अवशेषों के सामने जयराम ठाकुर

By: Feb 17th, 2020 12:05 am

हिमाचल के मुख्यमंत्री कई नए पुराने प्रश्नों की उलझनों से बाहर निकलने का मुकाम ढूंढ रहे हैं और इस तरह उनके कार्यकाल की समीक्षा के कुछ नए संदर्भ अवश्य जुड़ रहे हैं। अपने तीसरे बजट से पूर्व हिमाचल की तीसरी आंख की हकीकत उस वक्त सामने आती है, जब उनकी सरकार निवेशकों के बीच अपना ठौर चुनती है या कनेक्टिविटी के समाधानों में अपने सपने बुन लेती है। जाहिर तौर पर जयराम ठाकुर के सामने पूर्व सरकारों के अवशेष को ठिकाने लगाने का दबाव रहेगा और कुछ अपनी धाराओं के अवरोधक मिटाने का संकल्प भी रहेगा। बेशक वक्त व केंद्र के समीकरण उनके हक में हैं और वह कमतर सियासी चुनौतियों के बीच चल रहे हैं। ऐसे में अतीत के कुछ अध्यायों को उन्होंने छूने से गुरेज किया। मसलन बड़े जिलों के विभाजन से लड्डू बटोरती राजनीति को दरकिनार किया, तो वीरभद्र सिंह की विस्तारवादी खूंटे पर टंगे एक और राजधानी के प्रश्न को निरस्त किया। अब उनके सामने जो अवशेष हैं, उनमें वीरभद्र सिंह से प्रेम कुमार धूमल की सरकारों के कई आदेश हैं। वीरभद्र सिंह ने गली-कूचे तक स्कूल-कालेज पहुंचा कर जो शाबाशी लूटी उसका रिटर्न जयराम सरकार को भरना है यानी शिक्षा में गुणवत्ता का अक्स भरना है। धूमल सरकार ने निजी विश्वविद्यालयों और इंजीनियरिंग कालेजों की खासी तादाद में शिक्षा को सस्ता प्रमाणपत्र बना दिया, तो इस रास्ते पर पैदा हुए बेरोजगार को काम पर लगाने के लिए वर्तमान सरकार की इच्छा शक्ति, प्रतिज्ञा तथा नए इरादे देखे जाएंगे। पूर्ववर्ती सरकारों ने मेडिकल कालेजों की खेप उतारकर चिकित्सा के ढांचे को जर्जर किया, तो ऐसे फैसलों के अवशेष में दबी स्वास्थ्य सेवाओं को बाहर निकालने का हुनर वर्तमान सरकार को दिखाना है। वह अपनी ही केंद्र सरकार के उस फैसले के अवशेष देख रहे हैं, जहां करीब 69 नेशनल हाई-वे तथा फोरलेन परियोजनाएं राजनीतिक जादूगरी कर रही हैं। ऐसे में अवशेषों से बाहर निकलने के प्रयास में जयराम व उनकी सरकार के लिए वर्तमान दौर मुआयनों का है। वह सपने बांट सकते हैं और अपने निजी सपनों को संवार सकते हैं। इन्वेस्टर मीट उनकी परिकल्पना की मार्गदर्शक प्राथमिकता रही है, तो कनेक्टिविटी के प्रश्न पर वह अपने संकल्पों की दृढ़ता दिखा सकते हैं। आलोचक व सियासी टिप्पणियों से उनके यादगार पक्ष का संघर्ष इस दौर में स्पष्टता देखा जाएगा, लेकिन यह एक अवसर है ताकि भविष्य में सनद हो कि वक्त का रुख मोड़ा भी जा सकता है। उनके सामने कांगड़ा दौरे के दौरान अवशेषों के ढेर पर संघर्ष खड़े हुए, तो अब वक्त आ गया है कि वह सीधे लकीरें खींचे। चीखते केंद्रीय विश्व-विद्यालय के मंजर पर या हाइड्रो इंजीनियरिंग कालेज के भविष्य पर उन्हें निर्णायक होना होगा। कहना न होगा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर निर्णायक हो भी रहे हैं और इसके लक्ष्य में इन्वेस्टर मीट के फायदे पहले से लिखे जा चुके हैं। कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार पर सरकार की दृढ़ता काम कर गई या पठानकोट-मंडी फोरलेन पर मुख्यमंत्री के फैसलों की लकीर लंबी हो गई, तो वह एक साथ पूर्व के कई अवशेष मिटा देंगे। विकास के अर्थ बदलने की राजनीतिक कीमत तय है, लेकिन कारवां बनाने के लिए अवरोध हटाने का जज्बा भी तो चाहिए। इसे साफगोई कहें या मुख्यमंत्री का नया अवतार सामने आया है, जो जनता को विकास के नए मानचित्र की शर्तें समझा रहा है। यह दीगर है कि हिमाचल में भू-अधिग्रहण के सुर ऊंचे करते हुए विस्थापित समाज के अधिकारों की भरपाई भी  ऊंचे मानदंडों पर करनी होगी। बजट सत्र अगर निजी निवेश के नजदीक खड़ा होना चाहता है, तो भू-अधिग्रहण के मसले पर सरकार को अपना दिल व आंचल इतना बड़ा करना होगा कि विस्थापन सिर्फ दर्द नहीं प्रगति के विकल्प को चुनना बन जाए। इसी के साथ यह भी देखना होगा कि जब बजट आए तो सरकार के भीतर निकम्मे उपक्रम छांटे जाएं और केंद्र के इशारे में पीपीपी मोड को आगे बढ़ाया जाए। हिमाचल के अपने वजूद में कर्मचारी नहीं, सरकारी कार्य संस्कृति को बचाया जाए। बेशक जयराम सरकार की संरचना में हिमाचल की भाजपा राजनीति के कई अवशेष हटाए गए हैं, लेकिन अब देखना यह होगा कि कहीं सरकार के भीतर ही तो ऐसा कुछ पैदा नहीं हो रहा। खासतौर पर जब मंत्रिमंडल का विस्तार अपेक्षित है, तो जयराम ठाकुर की राजनीतिक इच्छा शक्ति की पड़ताल इस प्रकार होगी कि वह किसे सरका कर, किसे आगे लाते हैं। यह मानना पड़ेगा कि  दो साल के प्रदर्शन के बीच सरकार के बीच भी अवशेष पैदा हुआ है और जिसे मुख्यमंत्री ही अपने विशेषाधिकार से हटा सकते हैं।  


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