खदाल में ग्यारह मुखी रूद्र अवतार हनुमान मंदिर में भक्तों का तांता

By: Feb 25th, 2020 12:18 am

श्रीरेणुकाजी-उत्तर भारत की प्रमुख तीर्थस्थली श्रीरेणुकाजी क्षेत्र के खदाल में ग्यारह मुखी रूद्र अवतार श्री हनुमान जी का मंदिर और मूर्ति स्थापना के बाद इस पवित्र स्थान पर श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो चुका है। बीते शनिवार को विधिवत रामायण का पाठ बिठाया गया। रामायण पाठ समाप्त होने के बाद मूर्ति स्थापना दिवस के अवसर पर श्रद्धालुओं और अग्रवाल परिवार के द्वारा दिव्य यज्ञ के आयोजन के पश्चात विशाल भंडारे का भी आयोजन करवाया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। बता दें कि श्रीरेणुकाजी धार्मिक स्थल अपने आप में सतयुग कालीन इतिहास से जुड़ा हुआ धर्म क्षेत्र है। यही नहीं यहां के हर मंदिर व प्राकृतिक झीलें किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। वहीं ददाहू निवासी विनीत अग्रवाल को हुई दिव्य अनुभूति के बाद उन्होंने लंबे समय से यह ठान लिया था कि जलाल नदी के किनारे हनुमान जी के रूद्र अवतार स्वरूप ग्यारह मुखी हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना और मंदिर का निर्माण किया जाए। बताया जाता है कि विनीत अग्रवाल जब भी पेन से अपने दिन में लिखने की शुरुआत किया करते थे तो पहला शब्द मंदिर ही लिखा जाता था। पंडित राकेश शर्मा ने बताया कि हनुमान जी ने अहि रावण के वध के समय एकादश मुखी रूप धारण किया था। उन्होंने बताया कि हनुमान जी ने 11 मुख धारण किए थे जिसमें पहला गोमुख था। यह स्वरूप समस्त ईच्छाओं को पूरा करने वाला कामधेनु रूप माना जाता है। दूसरा वाना स्वरूप जिसे भक्ति का प्रतीक कहा जाता है और यह कलयुग का राजा भी है जो कि अजर और अमर है। तीसरा गणेश जी स्वरूप माना गया है जो कि चतुराई तथा विघ्न विनाशक बुद्धि का प्रतीक है। रिद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। चौथा स्वरूप वाराह जो कि पृथ्वी का उद्धारक रूप है। इस स्वरूप में हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी को सागर से बाहर लाए थे। पांचवा ब्रह्म मुख स्वरूप समस्त सृष्टि का उत्पन्न कारक है। छठा हनुमान जी जो बल बुद्धि विद्या तथा भक्ति का असीम रस देने वाला है। सातवां नरसिंह रूप अहंकारी दोस्तों के विनाश करता भक्तों के रक्षक के रूप में है। आठवां स्वरूप विश्वरूप रण संधारण कलयुग के अंत में कलिक अवतार में अश्व ही कलिक भगवान का वाहन होगा। नौवां अग्नि रूप माना जाता है जो दूसरों को मारने में प्रचंड दावानल स्वरूप है। दसवां मकर यानि के कच्छप रूप है। इस रूप में समुद्र मंथन के समय देवताओं का सहयोग किया था। 11 स्वरूप मत्स्य रूप है। जिसे धर्म तथा वेदों के रक्षक राक्षस जब वेदों को चुराकर ले जा रहे थे तब मत्स्य रूप धारण कर राक्षसों को मार कर वेदों की रक्षा की थी। यह एकादशी मुखी हनुमान जी समस्त दुख व्याधि रोग आदि का नाश करने वाला स्वरूप है। इस मंदिर के साथ ही निजी डिग्री कालेज से कुछ दूरी पर गौशाला भी बनाई गई है। कहते हैं जिस स्थान पर गौ माता का निवास होता है उस स्थान पर अकसर देवी-देवता ही विचरण किया करते हैं।


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