हमारे ऋषि-मुनि, भागः 23 महर्षि कपिल

By: Jan 18th, 2020 12:15 am

सृष्टि विस्तार के लिए ब्रह्माजी ने जिन पुत्रों को उत्पन्न किया,उनमें से कर्दम ऋषि भी एक थे,जिन्होंने सरस्वती नदी के तट पर दस हजार वर्ष तक तप किया। ब्रह्माजी के पुत्र स्वायंभुव, मनु की बेटी  थी,देवहूति। कर्दम ऋषि का देवहूति से विवाह हुआ और इस दंपति के नौ कन्याएं पैदा हुईं। भगवान ने कहा,मैं भी अंशरूप में तुम्हारे घर जन्म लूंगा। समय आने पर सांख्यशास्त्र की संहिता की रचना करूंगा। नौ कन्याओं के जन्म के कुछ समय बाद कपिल वर्ण वाला पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम भी कर्दम ने कपिलदेव ही रख दिया। स्वयं भगवान मधुसूदन,मरीचि ऋषि तथा अन्य देवताओं ने देवहूति तथा राजर्षि कर्दम को बधाई दी। पुत्र के महात्म्य को भली प्रकार समझाया तथा बालक को साक्षात पूर्ण पुरुष कहा।

पिता ने नवजात शिशु से संन्यास की आज्ञा ली

जब भगवान ब्रह्मा,अनेक देवता व ऋषि चले गए, तो पिता कर्दम ने अपने पुत्र भगवान के अंश अवतार से प्रार्थना की मैं संन्यास धारण करना चाहता हूं। तब पुत्र कपिलदेव ने कहा, हे प्रजापते मेरे आदरणीय पिता राजर्षि कर्दम जी, मैं मुमुक्षुओं को आत्मज्ञान प्राप्त कराने,तत्त्वों का निरूपण करने के लिए ही धरती पर अवतरित हुआ हूं। आप हर प्रकार के बंधन से मुक्त हैं। आप संन्यास धारण करें। जब-जब आवश्यकता पड़े, मेरा ध्यान जरूर कर लीजिएगा। अपने समस्त कर्मों को मुझे अर्पित करते रहिएगा। मोक्ष पाने के लिए मेरी उपासना करना मत भूलिएगा। मेरी माता देवहूति की नैया पा लगेगी। यह भी मोक्ष प्राप्त कर लेंगी। जाइए सब प्रकार के शोक से छूट जाइए।

माता ने पुत्र कपिलदेव से उपदेश की प्रार्थना की

कपिलदेव के पिता कर्दम ऋषि वन को ऐसे गए कि फिर कभी आश्रम नहीं लौटे। कुछ समय बीत गया। बालक कपिलदेव अपनी माता की सेवा में तथा उन्हें प्रसन्न रखने में कोई कसर नहीं रखते। माता देवहूति ने एक दिन दोनों हाथ जोड़कर अपने पुत्र कपिलदेव से कहा,आप मुझे मार्ग दिखाइए,माया-मोह से दूर होने के उपाय बताएं। बालक ने अपनी माता को समझाया माताजी, आत्मा के बंधन और मुक्ति का कारण चित्त है अन्य कोई दूसरा नहीं। ध्यान रहे कि चित्त के शब्दादि विषयों में आसक्त होने पर बंधन का कारण बनता है। वही ईश्वर के प्रति अनुरक्त होने पर मुक्ति का कारण बन जाता है और दुष्ट पुरुषों का संग भी जीवात्मा को बांधने वाली दृढ़ फांसी है और सत्पुरुषों के संग को शास्त्रों में मोक्ष का द्वार कहा गया है। अतः हे माता सत्पुरुषों का संग करें, भक्ति से ऐहिक तथा पारलौकिक सुखों के प्रति वैराग्य उत्पन्न होता है। अष्टांग और भक्ति के द्वारा ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। भगवान कपिलदेव ने अपनी माता को भक्ति के लक्षण सांख्यशास्त्र की रीति से पदार्थों का वर्णन बताते हुए मोक्ष का मार्ग भी बताया।

बचा जा सकता है बार-बार जन्म लेने से

माता ने पुत्र से उपदेश पाकर उनकी स्तुति की। प्रसन्न होकर कपिलदेव ने कहा, मेरा मार्ग अपनाओ,मुक्ति पा लोगे। यदि ऐसा ही व्यवहार करोगी,तो संसार से छूटकर मेरे जन्म-मरण रहित स्वरूप को पा लोगी। जो नहीं समझते उन्हें बार-बार जन्म लेना पड़ता है। अपने पुत्र द्वारा बताए मार्ग पर चलते हुए माता देवहूति आश्रम में भक्तिभाव से निवास करती रहीं। कुछ और समझाने के बाद कपिलदेव ने आश्रम का त्याग कर दिया। पुत्र की अनुपस्थिति में माता ने शरीर त्यागकर परमधाम प्राप्त कर लिया। जहां पर देवहूति ने प्राण त्यागकर मुक्ति पाई,वह स्थान सिद्धपद के नाम से विख्यात हुआ। श्रद्धालुओं का वहां आना-जाना लगा रहता है।                – सुदर्शन भाटिया 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App