स्वामी जी की शिक्षा

By: Jan 18th, 2020 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

उनका यह भी कहना था कि लोकचार की निंदा न करके सब प्रिय लगने वाली बातें ही व्याख्यानों में कही जाएं। लेकिन उन्हें ंयह नहीं मालूम था कि भारतीय संन्यासी किसी और धातु का ही बना है। उन्होंने किसी की भी एक बात नहीं सुनी और न्याय पथ को न छोड़ते हुए आगे बढ़ते रहे। स्वामी जी की सफलता की खबरें भारत में भी पहुंच रही थीं। हिंदू लोग संन्यासी के कार्यों का विवरण कौतूहल व आग्रह के साथ सुनने लगे। रामानंद तथा खेतरी के राजाओं ने,जो स्वामी जी के शिष्य भी रह चुके थे, अपने गुरुदेव की सफलता पर अनेकों बधाई पत्र मिले। मद्रास के अंदर जहां उत्साही शिष्यों ने विशेष अनुरोध कर स्वामी जी को धर्म सभा में सम्मिलित किया था, वहां रामास्वामी मुदलियार और दीवान बहादुर सर सुब्रह्मण्यम अययर महोदय के नेतृत्व में एक विराट सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में सर्वसम्मति से स्वामी जी के प्रचार कार्य का अभिनंदन किया और उन्हें बधाई पत्र लिखा। कलकत्ता जो स्वामी जी की जन्मभूमि थी,वहां के लोगों में तो उत्साह व आनंद की लहर दौड़ गई थी, यहां भी एक विशाल आयोजन हुआ और सभी बाइज्जत लोग उसमें शामिल भी थे। स्वामी जी के प्रचार कार्य की सराहना की गई और इस महान कार्य के लिए उनका धन्यावाद किया गया।  शिकागो धर्मसभा के सभापति श्री बैरोज महोदय का भी इस सभा ने शुक्रिया अदा किया। पूरे देश में नवजागरण की एक लहर सी दौड़ गई। आत्महीनता के भाव आत्मगौरव में बदल गए। एक व्यक्ति ने अपनी शक्ति से पूरे देश के मनुष्यों को आत्मगौरव की चेतना से भर दिया। यह शक्ति तप और वैराग्य की शक्ति थी। यह शक्ति सार्वभौम मानव की हितचिंता की शक्ति थी। यह शक्ति ब्रह्म की शक्ति थी,यह आत्मा-परमात्मा की शक्ति थी। शिकागो धर्म सभा समाप्त हो जाने के बाद स्वामी जी लगभग एक वर्ष तक शहर-शहर घूमकर प्रचार करते रहे। उनके सभी भाषणों  की प्रतिलिपियां नहीं रखी गई। वे लिखित भाषण नहीं देते थे। यहां तक कि शिकागो धर्म सभा में भी उन्होंने अलिखित भाषण ही दिया। उस वक्त की पत्र-पत्रिकाओं में बहुत सी सामग्री न्यूज पेपरों आदि में प्रकाशित हुई। वह गीवएकर के एक सम्मेलन में भाषण देने गए। यहां के कुछ छात्र स्वामी जी के दर्शन करने को उत्सुक थे तथा शिक्षा पाने की प्रार्थना कर रहे थे। स्वामी जी ने उन छात्रों की प्रार्थना पर उन्हें शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया। इन छात्रों की शिक्षा भारतीय गुरुकुलों जैसे आकाश के नीचे व पेड़ की छाया में जमीन में बैठकर होने लगी। अनेकों स्थानों में प्रचार-प्रसार करते स्वामी जी न्यूयार्क लौटे। यहां एक छोटी सी सभा जिसका नाम ब्रुकलिन नैतिक था, के सभापति डाक्टर लुइस जी स्वामी जी का भाषण सुनकर काफी हद तक प्रभावित हुए थे, उन्होंने उक्त सभा में भाषण देने के लिए स्वामी जी को आमंत्रित किया। इनके आमंत्रित करने पर स्वामी जी ने एक विशाल भवन में हजारों लोगों के बीच भाषण दिया। एक प्रकार से यहां दिए गए भाषणों से वेद प्रचार के कार्य का आरंभ मानना चाहिए। क्योंकि यहीं पर इन्हीं दिनों में घूम-घूमकर प्रचार करना बंद करके उन्होंने न्यूयार्क में स्थायी रूप से वेदांत की शिक्षा देने के लिए कक्षा शुरू की।


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