धार्मिक आस्था का प्रतीक बाबा बल्ले दा पीर लारथ

By: Feb 22nd, 2020 12:22 am

राजा का तालाब से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा बल्ले दा पीर लोगों की आस्था का केंद्र है। बाबा बल्ले दा पीर लारथ मंदिर में सर्पदंश का इलाज किया जाता है। रोजाना लोग बाबा बल्ले दा पीर मंदिर की परिक्रमा करके अपने कुशल भविष्य की कामना करते हैं। मंदिर में सुबह से शाम तक बाबा के भक्तों का जमावड़ा देखने को मिलता है। मंदिर में लोग अनाज, गुड़, दूध, दही, फल और मिठाइयां चढ़ाते हैं। बाबा की महिमा अपरंपार है, जिसका नजारा हलदून घाटी में बसने वाले लोग भलीभांति जानते हैं। हलदून घाटी कभी लहलहाती फसलों के नाम से जानी जाती थी। पौंग बांध बनने पर इस घाटी का अस्तित्व ही मिट गया। ऐसा माना जाता कि जिस समय हलदून घाटी विख्यात थी,उस समय वहां गहरे नालों की तादाद भी बहुत अधिक थी। नालों में जहरीले सांपों का बसेरा हुआ करता था। जब कोई सांप किसी को काट लेता था, तो पीर बाबा उसका जहर उतार दिया करते थे। सात दशक पहले यह ड्डूहग नामक स्थान पौंग बांध के पानी की लहरों में समा गया। इससे पूर्व पौंग बांध विस्थापित को बाबा बल्ले दा पीर की अपार शक्ति का नजारा अकसर देखने को मिलता था। कुछ समय बाद इस पीर की अद्भुत देवी शक्ति का प्रसाद लोगों को मिलना प्रारंभ हो गया और पीडि़त लोग वहां से एकदम ठीक होकर जाने लगे और बाबा की प्रसिद्धि का प्रचार दिनोंदिन बढ़ता ही गया। मगर सन् 1971 में पौंग डैम बनने के साथ ही बाबा बल्ले दा पीर का स्थान पानी के बिलकुल बीच आ गया। उस समय मंदिर के पुजारी नंदू लाल ने बाबा बल्ले दा पीर पिंडी की स्थापना लारथ में कर दी। बाबा बल्ले दा पीर की लारथ में स्थापना होने के चर्चे होने लगे और खासकर पौंग बांध विस्थापितों में बाबा के प्रति धार्मिक आस्था फिर से ओर भी बढ़ने लगी। यही वजह है कि पौंग बांध विस्थापित इसे अपना पूर्वज मानते हुए रोजाना पूजा-अर्चना करते हैं। बाबा की पूजा वैसे समाज का हर वर्ग करता आ रहा है,मगर पौंग बांध विस्थापितों में खास उत्साह देखने को मिलता है। बल्ले दा पीर लारथ के उपलक्ष्य में हर साल जून माह को विशाल दंगल का आयोजन किया जाता है।

इस छिंज में दूसरे राज्यों के नामी पहलवान अपना जौहर दिखाकर मन चाहे इनाम पाकर जाते हैं। छिंज वाले दिन लोग सुबह से पीर बाबा के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना शुरू कर देते हैं। दोपहर बाद दंगल का आयोजन किया जाता और दूसरी तरफ  दुकानदार अपनी दुकानें सजाकर मेले की रौनक बढ़ाते हैं। मंदिर के पुजारी स्वर्गीय देस राज खट्टा की देखरेख में यह छिंज करवाई जाती थी। मगर उनके देहांत के बाद सपुत्र संजीव खट्टा, संजय खट्टा इस पुनीत कार्य को चलाए हुए हैं। बाबा बल्ले दा पीर नाम से एक रेलवे स्टेशन भी चलाया जा रहा है। इस स्टेशन पर फाटक खोले जाने की मांग जनता दशकों से करती आ रही, मगर आज तक किसी भी सरकार ने लोगों की मांग को पूरा करना मुनासिब नहीं समझा है। सांसद हर बार बाबा बल्ले दा पीर रेलवे स्टेशन पर फाटक खोले जाने को लेकर वोट लेकर चले जाते, लेकिन इसके बावजूद भी फाटक खोलना गंवारा नहीं समझते हैं। पंचायत प्रधान, जिला परिषद सदस्य और ब्लाक समिति सदस्यों ने प्रदेश सरकार से मांग की जिस तरह डक में फाटक खोला गया ठीक वैसी ही व्यवस्था बल्ले दा पीर रेलवे स्टेशन पर खोलकर जनता को इस समस्या से निजात दिलाई जाए।   

   –  सुखदेव सिंह , नूरपुर


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