आत्म पुराण

By: Feb 15th, 2020 12:16 am

गतांक से आगे…

इस कारण बल या शक्ति विज्ञान से अधिक है। वह बल भूमि रूप अन्न से उत्पन्न होता है,इससे भूमि रूप अन्न उस बल से अधिक है। वह अन्न वृष्टि रूप जल से उत्पन्न होता है,इस कारण वह जल भूमि रूप जल से अधिक है। जल की वृष्टि का कारण तेज है और तेज का आधार आकाश है। सुषुप्ति के अंत में जो पूर्व दृष्ट आकाश स्मरण होता है उसी से आकाश का अस्तित्व विदित होता है और यह कार्य इसी प्रकार होगा, इस प्रकार की जो आशा है,वही स्मरण का कारण होती है। इसीलिए वह आशा स्मरण से भी अधिक है। हे नारद! इस प्रकार वाक, मन, संकल्प, चित्त, ध्यान, विज्ञान, बल, अन्न, जल, तेज, आकाश, स्मरण और आशा ये तेरह तत्त्व क्रमशः एक दूसरे की अपेक्षा अधिक-अधिक महत्त्व के हैं।

तुमने ऋग्वेद आदि से लेकर  गांधर्वशास्त्र तक जो विद्याएं वर्णन की हैं,वे सब शब्द रूप ही हैं। उन शब्द रूप शास्त्रों को लोग वाक इंद्रिय द्वारा ही जान सकते हैं। साथ ही धर्म, सत्य, साधु, हृदयज्ञ, अधर्म, असत्य, असाधु, अहृदयज्ञ इन आठ पदार्थों को भी वाक इंद्रिय द्वारा ही जाना जाता है। इन आठ पदार्थों का परिचय भी संक्षेप में सुनो। सुख के कारण का नाम धर्म है जिस पदार्थ का जैसा रूप है वैसा ही कथन करना सत्य है। दूसरे प्राणियों पर उपकार करने वाला जो वचन है वह साधु है। शीघ्र ही लोगों के मन को प्रसन्न कर देने वाला वचन हृदयज्ञ है। फिर धर्म विपरीत जो बात है वह अधर्म सत्य के विपरीत का नाम असत्य है। साधु से विपरीत का नाम असाधु है और हृदयज्ञ से विपरीत का नाम अहृदयज्ञ है इस प्रकार यह वाक इंद्रिय ही शब्द रूप नामों और सब पदार्थों के व्यवहार का कारण है। इसलिए यह वाक इंद्रिय पाम से अधिक है और नाम की तरह ही ब्रह्मरूप में उपासना करने योग्य है। इस प्रकार जब भगवान सनतकुमार ने नारद के सम्मुख उन तेरह तत्त्वों की एक दूसरे से श्रेष्ठता सिद्ध कर दी, तो नारद ने कहा, हे भगवन आपने अभी जिस आशा को प्रमुख बतलाया उससे भी अधिक और कोई तत्त्व है। सनतकुमार ने कहा, हां, प्राण उससे भी अधिक है,क्योंकि सारा जगत प्राण के ही आश्रित है। सनतकुमार का कथन सुनकर नारद चुप बैठे रहे। उनको प्राण से अधिक किसी वस्तु का पता नहीं था और न प्राण के संबंध में ही विशेष जानकारी थी। इस प्रकार नारद को प्रश्न करने में असमर्थ देखकर भगवान सनतकुमार स्वयं ही उसे प्राण से अधिक तत्त्व का उपदेश करने लगे।  हे नारद! प्राण से भी अधिक महत्त्व सत्य वस्तु का है। जिस पर ब्रह्म को अभी तब जगत का कारण बताया है।

जो परब्रह्म सुखरूप वर्णन किया जाता है और जिस परब्रह्म को नाम से लेकर प्राण तक सर्व विश्वरूप में वर्णन किया गया है, वही परमब्रह्म सत्य शब्द द्वारा प्रकट होता है। हे नारद! प्राण से भी परे जो सत्य वस्तु है वही तुम्हारे जानने योग्य है। उसके बिना तुम अपने को कृतकृत्य मत मान लेना। इस पर नारद ने कहा हे भगवन! उसी सत्य वस्तु के जानने की इच्छा है,आप उसका उपदेश करें। इस पर सनतकुमार ने जिज्ञासा उत्पन्न करने वाली छः बातें बतलाईं। विज्ञान, मनन, श्रद्धा, निष्ठा, कृति, सुख।            -क्रमशः


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