किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

By: Feb 1st, 2020 12:20 am

इस योजना के तहत यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया, ‘अश्वत्थामा मारा गया परंतु हाथी’- परंतु उन्होंने बड़े धीरे स्वर में ‘परंतु हाथी’ कहा और झूठ बोलने से बच गए। इस घटना से पूर्व पांडवों और उनके पक्ष के लोगों की श्री कृष्ण के साथ विस्तृत मंथना हुई कि ये सत्य होगा कि नहीं कि ‘परंतु हाथी’ को इतने स्वर में बोला जाए। श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द नहीं सुन पाए। अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने अपने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक अवस्था में बैठ गए…

-गतांक से आगे…

अश्वत्थामा

महाभारत युद्ध से पूर्व गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानों में भ्रमण करते हुए हिमालय (ऋषिकेश) पहुंचे। वहां तमसा नदी के किनारे एक दिव्य गुफा में तपेश्वर नामक स्वयंभू शिवलिंग है। यहां गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी माता कृपि ने शिव की तपस्या की। इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुंदर तेजस्वी बालक को जन्म दिया। जन्म ग्रहण करते ही इनके कंठ से हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। महाभारत युद्ध के समय गुरु द्रोणाचार्य जी ने हस्तिनापुर (मेरठ) राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। अश्वत्थामा भी अपने पिता की तरह शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। महाभारत युद्ध में ये कौरव-पक्ष के एक सेनापति थे। उन्होंने घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा का वध किया। उसके अतिरिक्त द्रुपदकुमार, शत्रुंजय, बलानीक, जयानीक, जयाश्व तथा राजा श्रुताहु को भी मार डाला था। उन्होंने कुंतीभोज के दस पुत्रों का वध किया। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत युद्ध के समय पांडव सेना को तितर-बितर कर दिया। पांडवों की सेना की हार देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया, ‘अश्वत्थामा मारा गया परंतु हाथी- परंतु उन्होंने बड़े धीरे स्वर में ‘परंतु हाथी कहा और झूठ बोलने से बच गए। इस घटना से पूर्व पांडवों और उनके पक्ष के लोगों की श्री कृष्ण के साथ विस्तृत मंथना हुई कि ये सत्य होगा कि नहीं कि ‘परंतु हाथीÓ को इतने स्वर में बोला जाए। श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द नहीं सुन पाए। अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने अपने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक अवस्था में बैठ गए। गुरु द्रोणाचार्य जी को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई द्युष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। गुरु द्रोणाचार्य की निर्मम हत्या के बाद पांडवों की जीत होने लगी। इस तरह महाभारत युद्ध में अर्जुन के तीरों एवं भीमसेन की गदा से कौरवों का नाश हो गया। दुष्ट और अभिमानी दुर्योधन की जांघ भी भीमसेन ने मल्लयुद्ध में तोड़ दी। अपने राजा दुर्योधन की ऐसी दशा देखकर और अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का स्मरण कर अश्वत्थामा अधीर हो गया। दुर्योधन पानी को बांधने की कला जानता था। सो जिस तालाब के पास गदायुद्ध चल रहा था, उसी तालाब में घुस गया और पानी को बांधकर छुप गया। दुर्योधन की  पराजय होते ही युद्ध में पांडवों की जीत पक्की हो गई थी, सभी पांडव खेमे के लोग जीत की खुशी में मतवाले हो रहे थे।  


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