2019 में चुनिंदा लेखकों का नोटिस

By: Jan 5th, 2020 12:05 am

राजेंद्र राजन

मो.-8219158269

हिमाचल से बाहर छपने वाली पत्रिकाएं यहां के लेखकों की रचनाशीलता का नोटिस ले रही हैं। यह इस बात की आश्वस्ति है कि सृजन के स्तर पर श्रेष्ठ साहित्य की रचना हो रही है। क्रिएटिविटी को उम्र में नहीं बांधा जा सकता। यह साबित किया है चंद्ररेखा ढडवाल ने। वर्ष 2019 की उन्हें स्टार लेखिका कहा जाएगा। उनके उपन्यास ‘समय मेरे अनुरूप हुआ’ को पाठकों ने हाथों-हाथ लिया तो ‘पहल’ में गत कई सालों से कालम लिख रहे सूरज पालीवाल ने चंद्ररेखा के उपन्यास पर एक लंबा आलोचनात्मक लेख लिखा। ‘बया’ में चंद्ररेखा के कहानी संग्रह ‘सीवनें उधड़ती हुईं’ की समीक्षा कमलानंद झा ने की। हिमाचल ट्रिब्यून के कॉलमनिस्ट श्रीनिवास जोशी ने चंद्ररेखा की दोनों पुस्तकों की चर्चा की। 2019 में ही बद्री सिंह भाटिया कथा लेखन में खूब सक्रिय रहे।

इस साल उनकी दस कहानियां छपीं: ‘छल्ले में जिंदगी’ (लमही), विषधर (कथाक्रम), दोषमुक्त (प्राची), कहां है मेरा घर? (मधुमती), लोग नहीं छोड़ते (सोमसी), गोरखू चाचा (जनपथ), पाजे के फूल (समहुत), फिर किसी और जगह (बया) तथा गोरखू (पाखी)। पाखी में ही भाटिया की रचना प्रक्रिया पर एक आत्मपरक लेख भी छपा।

इसी साल जनवरी में वाणी प्रकाशन से एसआर हरनोट की पुस्तक ‘कीलें’ छपी। इस कहानी संग्रह का गर्मजोशी से स्वागत हुआ और पत्रिकाओं में समीक्षाओं की बाढ़-सी आ गई। पाखी, बनासजन, इंडिया टुडे, कादम्बिनी, दिव्य हिमाचल, लंदन की पत्रिका पुरवाई, अमर उजाला, सृजन सरोकार, सम्यक भारत में समीक्षाएं छपीं। पहल में ‘कीलें’ पर ही तथा समग्र कहानियों पर डा. स्मृति शुक्ल का आलेख भी चर्चित रहा। मेरियोला आफरीदी ने भी हरनोट की कहानियों पर अंग्रेजी में लंबा लेख लिखा। विपाशा में यूं तो अधिकांश लेखक हिमाचल से ही छप रहे हैं, किंतु इसी साल के एक अंक में गुलेरी के कृतित्व पर एक छोटा किंतु शोधपरक लेख छपा, जिसके लेखक हैं डा. सुशील कुमार फुल्ल। ‘बया’ ने हिमाचल के पौंग बांध विस्थापितों की सुध ली और एक महत्त्वपूर्ण लेख ‘विस्थापन की जंजीरों में पौंग की पीड़ा’ चर्चित रहा। पौंग पर ही त्रिलोक मेहरा की कहानी ‘टिटिहरियां’ और इन पंक्तियों के लेखक का एक संस्मरण ‘चंद रोज पौंग बांध विस्थापितों के बीच’ भी ‘बया’ में छपा। केशव की लंबी कहानी ‘बकरियों वाली झबरी’ (कथादेश में) खूब चर्चित रही।


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