दिल्ली के स्कूलों की धमक दुनिया भर में

By: Feb 25th, 2020 12:05 am

राजेंद्र राजन

लेखक, हमीरपुर से हैं

दिल्ली के एक स्कूल में 25 फरवरी को अमरीका के प्रेजिडेंट डोनाल्ड ट्रंप की पत्नी मेलियाना का प्रस्तावित दौरा इस बात का प्रतीक है कि सरकारी स्कूलों में बदलाव की मूक क्रांति की गूंज अमरीका तक पहुंच गई है। राजधानी के एक स्कूल में मेलियाना का जाना और बच्चों से गुफ्तगू करने का सीधा सा अर्थ यह भी है कि सरकारी स्कूलों में बदलाव की बयार से हजारों मील दूर अमरीका भी अछूता नहीं है…

अगर कोई पार्टी स्कूली शिक्षा को मुद्दा बनाकर चुनाव जीत जाए तो देश को यह बात चकित कर सकती है। दिल्ली में ‘आप’ का तीसरी बार सत्तासीन हो जाना इस बात का गवाह है कि केजरीवाल सरकार के विरुद्ध एंटी ‘‘इन्कमबैंसी फैक्टर’’ का प्रभाव शून्य रहा। दिल्ली के एक स्कूल में 25 फरवरी को अमरीका के प्रेजिडेंट डोनाल्ड ट्रंप की पत्नी मेलियाना का प्रस्तावित दौरा इस बात का प्रतीक है कि सरकारी स्कूलों में बदलाव की मूक क्रांति की गूंज अमरीका तक पहुंच गई है। राजधानी के एक स्कूल में मेलियाना का जाना और बच्चों से गुफ्तगू करने का सीधा सा अर्थ यह भी है कि सरकारी स्कूलों में बदलाव की बयार से हजारों मील दूर अमरीका भी अछूता नहीं है। यह दीगर है कि  केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता और श्रेय से बाहर रखना चाहती है। एक पोर्टल ने देशभर में 10 सरकारी स्कूलों को चुना। निश्चित रूप से यह सर्वेक्षण पारदर्शी रहा होगा। इसमें किसी भी सरकारी या अर्द्धसरकारी संस्थाओं का दखल नहीं रहा। सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत के सर्वोच्च 10 सरकारी स्कूलों में 3 स्कूल दिल्ली के थे जिन्हें सजाने, संवारने में ‘आप’ सरकार ने गत 5 साल तक खूब पसीना बहाया होगा और सरकारी बजट का बड़ा हिस्सा इन्हें अत्याधुनिक और हाईटेक बनाने में खर्च किया है। इस पोर्टल के सर्वेक्षण में टॉप 10 स्कूलों में दिल्ली के 3 स्कूल शामिल हैं। राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय, सेक्टर 10 द्ववारिका, 5 वें नंबर पर राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय, लाजपात नगर तो 7वें नंबर पर राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय रोहिणी का स्कूल है। यानी देश में 2019 में किए गए सर्वे में 10 सरकारी स्कूलों में से 3 दिल्ली के स्कूल हैं जिनकी कायाकल्प करने में केजरीवाल व सिसोदिया की कल्पनाशीलता को पंख लगे। अन्य 7 स्कूलों में अधिकांश दक्षिण भारत के केंद्रीय विद्यालय हैं तो एक स्कूल यानी केंद्रीय विद्यालय देहरादून भी है। इस सर्वे में दूर-दूर तक हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आदि अनेक राज्यों का एक भी स्कूल खरा नहीं उतरा। दिल्ली के अत्याधुनिक सरकारी स्कूलों में ‘हैप्पीनस करिकुल्लम का मीडिया ने संज्ञान लिया है। यानी बच्चों को बस्तों के भारी बोझ या पाठ्यक्रम के तनाव से कैसे ‘स्ट्रेस फ्री’ बनाया जाए। मेडिटेशन के माध्यम से यह संभव है। व्यायाम और नैतिक मूल्यों का पाठ ‘‘हैप्पीनस क्लास’’ का एजेंडा है। दिल्ली के चुनिंदा स्कूलों में केजरीवाल सरकार ने जो परिवर्तन किए हैं उनमें किसी ‘फाइव स्टार’ होटल की तरह दिखने वाले कमरे हैं जिनमें स्मार्ट क्लासेज के लिए प्रोजेक्टर हैं। आधुनिक डेस्क है। दीवारों पर प्रेरक तस्वीरें, ग्राफिक्स और पेंटिग्स हैं। पहली कक्षा से आठवीं तक पढ़ाई फ्री है तो 9वीं से 12वीं तक एक क्लास में बच्चे की फीस मात्र 20 रुपए है। बच्चों के अभिभावक एक ऐप के माध्यम से अपने बच्चों की गतिविधियों को सीसीटीवी कैमरों की सहायता से मॉनिटर कर सकते हैं। इस क्रांति का सूत्रपात देश की राजधानी में हुआ है जिसको भाजपा और कांग्रेस के नेता ‘रेप कैपिटल’ के रूप में बदनाम करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।

हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, धु्रवीकरण के आधार पर वोट बटोरने का सपना पालने वाले और अपने भाषणों में अहंकार का कथित प्रदर्शन करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कभी इस बात का जिक्र नहीं करेंगे कि 2019 की परीक्षाओं में उनके राज्य में 10 लाख बच्चे हिंदी के पेपर में फेल हो गए। हिमाचल का जिक्र करें तो यहां की जयराम सरकार गत वर्ष नवंबर में धर्मशाला में हुई ‘इन्वेस्टर्स मीट’ के हैंग ओवर से शायद उबर नहीं पाई है। इस कथित ‘तमाशे’ पर करोड़ों बहाए गए, पर परिणाम सबके सामने हैं। हिमाचल में शिमला के आसपास के सरकारी स्कूलों की इमारतें हादसों की प्रतीक्षा कर रही हैं। सभी 12 जिलों में बेशुमार स्कलों में बच्चे धूप, बारिश, बर्फबारी में खुले में बैठकर पढ़ाई करने को बाध्य हैं। मीडिया में छपने वाली रिपोर्टों से न तो अफसरशाही, न ही नेताओं का दिल पसीजता है। सब अपनी-अपनी ‘कंफर्ट जोन’ में मजे में जी रहे हैं। काश देश के टॉप 10 सरकारी स्कूलों में हिमाचल के भी कोई स्कूल का नाम सुशोभित होता। ट्रांसफर इंडस्ट्री में भ्रष्टाचार आम है। फिर वे पढ़ाएं या सर्दियों में धूप सेंके, सरकार को क्या फर्क पड़ता है। ‘टैक्सपेयर्स’ से प्राप्त होने वाले टैक्स का घनघोर दुरुपयोग अगर देखना हो तो देशभर के सरकारी स्कूलों में देखिए। हिमाचल में करीब 16,000 स्कूलों में 65 हजार से अधिक अध्यापक तैनात हैं, लेकिन परिणाम बेहद निराशाजनक। यानी सरकारी स्कूल पढ़ाई, व्यक्तित्व निर्माण, गुणात्मक शिक्षा के केंद्र नहीं अपितु बेशुमार बीएड या जेबीटी कालेजों से डिग्रियां प्राप्त करने वाले अध्यापकों के लिए महज ‘रोजगार’ पाने के संस्थान हैं? याद कीजिए 1998 से 2003 में मध्य हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल की पहली सरकार प्राइमरी स्कूलों के भवनों में नए कमरे जोड़ने व उन्हें बच्चों को बैठने लायक बनाने के लिए एक योजना आरंभ की गई थी। नाम था, ‘सरस्वती बाल विद्या संकल्प योजना’। इसका श्रेय निश्चित रूप से धूमल साहब को दिया जाना चाहिए। 136 करोड़ की योजना से 15,000 कमरे बनने थे। बने शायद 10 हजार। इस योजना की डाक्यूमेंटरी फिल्म बनाने का जिम्मा सूचना विभाग में रहते मुझे सौंपा गया था। जब ‘वर्ल्ड बैंक’ और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यह फिल्म मनाली में दिखाई गई थी। विश्व बैंक ने उपलब्धियों से भरपूर इस योजना में निर्मित स्कूलों को दस्तावेजी फिल्म के माध्यम से देखा था और 50 करोड़ की अतिरिक्त राशि स्वीकृत की थी। लब्बोलुआब यह कि लीक से हटकर कुछ नया या चमत्कार करने के लिए एक बड़ी कल्पनाशीलता की आवश्यकता होती है। वर्तमान हिमाचल सरकार शायद ‘मीडियाकर’ की भूमिका में कार्य कर रही है। अगर वह दिल्ली की तर्ज पर हिमाचल में 10 सरकारी स्कूलों को भी धरातल पर उतार पाए तो शायद मोदी जी सबसे पहले उन्हें देखने के लिए आना चाहेंगे। पर यह एक दिवास्वप्न है जिसे देखने का कोई फायदा नहीं।


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