उचित शिक्षा ही देश का आधार

By: Feb 10th, 2020 12:05 am

शिवांगी शर्मा

लेखिका, मंडी से हैं

जो नैतिक मूल्य आप स्वयं अपने बच्चे को नहीं सिखा पाए उसके लिए आप स्कूल को कभी दोष नहीं दे सकते। शिक्षा की किताब का पहला अध्याय शिष्टाचार है। अगर आप अपने बच्चे को शिष्टाचार नहीं सिखा पाए तो वह किसी भी विद्यालय या शिक्षण संस्थान में एक अच्छे विद्यार्थी के रूप में कभी नहीं उभरेगा। शिक्षा इसे नहीं कहते कि आपका बच्चा परीक्षा में 99 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है और बड़ों से बात करने की तहजीब उसमें नहीं है। एक 60 प्रतिशत अंक लेने वाला विद्यार्थी परंतु स्वभाव से नरम, शिष्टाचारी, आज्ञाकारी, सबके लिए प्रेमभाव रखने वाला विद्यार्थी भी सब अध्यापकों, मित्रों और समाज का दिल जीतता है, वही सच्ची शिक्षा की परिभाषा है…

शिक्षा का नाम सुनते ही आपके मन में पहली छवि क्या आती है, विद्यालय की या आपके बच्चे के अध्यापकों की। क्या आपने कभी स्वयं को उसके गुरु के रूप में देखा है। पुराने लोग कह गए हैं कि बच्चे की पहली शिक्षा उसके घर से शुरू होती है और मां को पहली गुरु कहा गया है। जो नैतिक मूल्य आप स्वयं अपने बच्चे को नहीं सिखा पाए उसके लिए आप स्कूल को कभी दोष नहीं दे सकते। शिक्षा की किताब का पहला अध्याय शिष्टाचार है। अगर आप अपने बच्चे को शिष्टाचार नहीं सिखा पाए तो वह किसी भी विद्यालय या शिक्षण संस्थान में एक अच्छे विद्यार्थी के रूप में कभी नहीं उभरेगा। शिक्षा इसे नहीं कहते कि आपका बच्चा परीक्षा में 99 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है और बड़ों से बात करने की तहजीब उसमें नहीं है।

एक 60 प्रतिशत अंक लेने वाला विद्यार्थी परंतु स्वभाव से नरम, शिष्टाचारी, आज्ञाकारी, सबके लिए प्रेमभाव रखने वाला विद्यार्थी भी सब अध्यापकों, मित्रों और समाज का दिल जीतता है, वहीं सच्ची शिक्षा की परिभाषा है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने  संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की बैठक में हिंदी में भाषण दिया था। यह स्वदेश प्रेम भी शिक्षा की ही परिभाषा है। बाकायदा टीवी पर ऐड आती है ‘स्वच्छ भारत एक कदम स्वच्छता की ओर’, कूड़ा उठाने वाली गाड़ी में जोर-जोर से गाना बजता है ‘स्वच्छ भारत का इरादा, इरादा कर लिया हमने देश से अपने वादा’।

सरकार आपको जागरूक करने के लिए इससे ज्यादा और क्या कर सकती है, इसके बावजूद आप कूड़ा इधर-उधर फेंक रहे हो और वह कूड़ा कोई मजबूर व्यक्ति कर्त्तव्य बाध्य होकर उठा रहा है, क्या इसे शिक्षा कहते हैं। डिग्री लेने से कोई योग्य नहीं बनता, हमारे पूर्वजों के पास कोई डिग्री नहीं थी, फिर भी वे पर्यावरण और समाज के लिए कभी नुकसानदायक नहीं थे, लेकिन हम हैं। वह ऐसी पीढ़ी थी जो हमें सिखाती थी कि नल धीरे खोलो, पानी बदला लेता है, आटा ढक कर रखो वरना आटा अगले जन्म में हमें भी बिना ढके छोड़ेगा या अन्न को नाली में मत फेंको, अन्न देवता श्राप देगा। वे तो सब्जियां और फलों के छिलके इत्यादि कभी डस्टबिन में नहीं डालते थे, इसे पाप समझते थे।

अंततः ये सब चीजें हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी थीं। वे तो पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने शास्त्रों को अपना गुरु बना रखा था और उन शास्त्रों का कभी अपमान नहीं किया था, न ही आने वाली पीढ़ी को करने दिया। तो यह व्यावहारिक बुद्धि हमें क्यों नहीं है। आप किस तरह से अपने आसपास के वातावरण को प्रभावित करते हो वही आपकी शिक्षा की गुणवत्ता बताता है। सच्चा विद्यार्थी वही है जो घर में और विद्यालय में अनुशासन का पालन करता है। शरारत बच्चों का स्वभाव है, मगर वह शरारत अशिष्टता और असभ्यता न बन जाए, इस बात का ध्यान कौन रखेगा, विद्यालय या आप? शिक्षा बदलाव लाती है भटकाती नहीं है, शिक्षा आपके ज्ञान के सब दरवाजे खोलती है न कि बेरोजगारी के। शिक्षा आपका समय बर्बाद नहीं करती, वह आपको समाज का एक सभ्य प्राणी बनाती है।

हमारी आदत है वैज्ञानिकों को पागल कहने की, कि पढ़-पढ़ के उनका दिमाग खराब हो गया है। वे पागल नहीं हैं, उन्होंने अपने ज्ञान की अंतिम सीमा को पा लिया है। उन्होंने सही-गलत, अच्छा-बुरा, महंगा-सस्ता हर चीज का ज्ञान प्राप्त कर लिया है । बस उसी प्रकार जिस प्रकार हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्ञान प्राप्त किया और इस संसार की मोह-माया से दूर हो गए। उसी प्रकार वैज्ञानिक ज्ञान की चरम सीमा तक पहुंच चुके हैं और हर मोह-माया से दूर हैं। अपने बच्चों को शिक्षित बनाएं क्योंकि वे सिर्फ आपके बच्चे नहीं हैं, इस देश के नागरिक भी हैं।

कम से कम इतना ध्यान रहे कि वह कल को देश में अपने अज्ञान से कोई अराजकता न फैलाएं। देश विरोधी कार्य न करें। अपने ही देश के विरुद्ध न खड़े हो जाएं। वह सब एक कमजोर शिक्षा की जड़ को दर्शाएगा। गणतंत्र दिवस के मौके पर एक बात सुनने को मिली कि ‘देश की हिफाजत पूछ के नहीं की जाती’।  मेरा ख्याल है कि यह हिफाजत सीमाओं पर जाए बगैर भी हो सकती है। क्या अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना, उसे समाज का एक सभ्य नागरिक बनाना, सब प्राणियों के लिए दया भाव रखना, जरूरतमंदों की हरसंभव मदद करना, बड़ों का आदर करना, अपने पर्यावरण को साफ-सुथरा रखना, कम से कम इतनी शैक्षणिक योग्यता रखना कि अच्छा-बुरा सोचने की क्षमता आ जाए, यदि आप अपने बच्चे को यह सब सिखाते हैं तो क्या यह देश की हिफाजत नहीं है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।  संपादक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App