देव धुनों से देवमयी हुई छोटी काशी

अंतिम जलेब के बाद संपन्न हुआ शिवरात्रि महोत्सव; शहर हुआ सुनसान, जलेब में पहुंचे राज्यपाल पूजा-अर्चना भी की

मंडी –राजदेवता माधोराय की अंतिम जलेब के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि महोत्सव शुक्रवार को संपन्न  हो गई। 22 फरवरी से शुरू हुए शिवरात्रि महोत्सव का  राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने विधिवत रूप से समापन किया। इस अवसर पर रियासतकाल से निकलने वाली राजदेवता माधोराय की जलेब भी पड्डल मैदान तक निकाली गई। राज्यपाल ने खुली जीप में जलेब में शिरकत की, जबकि देवी-देवताओं व देवलुओं ने अंतिम जलेब में नाचते-गाते जोश के साथ भाग लिया। इस दौरान मंडी शहर के सेरी मंच, गांधी चौक, इंदिरा मार्केट व घरों की छत से समस्त देवी-देवताओं के दर्शन किए। राज्यपाल ने राजदेवता माधोराय और भूतनाथ के मंदिर में पूजा-अर्चना करने के पश्चात माधोराय की जलेब में शिरकत की। इस अवसर पर स्थानीय विधायक अनिल शर्मा भी उपस्थित रहे।  अंतिम जलेब में समखेतर होते हुए बालकरूपी बाजार से वापस भूतनाथ मंदिर के बाहर पहुंची।  राज्यपाल ने पड्डल मैदान में शिवरात्रि के दौरान आयोजित समारोह के दौरान विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया, जबकि सुबह के दौरान चोहटा की जातर का आयोजन किया गया, जहां उपायुक्त ऋग्वेद ठाकुर ने  देवी-देवताओं को चदरें भेंट की और उनकी पूजा अर्चना की। 

उत्तरशाल के देव आदि ब्रह्मा ने बांधी ‘कार’

मंडी।  शिवरात्रि महोत्सव के आखिरी दिन समापन से पहले उत्तरशाल के देव आदि ब्रह्मा ने मंडी शहर को सुरक्षा कवच से बांधा। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है, जिसका शिवरात्रि के अंतिम दिन निर्वहन किया जाता है। बताया जाता है कि रियासतकाल दौर में मंडी में कोई बीमारी फैल गई थी। इसके बाद राजा ने सभी देवी-देवताओं से बीमारी का इलाज करने की गुहार लगाई। सभी के मना करने के बाद देवता आदि ब्रह्मा ने मंडी शहर को सुरक्षा कवच से बांधा, तब से मंडी शहर को सुरक्षा कवच जिसे ‘कार’ कहा जाता है, में बांधने की परंपरा चली आ रही है। इसमें देवता पूर शहर की परिक्रमा करते हुए सेरी मंच पहुंचते हैं। हालांकि पहले सेरी मंच पहुंचने पर बकरे की बलि दी जाती थी, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के बाद यह प्रथा बंद कर दी गई है। परिक्रमा के दौरान देवलू आटे को गुलाल की तरह उड़ाते हैं।