गीता रहस्य

By: Feb 22nd, 2020 12:17 am

स्वामी रामस्वरूप

गीता के तीसरे अध्याय में श्रीकृष्ण महाराज ने कहा है कि यज्ञ से समय पर वर्षा होती है और अन्न प्राप्त होता है,तो यहां भी यही कहा है कि जो भी हम वेदों के अनुसार शुभ कर्म करते हैं और यज्ञ से उत्पन्न अन्न आदि ग्रहण करते हैं, ये सब यज्ञ से है। यज्ञ में (ददासि) अन्न,धन,वस्त्र आदि दान करते हैं और (तपस्यमि) तप करते हैं अर्थात श्रुतंतपः यज्ञम तपः वेदों को सुनते हैं और यज्ञ आदि कर्म करते हैं…

गतांक से आगे…

अतः चारों वेदों का पूर्ण ज्ञान तो आचरण में आता है,जिसमें विज्ञान, कर्म,एवं उपासना के गूढ़ रहस्य होते हैं,वह पृथ्वी के आरंभ से आज तक यज्ञ में ही बैठकर सुने जाते हैं। अतःहम वह स्थान ढूंढे यहां यज्ञ होता है और वेद के विरोध में बोलने वालोें की बातों में आकर जीवन नष्ट न करें। भाव यह है कि श्रीकृष्ण महाराज वेदों के ज्ञाता थे, फलस्वरूप ही वह भगवदगीता में स्थान-स्थान पर वेद एवं यज्ञ का ज्ञान दे रहे हैं। श्लोक 9/27 में भी मुख्यतः यज्ञ का ही ज्ञान है। जैसा कि यज्ञ का अर्थ है देवपूजा, संगतिकरण,दान। गीता के तीसरे अध्याय में श्रीकृष्ण महाराज ने कहा है कि यज्ञ से समय पर वर्षा होती है और अन्न प्राप्त होता है,तो यहां भी यही कहा है कि जो भी हम वेदों के अनुसार शुभ कर्म करते हैं और यज्ञ से उत्पन्न अन्न आदि ग्रहण करते हैं, ये सब यज्ञ से है। यज्ञ में (ददासि) अन्न,धन,वस्त्र आदि दान करते हैं और (तपस्यमि) तप करते हैं अर्थात श्रुतंतपः,यज्ञम तपः,वेदों को सुनते हैं और यज्ञ आदि कर्म करते हैं। तो यह सब वेदानुकूल शुभ कर्म यदि निष्काम कर्म बन जाएं और यह सब कुछ परमात्मा को अर्पण कर दिया जाए, तब ही जीव इन कर्मों को करता हुआ ईश्वर को प्राप्त कर लेता है।

यह अटल सत्य है कि यदि हम वेद नहीं सुनेंगे,तो यज्ञ,कर्म,तप आदि के रहस्य को नहीं जान पाएंगे और वेद विरोधी मनुष्य गीता का मनगढ़ंत असत्य अर्थ करके जनता को भटका कर दुःखों के सागर में फेंक देंगे। इससे (करोषि) अर्थात तू जो कुछ भी करता है का भाव वेदों के अनुसार शुभ कर्म करना है। वेद तो कर्म के विषय में कह ही रहे हैं परंतु श्रीकृष्ण महाराज स्वयं भी गीता श्लोक 3/15 में कर्मों को वेदों से उत्पन्न हुआ शुभ कर्म कह रहे हैं।                                        – क्रमशः


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