सम्मेलन, सलोणी-बड़सर में सांस्कृतिक कार्यक्रम व बहुभाषी कवि सम्मेलन व गोष्ठियां प्रमुख रहीं। सोलन जिला में मुख्यालय के कार्यक्रमों के अतिरिक्त नालागढ़ तथा शूलिनी मेले के कार्यक्रम के अतिरिक्त रेडक्रास मेले के मध्य कवि सम्मेलन और पहाड़ी दिवस की पूर्व संध्या के आयोजनों के अतिरिक्त संस्कार गीतों पर आयोजित कार्यशाला वर्ष 2019 की विशेष उपलब्धियां रहीं। चंबा जिला की यदि बात की जाए तो कवि गोष्ठियों के अतिरिक्त महाविद्यालय में शाम-ए-गजल, नुक्कड़ नाटक एवं लोक नृत्य संबंधी आयोजन करवाए गए। चंबा की धरोहर कुंजड़ी-मल्हार के संरक्षण के लिए कार्यशाला का आयोजन भी सार्थक कहा जा सकता है। कांगड़ा जिला में हिंदी एवं संस्कृत दिवस के अतिरिक्त विभिन्न स्कूलों में आयोजित अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ एक कवि गोष्ठी एवं मुसाधा गायन पर कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण रहा। मंडी जिला में शहर मंडी के कार्यक्रमों के अतिरिक्त महादेव में गुलेरी जयंती, द्रंग में यशपाल जयंती और बिंद्रावनी में आयोजित बाल कवि गोष्ठी एवं गुरु गोबिंद सिंह गुरुद्वारा परिसर में आयोजित कार्यक्रम प्रमुख रहे। सिरमौर जिला में विभिन्न दिवसों पर आयोजित कार्यक्रमों व कवि गोष्ठियों के अलावा नाहन के केंद्रीय कारागार में आयोजित कवि सम्मेलन प्रमुख रहे। राजधानी शिमला में जहां जिला भाषा अधिकारी द्वारा स्वतंत्र रूप से साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, वहीं भाषा विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में भी कार्यक्रम आयोजित होते रहे। इसी प्रकार प्रदेश के अन्य जिलों की साहित्यिक गतिविधियां भी कवियों-लेखकों की प्रेरणा एवं प्रस्तुति का माध्यम समय-समय पर बनती रही। दूसरी ओर कुछ एक सरकारी आयोजनों के प्रबंधन को ठेकेदारी अथवा आउटसोर्स पद्धति पर भी देने का प्रयास होने लगा है। ऐसी परंपरा को साहित्यकारों के हित में एक स्वस्थ परंपरा नहीं माना जा सकता है।

साहित्यिक सफर में तय किए कुछ और पड़ाव

गुरमीत बेदी

मो.-9418033344

अगर मैं वर्ष 2019 का लेखा-जोखा करने बैठूं तो मुझे कम से कम इस बात का संतोष होगा कि साहित्यिक दृष्टि से यह साल मेरे लिए कतई भी शुष्क और निरर्थक नहीं रहा, बल्कि साहित्यिक सफर पर चलते हुए मैंने कुछ और पड़ाव तय किए। इस साल बेशक कम लिखा और कम साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ, लेकिन साहित्यिक गतिविधियों में मैंने बराबर शिरकत की और वरिष्ठ एवं युवा साहित्यकारों के सान्निध्य में कई नए अनुभव हासिल किए। मेरे लघु उपन्यास ‘खिला रहेगा इंद्रधनुष’ पर टेली फिल्म के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ तो दिल्ली के हिंदी भवन में मुझे लाइफ  टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाजा गया। हालांकि मेरा यह मानना है कि यह अवार्ड किसी वरिष्ठ और सुपात्र साहित्यकार को मिलना चाहिए था। मैं स्वयं अभी साहित्य का विद्यार्थी हूं और कई पड़ाव अभी तय करने हैं। लेकिन इसके बावजूद वरिष्ठ साहित्यकारों की थपकी ने मुझे नई ऊर्जा से सराबोर किया। इस साल साहित्य के क्षेत्र में रोमांचित होने के कई और अवसर भी आए। वर्ष की शुरुआत में ही मेरी पांच साहित्यिक कृतियां नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले  का हिस्सा  बनीं और पुस्तक मेले में देश के कई नामचीन लेखकों से मिलने का सौभाग्य भी हासिल हुआ। इस दौरान कई गोष्ठियों में शिरकत की और चर्चाओं में भी भाग लिया। इस वर्ष सितंबर में चंडीगढ़ में मेरे द्वारा आयोजित व्यंग्य की महापंचायत में हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व ट्राइसिटी चंडीगढ़  के व्यंग्यकारों ने जब पूरे उत्साह के साथ शिरकत करके इसे कामयाब बनाया और देश के नामी व्यंग्यकारों व समीक्षकों डा. सुभाष चंदर, अनूप श्रीवास्तव व राम किशोर उपाध्याय ने बतौर मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि इसमें भाग लिया तो वह पल मुझे रोमांचित कर गए। पहली बार उत्तरी भारत के इन राज्यों के व्यंग्य शिल्पी एक मंच पर आए और सार्थक चर्चा में भाग लिया। इंडिया टुडे में मेरे कहानी संग्रह ‘सूखे पत्तों का राग’ की समीक्षा प्रकाशित होने से भी मुझे रोमांचित होने का अवसर मिला। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में 3 बार मुझे कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया गया और इस अवसर पर कई नए कवियों का सान्निध्य मुझे आह्लादित कर गया। दूरदर्शन में भी कविता पाठ कार्यक्रम में कई नए कवियों व उनकी कविताओं से रूबरू होने का मौका मिला। इस साल मेरा काफी समय एस्ट्रोलॉजी पर शोध पुस्तक को अंतिम रूप देने में लगा, जिस कारण साहित्यिक लेखन कम हो पाया। फिर भी अक्षर पर्व, अभिव्यक्ति, अनुभूति, अन्यथा, अट्टहास, कादम्बिनी, सरिता सरीखी पत्रिकाओं के अलावा कई समाचारपत्रों के साहित्य परिशिष्ट पर मेरी कविताएं, लेख, समीक्षाएं व व्यंग्य प्रकाशित हुए। मृदुला  श्रीवास्तव  के कहानी संग्रह और मुरली मनोहर श्रीवास्तव के व्यंग्य संग्रह की भूमिका मैंने लिखी। मेरे कई व्यंग्य लेख अनूदित होकर पंजाबी, मराठी व उडि़या की पत्रिकाओं में भी छपे। जर्मन कवयित्री रोजविटा ने मेरे कविता संग्रह ‘मेरी ही कोई आकृति’ का जर्मनी में अनुवाद किया। हिंदी में सृजन के लिए मुझे कनाडा में सम्मानित किया गया।  इस साल जब भी मुझे समय लगा, मैंने नए लेखकों को खूब पढ़ा। अगर हिमाचल प्रदेश के युवा साहित्यकारों की बात करूं तो  गणेश गनी ने अपनी कविताओं के विरल मुहावरे, अनूठी शैली व तेवर से सर्वाधिक प्रभावित किया। प्रदेश व देश के कवियों के रचनाकर्म पर उनकी समीक्षाएं भी लगातार ध्यान आकर्षित करती रहीं। सोशल मीडिया पर भी उनकी रचनाओं को सराहा गया। इनके अलावा प्रदेश के युवा साहित्यकारों में नवनीत शर्मा, अजेय, आत्मा रंजन, पवन चौहान, सुरेश शांडिल्य व राजीव त्रिगर्ती लगातार अपनी लेखनी से प्रभावित करते रहे। कंचन शर्मा व प्रियंवदा की लेखनी ने भी आश्वस्त किया।

अगर प्रदेश के वरिष्ठ लेखकों की बात की जाए तो प्रो. कुमार कृष्ण, डा. सुशील कुमार फुल्ल, एसआर हरनोट, राजेंद्र राजन, सुदर्शन वशिष्ठ, बद्री सिंह भाटिया, गंगाराम राजी, केआर भारती, कुलदीप शर्मा, सरोज परमार, चंद्ररेखा ढडवाल, कृष्ण चंद्र महादेविया सहित कई साहित्यकार लेखन के मोर्चे पर बराबर सक्रिय रहे और यह साबित किया कि उनकी रचनाओं का फलक व्यापक होने के साथ-साथ  उनमें हिमाचल भी प्रतिबिंबित होता है। इनकी रचनाओं में आंचलिकता की सुगंध है। ट्रिब्यून में श्रीनिवास जोशी के हिमाचल के विभिन्न सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक व सामाजिक पहलुओं पर लिखे जाने वाले कॉलम को पिछले कई वर्षों की तरह इस साल भी मैं लगातार  पढ़ता रहा। उनका यह कॉलम  मुझे बेहद पसंद है। शोध व समीक्षा के क्षेत्र में डा. हेमराज कौशिक व सोशल मीडिया में अपनी साहित्यिक टिप्पणियों व लेखन शैली से वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार कृष्ण भानु निरंतर प्रभावित करते रहे। इधर युवा लेखक वीरेंद्र शर्मा वीर के शोध कार्य ने भी लगातार लेखन जगत का ध्यान आकर्षित किया है। प्रदेश के अन्य युवा व वरिष्ठ साहित्यकारों पर विस्तार से फिर कभी लिखूंगा। अगर देश के साहित्यिक परिदृश्य की बात करें तो जिन रचनाकारों ने मुझे अपनी विरल लेखन शैली, भाषा, शिल्प व कथ्य की दृष्टि से इस वर्ष मुझे अत्यधिक प्रभावित किया, उनमें अनामिका अनु,  पंकज प्रसून, प्रज्ञा रोहिणी, जमुना बिनी, आशीष चौधरी, दिव्य प्रकाश दुबे, अनु सिंह चौधरी, योगिता यादव, पंकज दुबे, अनिल यादव व भूमिका द्विवेदी सरीखे नाम शामिल हैं। इसके अलावा भी नए प्रतिभावान युवा साहित्यकारों की फेहरिस्त लंबी है। इस वर्ष दिव्य हिमाचल ने प्रदेश के व्यंग्य परिदृश्य पर फोकस करके जो कड़ी प्रकाशित की, उसे मैंने अपने दिल के करीब पाया। पहली बार किसी समाचार पत्र ने प्रदेश के लेखकों को व्यंग्य विधा पर आयोजित बहस में भागीदार बनाया। इस साल कई मौके ऐसे भी आए जब एक लेखक के रूप में मैं विचलित भी हुआ। खासकर अबलाओं से दरिंदगी की घटनाओं ने मुझे बेहद विचलित किया। चिंताजनक बात यह है कि ऐसी घटनाएं थम नहीं रहीं। यह सोच कर दुख भी होता है कि समाज का चेहरा इतना विद्रूप क्यों होता जा रहा है और हम इतने संवेदनहीन समय से क्यों गुजर रहे हैं?

साहित्य का आसमान खोजते नए लेखक

डा. अदिति गुलेरी

मो.-9816305643

साहित्य के फलक की बात की जाए तो यह साहित्यिक फलक बहुत व्यापक, असीम और समृद्ध है। नए लेखकों के लिए यह साहित्यिक लेखन एक परिंदे की उड़ान की तरह होता है। उसे यह मालूम नहीं होता है कि उसके पंखों में कितनी शक्ति है, उसकी कलम में कितनी ताकत है। वह अपनी सामर्थ्य, शक्ति के अनुसार इस क्षेत्र में उड़ता है और अपना लेखकीय कर्म करता है। नए लेखक भी लेखन के क्षेत्र में उन बच्चों की तरह होते हैं जो कभी घुटने के बल चलते हैं, फिर गिरते हैं, फिर उठते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक वे अपने कदमों पर पूर्णतया खड़े नहीं हो जाते। इस लेखकीय जीवन यात्रा में वे कभी अपने प्रेरकों को, कभी अपने आलोचकों को पाते हैं। प्रेरक व्यक्तित्व उसे इस लेखकीय प्रतिक्रिया हेतु सजग, प्रेरित करते हैं। अच्छे समीक्षक नए लेखक को उसकी रचना की कमियों से रूबरू करवाते हैं। नए लेखकों ने बीते साल साहित्य के आसमान को खोजने में अपना बखूबी योगदान दिया। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न कोनों से, अनेक साहित्यिक मंचों से नए लेखकों को अपनी बात कहने व अन्य लेखकों की बात सुनने का सुअवसर मिला। गुंजन रेडियो, सिद्धबाड़ी, धर्मशाला के साहित्यिक मंच पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, शोधार्थियों, महिला साहित्यकारों, युवा साहित्यिकारों द्वारा मासिक गोष्ठियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया गया। सर्वेश कुमार, शालिनी, शुभम, शिवदत्त, शालेहा प्रवीण, शिवा पंचकरण, शेर सिंह, अंजलि, शिवानी, आरुषि, आरती, अप्पा साहेब गोरक्ष, लता रानी कपूर आदि नए लेखक बीते साल समक्ष आए। महिला साहित्यकार संस्था, सिरमौर इकाई से हिमानी सिंह राणा, रेनू शर्मा, सुरेखा रानी एवं नीना शर्मा और शंखनाद मीडिया, सिरमौर द्वारा नए लेखकों को भी मंच के साथ-साथ सम्मानित भी किया जाता रहा है। लेखक संघ बिलासपुर, बिलासपुर पत्रकार संघ द्वारा यदा-कदा मासिक गोष्ठियों में रवींद्र शर्मा, अनिल नील, जीवन बिलासपुरी, दिनेश सम्वत, विजय कुमारी, सत्या, रक्षा ठाकुर, प्रदीप गुप्ता, जीत राम सुमन, कुलदीप चंदेल, शिवराम गर्ग, अनीता शर्मा, यासीन मिर्जा, रवींद्र, आनंद सोहड़ आदि नवोदित लेखकों का साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण हुआ। सुकेत साहित्यिक सांस्कृतिक परिषद सुंदरनगर से हीरा सिंह कौशल, रोशन मावीरिक आदि नए लेखकों द्वारा साहित्य की गद्य व पद्य दोनों विधाओं में लेखन कार्य किया गया।

शिमला से एसआर हरनोट के नेतृत्व में युवा साहित्यकारों को कुशल निर्देशन के साथ अभिव्यक्ति का मंच व बुक कैफे गोष्ठियों को निरंतरता दी गई। आथर्ज गिल्ड संस्था द्वारा भी प्रत्येक जिले में युवाओं, नए लेखकों को साहित्य के साथ जोड़ा गया। चंबा से टीसी सावन द्वारा साझा काव्य संग्रह ‘कसक बाकी है’ एवं ‘व्योम तक उड़ान’ के अंतर्गत नए लेखकों की कविताओं को प्रकाशित कर समाहित किया गया। राष्ट्रीय कवि संगम, कांगड़ा लोक साहित्य परिषद नेरटी, संस्कार भारती आदि संस्थाओं द्वारा नए लेखकों की लेखनी को संजीवनी प्रदान की गई। हिमाचल कला, संस्कृति, भाषा अकादमी और भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा भी इस साल विद्यालय एवं महाविद्यालयों में जाकर विद्यार्थियों में चित्रकला, भाषण, वाद-विवाद आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाया गया। पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम, त्रिगर्त की आवाज, यशपाल जयंती आदि के माध्यम से उन्हें साहित्यिक माहौल से भी साक्षात करवाया गया। विद्यार्थियों में भी नए लेखकों की संभावना इन कार्यक्रमों में दृष्टिगत हुई। सारांशतः कहा जा सकता है कि नए लेखकों ने अभी इस साहित्य के फलक में एक उड़ान ही भरी है। भविष्य के गर्भ में यह छिपा है कि कौन सा नया लेखक समाज को साहित्यिक उपादेयता प्रदान करता है। टैलेंट हंट के तहत अगर संस्थाएं साहित्यिक प्रतियोगिताएं करवाएं तो निःसंदेह नए लेखक भी लेखन के सफर पर चल सकते हैं। उनके लेखन के भविष्य की संभावनाएं भी इन कार्यक्रमों के अंतर्गत देखी जा सकती हैं।

साहित्य की अनेक विधाओं ने छुआ आसमान

अशोक दर्द

मो.-9418248262

वर्ष 2019 का शुभारंभ पुस्तक मेले से हुआ। विश्व पुस्तक मेले के दौरान प्रगति मैदान दिल्ली में हिमाचल प्रदेश संस्कृति, कला एवं साहित्य अकादमी के सौजन्य से एक खूबसूरत कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। मैंने भी हिमाचल के वरिष्ठ व नवोदित कवियों के साथ वहां कविता पाठ किया तथा पुस्तक मेले से रुचि के अनुसार कुछ पत्रिकाएं व पुस्तकें खरीदी। इस वर्ष बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं से गुजरना हुआ, जिनमें हिमभारती, सोमसी, बिपाशा, शब्द मंच, व्यंग्य यात्रा, साहित्य गुंजन, हिमाचल हैड न्यूज व साहित्य कलश इत्यादि शामिल हैं। कई पत्रिकाओं ने आकर्षित किया तो कुछ रचनाएं बार-बार पढ़ीं। हर एक विधा की अलग-अलग जानकारी हुई तथा अपनी अलग छाप छोड़ गई। हिमाचल से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका सृजन सरिता ने भी अपना रंग जहन में छोड़ा। और हां, यदि अखबारों के साहित्यिक पृष्ठों की बात करूं तो दिव्य हिमाचल का प्रतिबिंब सबसे सार्थक साहित्य से भरपूर एवं लोकप्रिय रहा। हिमाचल के परिप्रेक्ष्य में ही नहीं, अपितु देश के परिपे्रक्ष्य में भी प्रतिबिंब का अपना मेयार रहा है। यहां हिमाचली साहित्य एवं साहित्यकारों को भरपूर स्थान दिया गया। यह अपने आप में ऐतिहासिक एवं हिमाचली साहित्यकारों के लिए गौरवपूर्ण है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के कई युवा साहित्य क्षेत्र में उभर कर सामने आ रहे हैं। इनमें कई नाम गिनाए जा सकते हैं। हर एक लेखक की अपनी पसंदीदा विधा रहती है जिसमें वह कुछ औरों से हटकर बेहतर करता है तो स्वतः नजर उस पर चली जाती है। आपको बता दूं यह मेरी व्यक्तिगत राय है, किसी दूसरे का सहमत होना अनिवार्य नहीं। गजल विधा की बात की जाए तो अनंत आलोक एक उभरते हुए युवा रचनाकार हैं जो राष्ट्रीय पटल पर अपनी रचनात्मकता से पहचान बनाने में जुटे हैं। हिमाचली पहाड़ी कविता की बात करें तो कई युवा रचनाकार साधनारत हैं। मैं अपनी रुचि की बात करूं तो विनोद भावुक हिमाचली में बेहतर लिख रहे हैं, वह मेरे पसंदीदा हिमाचली कविताकार हैं। जहां तक लघुकथा विधा की बात है तो इसमें देवराज ढडवाल का नाम भी चर्चित लघुकथाकारों में लिया जा सकता है। यदि हिंदी कहानी की बात की जाए तो इस वर्ष हमीरपुर के संदीप शर्मा हमारे बीच नए उभरते हुए कहानीकार दर्ज होते हैं जो राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं। यदि हिंदी कविता एवं ग़ज़ल की बात करें तो नवनीत शर्मा का लेखन मुझे बहुत प्रभावित करता है और युवा संपादकों में डा. विजय कुमार पुरी सृजन सरिता पत्रिका के माध्यम से साहित्य सेवा में जुटे हैं। यह भी एक प्रसन्नता देने वाली बात है।

बाल लेखन में कई लेखक रचनारत हैं, परंतु राष्ट्रीय पटल पर जिस व्यक्ति का खास मुकाम रहा है, वह हैं मंडी के पवन चौहान। पवन चौहान का बाल साहित्य भी मुझे बखूबी पसंद है। यदि महिला लेखन की बात करें तो कुछ वर्षों में बहुत सी महिला रचनकारों ने इसमें पदार्पण किया है। इन सभी ने अपनी खूबसूरत लेखनी से महिला लेखन को पुख्ता ढंग से समृद्ध किया है। इनमें बहुत सी लेखिकाओं के साहित्य को उद्धृत किया जा सकता है। परंतु एक नाम जो सबसे ज्यादा उभर कर सामने आता है, वह है कंचन शर्मा। महिला लेखन में कंचन शर्मा ने अलग और औरों से हटकर बुलंदियां हासिल की हैं। वरिष्ठ लेखकों का लेखन साहित्य में अपनी विशिष्ट जगह बनाए हुए है। साहित्यकार के रूप में विगत वर्ष मेरे लिए उपलब्धियों भरा रहा, मेरी दो कविता पुस्तकें प्रकाशित हुईं। इनमें ‘संवेदना के फूल’ मेरी व्यक्तिगत पुस्तक रही। ‘महकते पहाड़’ में हिमाचल प्रदेश के 14 कवियों को मैंने संपादित कर उनकी रचनात्मकता को साहित्यिक पटल पर लाने का प्रयास किया है जिसका मुझे बहुत हर्ष है कि साहित्यिक जगत में इस कार्य के लिए सराहना मिली। कई पत्र-पत्रिकाओं में मेरे द्वारा किए गए साक्षात्कार छपे और कई पत्र-पत्रिकाओं में किताबों की समीक्षा भी छपी। अतः इस बात से प्रसन्न होना स्वाभाविक है। जहां तक विचलित होने का प्रश्न है, मुझे नहीं लगता मैं कभी किसी कमी को देखकर विचलित हुआ हूंगा, क्योंकि मैं हमेशा आधा गिलास खाली नहीं, भरा हुआ देखता हूं।

कलम को मिली पहचान

सुरेंद्र मिन्हास

मो.-7018927464

वर्ष 2019 में मैंने 50 से अधिक हिंदी कविताएं, 40 से अधिक कहलूरी कविताएं, 40 से अधिक आलेख और फीचर, सौ से अधिक क्षणिकाएं तथा हिंदी व कहलूरी में दर्जनों लघुकथाएं भी लिखी। दिव्य हिमाचल के अलावा साप्ताहिक गिरिराज, साप्ताहिक हैड न्यूज हिमाचल, पाक्षिक शब्द मंच, साहित्य सृजन मासिक तथा छमाही हिम भारती (पहाड़ी) में मेरी रचनाओं को स्थान मिला जो मेरे लिए गौरव की बात है। मैंने पिछले वर्ष साहित्यिक आयोजनों में (सरकारी व निजी) 36 के लगभग मंचों पर नवीनतम रचनाओं और शोधपत्रों से अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवाई। जहां जिस भी समाचारपत्र या पत्रिका में मेरी रचनाएं छपी, उन रचनाओं पर सैकड़ों सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्रदेश व देश भर के विख्यात लेखकों से प्राप्त हुईं जिससे मेरा अपने लेखन पर भरोसा स्थापित हुआ। यहां तक कि सरकार द्वारा विभाग को दिए कार्यक्रमों में भाषा एवं संस्कृति विभाग के लिए अथक मेहनत करके ड्राफ्ट तथा योजनाएं बना कर दीं जो सरकार ने स्वीकार कर ली हैं। आशा है कि उन पर शीघ्र ही क्रियान्वयन होगा। मेरा मानना है कि एक लेखक तभी अपने लेख या रचना में समयानुकूल प्रभावी बन सकता है यदि वह लगातार श्रेष्ठ लेखकों की रचनाओं का विवेचनात्मक अध्ययन करता रहे। जनवरी-जून 2019 की हिम भारती में छपी कृष्णचंद्र महादेविया की ‘बरसाती री बुझणियां’ तथा इसी अंक में चंबा के अशोक दर्द की ‘बड़ी सोहणी चंबे री घाटी’ कविता ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। हिंदी काव्य लेखन में नागपुर की इंदिरा किसलय की कविताओं ने मानो जादू सा कर दिया। इंदिरा की कविताओं में शब्द बनावट, गहरी विषय पकड़ तथा लोक समस्याओं की गहरी पैठ साफ झलकती है। लघुकथाओं में सोलन के रामकृष्ण कांगडि़या की रचनाओं ने भाव-विभोर कर डाला। इन सभी लेखकों ने गत वर्ष मेरे मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी। अक्तूबर माह में बिलासपुर के प्रताप सिंह पटियाल द्वारा दिव्य हिमाचल के संपादकीय पृष्ठ पर छपा ‘बेसहारा गोधन अर्थ-व्यवस्था का हिस्सा’ पढ़ा तो वह लेख मेरे दिल को कचोट गया। इस लेख में लेखक ने जहां किसानों की रीढ़ की हड्डी पशुधन को माना, वहीं प्रदेश की सड़कों पर हजारों की संख्या में आवारा गोवंश पर चिंता व्यक्त की। प्रताप सिंह पटियाल ने सरकार से लेख के माध्यम से प्रश्न किया कि जब सरकार इस बेसहारा घूम रहे गोवंश की सुध नहीं ले पाई है तो ऐसे में देश की हमारी अर्थ-व्यवस्था मातम तो मनाएगी ही। पटियाल सुझाव दे रहे हैं कि 70 प्रतिशत किसान आज भी गोधन पर निर्भर करता है, तो गोधन का उपयोग करना सरकारों का दायित्व है। इस वर्ष के दौरान आए खुशी के क्षण का जहां तक संबंध है तो जब मेरी रचना ‘किती गए सै बाईं सूहडे’ कहलूरी बोली में हिम भारती पत्रिका में छपी तो यूं लगा कि मानो मन में हजारों फूल खिल गए। इससे अपने लेखन पर तथा कलम पर कुछ विश्वास सा होने लगा कि मेरे लेखन में कुछ तो है। प्रसन्नता के वो लम्हें मेरी जिंदगी से कभी दूर नहीं हो सकते। जहां तक निराशा के क्षणों की बात है तो मुझे साहित्य में राजनीति के प्रवेश से खासा दुख है। एक  हित्यकार कभी भी कांग्रेसी, भाजपाई या कामरेड नहीं होना चाहिए। जब कुछ साहित्यकारों ने भारत सरकार द्वारा दिए पुरस्कार वापस किए तो मेरा मन अत्यंत व्यथित हो उठा। मेरा मानना है कि ऐसे साहित्यकारों, जो भारत सरकार द्वारा दिए सम्मान को ठुकराते हैं, को काली सूची में डाला जाना चाहिए तथा उनसे सारी सुविधाएं छीन लेनी चाहिए।


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