गांधीवादी विचारधारा की आधारहीन आलोचना

By: Feb 17th, 2020 12:04 am

हरि मित्र भागी

धर्मशाला

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर उनकी विचारधारा को लेकर कुछ व्यक्तियों द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणियां की जा रही हैं व सोशल मीडिया पर भी विष फैलाया जा रहा है। ऐसे लोग अपनी सस्ती प्रसिद्धि पाने के लिए अनाप-शनाप बयान देते रहते हैं, वे भूल जाते हैं कि राष्ट्रपति ने देश को कैसे स्वतंत्र करवाया। बोलने की स्वतंत्रता मिली तो इसका अर्थ यह नहीं कि उस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए ऐसे शब्दों का प्रयोग करें कि विदेशों में कृतघ्नता का दाग हमारे देश को लगे। वास्तव में हमारे देश की पहचान ही गांधी के देश के रूप में रही है। उनके बारे में विभिन्न देशों में विभिन्न भाषाओं में साहित्य लिखा गया। उन्होंने संसार को स्वतंत्रता प्राप्त करने के नए रास्ते दिखाए। उनकी जीवन शैली को लोगों ने अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न किया। ऐसे व्यक्तित्व की विचारधारा को देश से निकालने का कहीं षड्यंत्र तो नहीं है? जिन विचारों ने अहिंसा, आत्मबल, सत्य, निर्भय नैतिक मूल्यों के शस्त्र द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया, जो कार्य खड़ग, तलवार व बंदूक नहीं कर सकी, इस कार्य को साबरमती के इस संत ने कर दिखाया था। गांधी की मृत्यु पर विश्व के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटाइन ने कहा था कि आने वाली पीढि़यां शायद ही विश्वास करें कि यह दुबला-पतला, हाड़-मांस का पुतला  इस संसार में पैदा हुआ था। समृद्ध परिवार में राजकोट में दिवान के घर पैदा हुआ विदेश पढ़ा हुआ यह युवा एक वकील बन किसी मुकद्दमें की पैरवी करने दक्षिण अफ्रीका जाता है। वहां भारतीयों व अश्वेत व्यक्तियों पर अत्याचार देखता है। जिससे वह बहुत प्रभावित होते हैं और इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं। संसार में भारत की स्वतंत्रता के बाद जितने भी आंदोलन हुए उनमें महात्मा गांधी के असहयोग अांदोलन व सत्याग्रह अांदोलन का सहारा लिया गया था।                                                                  


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