चाय से बनी वाइन, हार्ट अटैक रोकने में मददगार

By: Feb 16th, 2020 12:08 am

पालमपुर आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ने किया कमाल

कांगड़ा चाय की खुशबू से दुनिया वाकिफ है, लेकिन इस बार कांगड़ा चाय ने नया मुकाम छू लिया है। पालमपुर में आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ने कांगड़ा चाय से वाइन तैयार कर दी है। यह ऐसी वाइन है,जो हार्ट अटैक का खतरा कम करेगी, वहीं शुगर और भार कम करने में भी मददगार है। अपनी माटी के लिए वरिष्ठ पत्रकार जयदीप रिहान को मिली जानकारी के अनुसार इस वाइन को तैयार करने में पांच साल का वक्त लगा है। खैर, अब जल्द ही यह वाइन बाजार में उपलब्ध होगी। इस वाइन में कांगड़ा चाय का प्रयोग किया जा रहा है। इस वाइन की खासियत यह है कि इसमें अल्कोहल की परसेंटेज को कम या ज्यादा किया जा सकता है। दावा तो यह है कि जिन लोगों को भूलने की बीमारी होती है। यह वाइन उसमें भी बड़ी कारगर है। गौर रहे कि अभी तक भारत में बनने वाली वाइन को अच्छी क्वॉलिटी का नहीं माना जाता, क्योंकि यहां अच्छी किस्म के अंगूर नहीं मिल पाते। टी वाइन भारत के प्रति इस राय को बदलने वाली है। हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के निदेशक डा. संजय कुमार ने कहा कि यह टी वाइन इंटरनेशनल मार्केट में छाने वाली है। उन्होंने कहा कि यह कई रोगों को ठीक करने में भी सहायक साबित होगी।

रिपोर्ट: जयदीप रिहान, पालमपुर

  मंत्री ने सोलर फेंसिंग फेल 18 सब्जी मंडियों को मिला पैसा

आवारा पशुओं पर मार्कंडेय ने दिए गोलमोल जवाब

हिमाचल में सोलर फेंसिंग फेल हो गई है। सोलर बाड़ कमजोर होने के कारण पशु इसे तोड़ देते हैं, बाद में इसे जोड़ना काफी कठिन होता है। यह कहना है कृषि मंत्री रामलाल मार्कंडेय का। अपनी माटी ने कृषि मंत्री से चार उन प्रमुख सवालों का जवाब जानने की कोशिश की, जिनका जवाब प्रदेश के दस लाख किसान लंबे अरसे से जानना चाह रहे हैं। अपनी माटी का पहला सवाल सोलर फेंसिंग को लेकर था, जिसपर मार्कंडेय ने माना कि सोलर फेंसिंग फेल हो गई है। उन्होंने कहा कि इसकी जगह चेन और कांटेदार फेंसिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें 70 फीसदी तक सबसिडी दी जाएगी। हालांकि उन्होंने यह साफ किया कि सोलर फेंसिंग को बंद नहीं किया जाएगा। दूसरा सवाल सब्जी मंडियों का काम लटकने को लेकर था। जिस पर उन्होंने कहा कि 18 मंडियों को पैसा आ गया है। जल्द ये मंडियां हाइटेक हो जाएंगी। तीसरा सवाल बागबानों को फसल का दाम न मिल पाने को लेकर था। इस पर उन्होंने कहा कि नया एपीएमसी एक्ट सब ठीक कर देगा। चौथा सवाल लावारिस पशुओं की समस्या पर था। इस पर मंत्री स्टीक जवाब न दे पाए। उन्होंने इसके लिए पुराने प्रयासों को गिनाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि गोसदनों को मजबूत किया जाएगा। …तो किसान भाइयों आपको अपने कुछ गंभीर सवालों के जवाब मिल गए होंगे। आपको कृषि मंत्री का इंटरव्यू कैसा लगा, इस पर अपनी राय जरूर दें। जल्द मिलेंगे नई जानकारी के साथ।

रिपोर्ट विमुक्त शर्मा,गगल

पथरीली जमीन को चीरकर उगाई सब्जियां बल्ह घाटी के योगराज के क्या कहन

अपनी माटी में अब वक्त है जीरो बजट खेती के बढ़ते क्रेज को जानने का। तो आइए आपको ले चलते हैं मिनी पंजाब के नाम से मशहूर बल्ह घाटी का। बल्ह क्षेत्र के तहत टिक्कर गांव के रहने वाले योगराज इन दिनों शून्य बजट खेती कर रहे हैं। साधारण किसान के रूप में अपनी आजीविका चलाने वाले योगराज को खेती में नए नए प्रयोग करने का शौक है। जब उन्हें जीरो बजट खेती का पता चला,तो समय न गंवाते हुए उन्होंने तुरंत इसे अपना लिया। पहले उन्होंने छोटे से पॉलीहाउस में सब्जियां उगाना शुरू किया। खेत की पथरीली और बालू भरी जमीन को उन्होंने कड़ी मेहनत से सब्जी उगाने योग्य बनाया और सब्जियों की अच्छी पैदावार प्राप्त की थी। तभी उन्हें कृषि विभाग द्वारा जहरमुक्त खेती यानी प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी मिली, तो वह इसके प्रति आकृषित हो गए। बस फिर क्या था, इससे पैदावार अच्छी हुई। बाद में उन्होंने एक वर्मी कम्पोस्ट यूनिट स्थापित कर लिया और अंग्रेजी खादों को पूरी तरह छोड़ दिया। बाद में जीवामृत, बीजामृत का पता चला,तो दो उन्नत किस्म की देशी गाय भी खरीद लीं। आज योगराज के पास सात बीघा में पॉलीहाउस और नेट हाउस स्थापित हैं। वह हर तरह की सब्जी उगाने के साथ केले, पपीते और अमरूद भी उगाते हैं। तो यह थी जीरो बजट खेती की एक और सक्सेस स्टोरी। किसान भाइयों, आपको यह कैसी लगी, हमें जरूर अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दें

 रिपोर्ट : सुरेश शर्मा, गागल 

नौणी में पौधों की छंटाई का मंत्र पाने पहुंच रहे बागबान

कहते हैं कि ए लिटिल नोलेज इज डेंजरस थिंग। यानी अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। यह थ्योरी हर जगह लागू होती है। कृषि और बागबानी की बात की जाए, तो आज भी सैकड़ों किसान-बागबान ऐसे हैं, जो पौधों की छंटाई करना नहीं जानते। इसी समस्या से पार पाने के लिए अब नौणी यूनिवर्सिटी में अनूठी मुहिम छिड़ी है। किसानों को यहां पौधों की सिंधाई और छंटाई का ज्ञान दिया जा रहा है। बागबानी निदेशालय की ओर से पिछले 16 जनवरी, से लेकर 14 फरवरी, तक चले टे्रेनिंग कार्यक्रम में सैकड़ों बागबानों ने टिप्स लिए। विशेषज्ञों ने बताया कि कैसे बागीचों में काट छांट का कार्य करना है। पौधों को सीधा रखने के क्या फायदे हैं। नौणी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने बताया कि ऐसे कार्यक्रमों के प्रति प्रदेश भर के फार्मर्ज का रुझान बढ़ा है।

रिपोर्ट मोहिनी सूद, नौणी

 हिमाचल में खेती के लिए जापान देगा 1104 करोड़ जायका प्रोजेक्ट का फेज टू करेगा कमाल

हिमाचल में खेती पर 11 सौ करोड़ रुपए खर्च होने जा रहे हैं। इसके  लिए जायका परियोजना फेज टू के तहत हिमाचल के सभी 12 जिलों को कवर किया जाएगा। भारत सरकार ने इसका प्रोपोजल बना कर मंजूरी के लिए जापान सरकार को भेज दिया है। मंजूरी मिलने के बाद इस प्रोजेक्ट में मुख्यतः गेंहु व धान के साथ सब्जी की खेती को पे्ररित किया जाएगा। हाल ही में धर्मशाला में आयोजित जायका परियोजना की अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में जापान, श्रीलंका और म्यांमार से चार-चार प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उम्मीद है कि जायका का पैसा जल्द मिल जाएगा।

रिपोर्ट नरेन कुमार,धर्मशाला

बादाम और खुमानी पर करें  बोरिक एसिड का छिड़काव

अगले पांच दिनों में मौसम परिवर्तनशील रहने की संभावना है। दिन व रात के तापमान में हल्की बढ़ोतरी होने के  साथ हवा की गति दक्षिण-पूर्व दिशा से 6 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा चलने तथा औसतन सापेक्षित आर्द्रता 15-70 प्रतिशत तक रहने की संभावना है।

सप्ताहिक कृषि कार्यः

बागबानी संबंधित कार्यः

बागबानों को सलाह दी जाती है कि बागीचों में फल पौधे के  तोलिए बनाने का कार्य करते रहें तथा गोबर खाद व अन्य उर्वरक अनुमोदित मात्रा में डालें। बादाम और खुमानी फलों में बोरोन तत्व की कमी के कारण दरार आ सकती है। इस कमी को दूर करने के  लिए बोरिक एसिड का एक ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर गुलाबी कली आस्था में छिड़काव करें। मैंगोमालफोर्मेशन की रोकथाम के लिए 120 ग्राम पोटाशियम मेटाबाई सल्फाइड या नैप्थलिन एसिड 40 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

सब्जी फसलों संबंधित कार्य :

प्याज व मटर व अन्य सब्जियों में अवश्यकतानुसार सिंचाई  व खाद डालें। मूली तथा शलगम की बीज वाली फसल में नत्रजन 10 किलोग्राम/बीघा डालें। आलु की बिजाई  करने के  लिए उचित मात्रा में उन्नत किस्म के  बीज का प्रबंध कर लेें।

फल सब्जी परिक्षण संबंधित कार्य :

नींबू प्रजातीय फलों से विभिन्न उत्पाद जैसे रस, स्क्वैश, कार्डियल, मार्म लेड इत्यादि बनाकर परिरक्षित किए जा सकते हैं। अमरूद तथा टमाटर के विभिन्न पदार्थ, आंवले का मुरब्बा तथा कैंडी, सब्जियों को सुखाकर, इनसे विभिन्न तरह के अचार, गाजर का मुरब्बा तथा जैम, पपीते के  विभिन्न पदार्थ, गलगल व माल्टा के छिलके से कैंडी बनाए जा सकते हैं।                                      

रिपोर्ट: मोहिनी सूद-नौणी (सोलन)

नगरोटा में खंड विकास अधिकारी मुनीष कुमार  घर-घर पहुंचाएंगे मशरूम उत्पादन योजना

प्रदेश कृषि व उद्यान विभाग की मशरूम उत्पादन योजना को अब नगरोटा बगवां के खंड विकास अधिकारी मुनीष कुमार घर-घर पहुंचाएंगे। उक्त अधिकारी ने प्रथम चरण में खंड के तमाम महिला मंडलों, स्वयं सहायता समूहों तथा प्रगतिशील किसानों के साथ आम आदमी को भी इस योजना से जोड़कर उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार की कवायद शुरू कर दी गई है। वह उद्यान विभाग तथा आम लोगों के बीच एक कड़ी बन कर अपनी ओर से लोगों को मशरूम उगा कर अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। खंड अधिकारी का कहना है कि विभागीय गतिविधियों के चलते उनकी पहुंच ग्राम स्तर के प्रत्येक व्यक्ति तक रहती है जिसके चलते वे बड़ी आसानी से आम लोगों को मशरूम उत्पादन की दिशा में प्रेरित कर इसे आर्थिकी का आधार बनाने का प्रयास करेंगे। हालांकि उनकी योजना है कि वे आगे चलकर ग्रामीण संस्थाओं का निर्माण कर एक फेडरेशन का रूप देकर किसानों के उत्पाद को विशेष ट्रेड मार्क से बाजार में उपलब्ध करवाएंगे, जिससे न केवल लोग हल्के श्रम से ज्यादा मुनाफा कमा सकेंगे, बल्कि मार्केटिंग क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। उनका कहना है कि वह उद्यान विभाग, कृषि विभाग तथा मशरूम अनुसंधान केंद्र की सेवाओं को लोगों को लाभान्वित होने के लिए न केवल प्रेरित करेंगे बल्कि अपने विभाग की ओर से भी हर संभव सहयोग के साथ पर्यवेक्षण व प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करेंगे। उनका कहना है कि पहले लोग इसे निम्न स्तर से शुरू करें जिससे वे अपनी घरेलू जरूरत के साथ आस-पड़ोस की खपत को पूरा कर सकें, जिसके बाद बड़े पैमाने पर तैयार उत्पाद की मार्केटिंग की समस्या नहीं आने दी जाएगी। हालांकि नगरोटा बगवां में मौजूदा समय में तीन बड़ी व्यापारिक इकाइयां जदरांगल, धलूं तथा पत्यलकड़ में मशरूम की खेती में खासा उत्पादन कर रही हैं तथापि अधिक से अधिक लोग इस प्रोजेक्ट को स्वरोजगार का माध्यम बनाएं ऐसी कोशिशें तेजी से असरदार साबित हो रही है। उधर उद्यान विभाग अधिकारी डा. विजय गर्ग का कहना है नगरोटा बगवां में मशरूम उत्पादन की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं।                  रिपोर्ट: राजीव सूद

‘जायका’ बदल रही है खेती का जायका

अजय पाराशर उपनिदेशक, सूचना एवं जन संपर्क विभाग, धर्मशाला

जापान की संस्था ‘जायका’ अर्थात् जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग संस्था के सहयोग से हिमाचल में वर्ष 2007 से आरंभ हिमाचल प्रदेश फसल विविधिकरण प्रोत्साहन से राज्य के पांच जिलों के किसानों की तकदीर में आर्थिकी, आधुनिकता और सेहत के रंग भरने में मदद मिली है। ‘हिमाचल फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना (एचपीसीडीपी) को मुख्यतः कृषि विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आय में बढ़ोतरी के उद्देश्य से, राजकीय विकास सहायता (ओडीए) लोन परियोजना के तहत हमीरपुर, मंडी, कांगड़ा, ऊना और बिलासपुर में हिमाचल सरकार द्वारा जायका के सहयोग से वर्ष 2011 से 2020 की अवधि के लिए लागू किया गया था।  इस परियोजना के लिए जापान सरकार द्वारा साल 2011 में 266 करोड़ रुपए का ऋण स्वीकृत किया गया था। वर्ष 2011 से 2015 की अवधि के दौरान फसल विविधिकरण के लिए जायका टीसीपी प्रथम चरण अर्थात् प्रौद्योगिकी सहकारिता परियोजना को लागू किया गया; जिसका उद्देश्य राज्य में ‘हिमाचल फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना’ के सुचारू क्रियान्वयन के लिए तकनीकी की मदद से प्रसार अधिकारियों की क्षमता में बढ़ोतरी करना था। इस परियोजना के तहत कृषि भूमि में बढ़ोतरी के साथ फसल विविधिकरण से सब्जी उत्पादन में वृद्धि, छोटे और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी, सिंचाई के संसाधनों का विकास, खेतों तक सड़क सुविधा, संग्रहण केंद्रों का निर्माण, पॉली हाऊस, सौर पम्पिंग स्टेशन, केंचुआ खाद ईकाइयां, विपणन के साथ सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए उनके संचालन और रख-रखाव के अलावा किसानों और कृषि प्रसार अधिकारियों की क्षमता में वृद्धि करना है। जायका के सहयोग से चलाई जा रही इस विस्तृत परियोजना के मुख्य घटकों में आधारभूत संरचना, किसान सहायता कार्यक्रम और पांच जिलों में चयनित 210 उप-परियोजनाओं में संस्थागत विकास कार्यक्रम तथा किसानों को योजना, निर्माण गतिविधियों और मुकम्मल होने के बाद निर्मित ढांचे के संचालन और रख-रखाव में शामिल करना है। निर्माण गतिविधियों पूर्ण होने के बाद उन्हें कृषक विकास सभाओं को सौंप दिया गया है। तमाम उप-परियोजनाओं में फसल विविधिकरण योजना का क्रियान्वयन प्रगति पर है। भविष्य में किसान सहायता अंग, किसान संस्थाओं का सशक्तिकरण और स्वयं सहायता समूहों का एकत्रिकरण, फसल विविधिकरण योजना का क्रियान्वयन, विपणन गतिविधियों को सशक्त करना और शिकाटे (मशरूम) उत्पादन और प्रशिक्षण केंद्रों का निर्माण आदि सम्मिलित हैं। इन तमाम उपायों से किसानों की आय में आशातीत वृद्धि हुई है।

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