सोलह की उम्र में शहनाज दुल्हन बन गईं

By: Jan 18th, 2020 12:20 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन : एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है चालीसवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

वाबों से हसीन दुल्हन

सोलह साल की उम्र में, मम्मी खूबसूरत दुल्हन बन गईं। उन्होंने मुसलमानों का पारंपरिक लिबास पहना- सिल्क का लाल गरारा, जिस पर बेहद महीन और जटिल जरदोजी कढ़ाई थी, जिसे कारीगर ने उस लड़की के लिए तैयार किया था, जिसके नसीब में एक दिन रानी बनना बदा था। ऐसा कहा जाता है कि जब निकाह का जोड़ा तैयार किया जाता है, तो कारीगर उस पर दुआएं पढ़ते हैं और उसे अपने प्यार से सजाते हैं। तो इसे पहनकर शहनाज एक ऐसी जिंदगी में जाने वाली थीं, जो उनके जोड़े की तरह ही जटिल थी। माथे पर उन्होंने दुआओं के लिए अपनी दादी का टीका लगाया हुआ था- खानदानी अमानत, जिसे सालों बाद, मैंने भी अपने निकाह पर पहना था। मोती महल, निकाह का मकाम, लाइटों, मोगरे और गुलाबों की लडि़यों से जड़ा पड़ा था, उनकी सोंधी खुशबू में लज्जतदार बिरयानी की महक मिल गई थी। शहनाई की मधुर धुन से भरे घर में बैठी शहनाज के मन में, बस यही उथल-पुथल थी कि वह आज रात अपने वालदैन के घर से रुखसत हो जाएंगी। उनके दिल में हताशा थी, तो कहीं रोमांच भी था। मल्लिका, जिनका निकाह छह महीने पहले हो चुका था, सुनहरा गरारा पहने अपनी छोटी बहन को कुछ जरूरी नसीहतें दे रही थीं। मुस्लिम शादी के वक्त दुल्हन को निजी जगह में रखा जाता है, जहां सिर्फ महिलाएं ही आ-जा सकती हैं, साथ ही यह भी रिवाज है कि दुल्हन खिड़की से बारात देख सकती है। जैसे ही बैंड की आवाज तेज होने लगी, और निकाह की घड़ी करीब आती गई, शहनाज अपनी सहेलियों और बहनों के साथ खिड़की पर बारात देखने आईं। उन्होंने खिड़की पर लगे लाइटों के झरोखे से झांककर नीचे देखा, निकाह की रात अपने पूरे शबाब पर थी। उनके मुंह से एक आह निकल गई और उन्हें अहसास हुआ कि वह कितनी खास हैं, ‘यह सब मेरे लिए है?’ वह खुशी से झूम उठीं। वह अपने प्रिंस चार्मिंग की एक झलक देखने के लिए खिड़की पर इंतजार करती रहीं, वह बड़े इत्मीनान से घोड़ों, हाथियों और फिर उनके पीछे ऊंटों के आते काफिले को देख रही थीं। इससे उन्हें कभी देखे गए सर्कस की याद हो चली। आखिरकार उन्हें अपने होने वाले शौहर दिखाई दिए, फूलों से सजी खुली कार में बैठे हुए, सुनहरी जरीदार शेरवानी और सेहरे से सजे हुए। जैसे ही उन्होंने अपने चेहरे से सेहरा हटाया, अचानक ही सब जगह मानो सन्नाटा हो गया, रोशनियां धुंधलाने लगीं, शहनाज को सिर्फ उस शख्स का चेहरा नजर आ रहा था, जिसके साथ उन्हें अब अपनी बाकी की उम्र गुजारनी थी।     


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