अथश्री रिटायरमेंट व्रत कथा

By: Feb 11th, 2020 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

कुछ दशक पहले सरकारी क्षेत्र से कोई व्यक्ति जब रिटायरमेंट को प्राप्त होता तो उसके दफ्तर वाले छोटा सा विदाई समारोह आयोजित कर, उसे यथोचित उपहार और जलपान के साथ विदा कर देते। फिर समय बदला, लोग बदले। सन् उन्नीस सौ छियासी में आए पे-कमीशन ने लोगों के हाथ ऐसे खोले कि जिनके पांव चप्प्ल में थे, जूतों में जा घुसे, पैदल दोपहिए पर सवार हो गया और जिसके पास दोपहिया था, वह एट हन्ड्रेड तक जा पहुंचा। घरों के आकार-प्रकार बदलने लगे। ऐसे में लाजिमी था कि रिटायरमेंट विदाई समारोह का कलेवर भी बदलता। जब कार्यालय में सेवानिवृत्ति के समय रिटायर होने वाली चिडि़या के सम्मान में जलपान की जगह दोपहर के भोज का प्रबंध किया जाने लगा और उपहारों की कीमतें बढ़ने लगीं, तो उसे भी लोकलाज के चलते या कंजूस कहलाने के डर से घर में रात्रि भोज या धाम का बंदोबस्त करना पड़ता। शनैः शनैः रात्रि भोज में दूसरे दिन की धाम भी शामिल हो गई। अगले दो पे-कमीशन तक मामला कॉकटेल तक जा पहुंचा। भव्यता को प्राप्त होता यह समारोह अब कई दिनों का हो गया है। अब विवाहों की अवधि घटती जा रही है और रिटायरमेंट समारोह की भव्यता में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। जिस तरह हिंदी फिल्मों के करवा-चौथ व्रत की छूत ने कब समूचे भारत को अपने आगोश में जकड़ लिया, किसी को कानोंकान खबर न हुई, उसी तरह हिमाचल जैसे छोटे राज्य के इस सेवानिवृत्ति समारोह ने पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली जैसे प्रदेशों समेत अन्य स्थानों को अपने जाल में फांस लिया, किसी को पता न चला। किसी सेवानिवृत्ति समारोह में शामिल होने पर लगता है मानो सेवानिवृत्त व्यक्ति करगिल युद्ध जीतकर लौटा हो। सेवानिवृत्त होने वाली चिडि़या ने भले ही अपने दफ्तर में डक्का न तोड़ा हो, पर वह अपनी पत्नी के साथ इस तरह सजधज कर खड़ा होता है जैसे उसकी पहली शादी हो रही हो। उसके गले में अब फूलों की जगह रुपए के हार होते हैं। रिश्तेदार उसे टीका-तक बोल के साथ महंगे उपहार देकर, समारोह में अपनेपन की खुशबू बिखेरते हैं। नाच-गाने के साथ ऐसा धमाल मचता है मानो बारात नई दुल्हिनया लेकर वापस आई हो। अब कुछ स्थानों पर सेवानिवृत्ति की पूर्व संध्या पर सत्यनारायण कथा का आयोजन भी होने लगा है। सोचिए अगर किसी ज्ञानी पंडित ने अथश्री रिटायरमेंट कथा घड़ दी तो क्या होगा? होना क्या है, हमारे धार्मिक देश में यह कथा भी उतनी ही मशहूर होगी, जैसे कभी संतोषी माता पिक्चर के कथा-व्रत हुए थे। हो सकता है कोई उत्साही फिल्म निर्माता-निदेशक इस पर फिल्म भी बना दे। प्रियवृंद! रही नौकरी माता की व्रत-कथा की बात, तो उच्च कोटि का साधक न होने से मैं यह जिम्मा आप पर छोड़ता हूं। जिस भी पाठक की अथश्री रिटायरमेंट व्रत कथा उत्कृष्ट श्रेणी की होगी, सरकार द्वारा उसकी पुस्तक का प्रकाशन निःशुल्क किया जाएगा।


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