जय भोलेनाथ के जयकारों से गूंजी देवभूमि

बिजली महादेव में सुबह चार बजे से लगा भक्तों का तांता, प्राचीन शिवालयों में उमड़ी भोले के भक्तों की भीड़ 

कुल्लू –जिला कुल्लू में शिवरात्रि पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जिला कुल्लू के बिजली महादेव में शिवरात्रि के मौके पर मंदिर का कपाट एक दिन के लिए खुला। काफी संख्या में यहां पर सुबह चार बजे से श्रद्धालु माथा टेकने के लिए पहुंचे। वहीं, जिला के बजौरा, भुंतर, शमशी, मौहल, भूतनाथ मंदिर, चौहकी सहित भोलेनाथ के मंदिरों में शिवरात्रि को धूमधाम से मनाया गया।  बता दें कि भारत में महाशिवरात्रि बड़े धूमधाम मनाई गई। वहीं, कुल्लू में भी अद्भूत और अनूठी परंपरानुसार इसे मनाया गया। श्रद्धालुओं ने भगवान शिव को फल-फूल अर्पित किया, और शिवलिंग पर दूध व जल अर्पित किया गया। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाया गया।  ऐसा माना जाता है कि इस दिन अगर पूरे मन से भगवान शिव की आराधना की जाए तो भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है, लेकिन क्या आपको पता है कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं में महाशिवरात्रि मनाने के राज हैं। दरअसल, महाशिवरात्रि मनाए जाने के संबंध में कई पुराणों में बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं। भागवत् पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह आग की ज्वालाएं पूरे आकाश में फैलकर सारे जगत को जलाने लगी। इसके बाद सभी देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास मदद के लिए गए। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उस विष को पी लिया। इसके बाद से ही उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। शिव द्वारा इस बड़ी विपदा को झेलने और गरल विष की शांति के लिए उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों ने रात भर शिव का गुणगान किया। वह महान रात्रि ही शिवरात्रि के नाम से जानी गई। इसके अलावा लिंग पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में से बड़ा कौन है। स्थिति यह हो गई कि दोनों ही भगवान ने अपनी दिव्य अस्त्र शस्त्रों का इस्तेमाल कर युद्ध घोषित कर दिया। इसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया। देवताओं, ऋषि-मुनियों के अनुरोध पर भगवान शिव इस विवाद को खत्म करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का न कोई आदि था औह्मा विष्णु दोनों ही इस लिंग को देखकर यह नहीं समझ पाए की यह क्या चीज है। इसके बाद भगवान विष्णु सूकर का रूप धारण कर नीचे की ओर उतरे जबकि ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर यह जानने के लिए उड़े कि इस लिंग का आरंभ कहां से हुआ है और इसका अंत कहां है। जब दोनों को ही सफलता नहीं मिली तब दोनों ने ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया। इसी दौरान उसमें से ऊं की ध्वनि सुनाई दी। ब्रह्मा विष्णु दोनों ही आश्चर्यचकित हो गए।