दयालु नन्हीं लड़की की कहानी

By: Feb 1st, 2020 12:20 am

लड़की मुंह से कुछ नहीं बोली। केवल बालक की ओर प्यार से मीठी-सी मुस्कुराहट के साथ देखकर आगे बढ़ गई। वह सिर झुकाकर कुछ सोचती चलती रही। आगे जंगल में नन्हीं लड़की को एक बालिका ठंड से कंपकंपाती हुई मिली, जैसे भाग्य उसकी परीक्षा लेने पर तुला था। उस छोटी-सी बालिका के शरीर पर केवल एक पतली-सी बनियान थी। बालिका की दयनीय दशा देखकर नन्हीं लड़की ने अपना स्कर्ट उतार कर उसे पहना दिया और ढांढ़स बंधाया- ‘बहना, हिम्मत मत हारो। भगवान तुम्हारी रक्षा करेगा।’ अब नन्हीं लड़की के तन पर केवल स्वेटर रह गया था। वह स्वयं ठंड के मारे कांपने लगी…

-गतांक से आगे…

बालक ने दयनीय नजरों से नन्हीं लड़की की ओर देखा- ‘हां दीदी, यहां ठंड बहुत है। सिर छुपाने के लिए घर भी नहीं है मेरे पास। क्या करूं? तुम्हारी बहुत कृपा होगी यदि तुम मुझे कुछ सिर ढंकने के लिए दे दो। छोटा बालक कांपता हुआ बोला। नन्हीं लड़की मुस्कुराई और उसने अपनी टोपी (हैट) उतारकर बालक के सिर पर पहना दी। बालक को काफी राहत मिली। ‘भगवान करे, सबको तुम्हारे जैसी दीदी मिले। तुम बहुत उदार व कृपालु हो। बालक ने आभार प्रकट करते हुए कहा- ‘ईश्वर तुम्हारा भला करे। लड़की मुंह से कुछ नहीं बोली। केवल बालक की ओर प्यार से मीठी-सी मुस्कुराहट के साथ देखकर आगे बढ़ गई।  वह सिर झुकाकर कुछ सोचती चलती रही। आगे जंगल में नन्हीं लड़की को एक बालिका ठंड से कंपकंपाती हुई मिली, जैसे भाग्य उसकी परीक्षा लेने पर तुला था। उस छोटी-सी बालिका के शरीर पर केवल एक पतली-सी बनियान थी। बालिका की दयनीय दशा देखकर नन्हीं लड़की ने अपना स्कर्ट उतार कर उसे पहना दिया और ढांढ़स बंधाया- ‘बहना, हिम्मत मत हारो। भगवान तुम्हारी रक्षा करेगा। अब नन्हीं लड़की के तन पर केवल स्वेटर रह गया था। वह स्वयं ठंड के मारे कांपने लगी। परंतु उसके मन में संतोष था कि उसने एक ही दिन में इतने सारे दुखियों की सहायता की थी। वह आगे चलती गई। उसके मन में कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं था कि उसे कहां जाना है। अंधेरा घिरने लगा था। चांद बादलों के पीछे से लुका-छिपी का खेल खेल रहा था। साफ-साफ दिखाई देना भी अब बंद हो रहा था। परंतु नन्हीं लड़की ने अंधेरे की परवाह किए बिना ही अनजानी मंजिल की ओर चलना जारी रखा। एकाएक सिसकियों की आवाज उसके कानों में पड़ी। ‘यह कौन हो सकता है?Óवह स्वयं से बड़बड़ाई। उसने रुककर चारों ओर आंखें फाड़कर देखा। ‘ओह, एक नन्हा बच्चा। नन्हीं लड़की को एक बड़े पेड़ के पास एक छोटे से नंगे बच्चे की आकृति नजर आ गई थी। वह उस आकृति के निकट पहुंची और पूछा- ‘नन्हे भैया, तुम क्यों रोते हो? ओह, हां, तुम्हारे तन पर तो कोई कपड़ा ही नहीं है। हे भगवान, इस बच्चे पर दया करो। यह कैसा अन्याय है कि एक इतना छोटा बच्चा इस सर्दी में नंगा ठंड से जम रहा है। उसका गला रूंध गया था।         


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