नहीं भुलाया जा सकता बाल साहित्य में हिमाचल का योगदान

By: Feb 9th, 2020 12:05 am

पवन चौहान

मो.-9418582242

बाल साहित्य लेखन परंपरा में हिमाचल का योगदान-1

अतिथि संपादक : पवन चौहान

बाल साहित्य की लेखन परंपरा में हिमाचल का योगदान क्या है, इसी प्रश्न का जवाब टटोलने की कोशिश हम प्रतिबिंब की इस नई सीरीज में करेंगे। हिमाचली बाल साहित्य का इतिहास उसकी समीक्षा के साथ पेश करने की कोशिश हमने की है। पेश है इस विषय पर सीरीज की पहली किस्त…

विमर्श के बिंदु

* हिमाचली लेखकों का बाल साहित्य में रुझान और योगदान

* स्कूली पाठ्यक्रम में बाल साहित्य

* बाल चरित्र निर्माण में लेखन की अवधारणा

* इंटरनेट-मोबाइल युग में बाल साहित्य

* वीडियो गेम्स या मां की व्यस्तता में कहां गुम हो गई लोरी ?

* प्रकाशन की दिक्कतों तथा मीडिया संदर्भों से जूझता बाल साहित्य

* मूल्यपरक शिक्षा और बाल साहित्य

* बाल साहित्य और बाल साहित्यकार की अनदेखी, जिम्मेदार कौन?

* हिमाचल में बाल पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका

* हिमाचली बाल साहित्य में लोक चेतना

* वर्तमान संदर्भ में बच्चों तक बाल साहित्य की पहुंच

छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर रचे गए साहित्य को ‘बाल साहित्य’ का दर्जा दिया जाता है। अच्छा बाल साहित्य बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में अपनी अहम भूमिका अदा करता है। यह जहां बच्चों का मनोरंजन करता है, वहीं उन्हें शिक्षा, संस्कार और मानव मूल्यों का ज्ञान भी कराता है। हम यह कहें तो गलत न होगा कि बाल साहित्य बच्चों के विकास की नींव है। भारत में कई भाषाओं का समावेश है। हर भाषा में बाल साहित्य की रचना हुई है जो बाल साहित्य को समृद्ध करते रहे हैं। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि बच्चों के लिए लिखी गई कहानी, कविता, बालगीत, नाटक आदि को सिर्फ  बच्चे ही पसंद नहीं करते, अपितु बड़े लोग भी इसका भरपूर आनंद उठाते हैं। इसका सीधा-सा प्रमाण बच्चों के लिए चलाए जा रहे कार्टून कार्यक्रमों को देखकर भी लगाया जा सकता है। इन्हें सिर्फ  बच्चे ही नहीं, बल्कि उनके बड़े भी साथ बैठकर बड़े चाव से देखते हैं। यह बाल साहित्य के प्रति बड़े लोगों के आकर्षण के रूप में लिया जा सकता है। वैसे भी जिस व्यक्ति में बाल सुलभ चंचलता नहीं है, उसे पत्थर के समान ही माना गया है। आज का बाल साहित्य कई विविधताओं से भरा पड़ा है। आज के बाल साहित्य में जहां पशु-पक्षियों, राजा-रानी आदि अन्य विषयों की कहानियां सम्मिलित हैं, वहीं इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वर्तमान समय के यथार्थ को प्रस्तुत करती कहानियां बखूबी पढ़ी जा सकती हैं। यह बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है। बाल साहित्य बच्चों के लिए तीन उद्देश्य लेकर आता है जो मनोरंजन, नैतिक शिक्षा के साथ-साथ उनके विकास की विभिन्न प्रकार की जानकारियां उपलब्ध करवाता है। वैज्ञानिकों की मानें तो बच्चों के मस्तिष्क का बहुत-सा विकास छोटी उम्र में ही हो जाता है। यदि इस उम्र में बच्चों को सही, संपूर्ण और सकारात्मक शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए तो हमें भविष्य में निश्चय ही इसके सुखद परिणाम मिलते हैं जो एक बेहतर समाज के निर्माण में मदद करते हैं। हिमाचल प्रदेश की बात करें तो हिमाचल में बाल साहित्य उस दौर से रचा जा रहा है जब किसी अन्य प्रदेश में इसे रचा जाने लगा था। यह कहना गलत न होगा कि पंडित संतराम वत्स्य और डा. मस्त राम कपूर ऐसे बाल साहित्यकार हुए जिन्होंने हिमाचल में बाल साहित्य की नींव रखी। पंडित संतराम वत्स्य ने जहां पशु-पक्षी, परी कथाओं, लोक कथाओं, नीति कथाओं, धर्म कथाओं तथा पौराणिक कथाओं को अपने बाल लेखन का हिस्सा बनाया, वहीं डा. मस्त राम कपूर ने बाल कहानी, बाल उपन्यास, बाल नाटक तथा बाल कविताओं के माध्यम से बालमन को पकड़ने का प्रयास किया। यह सिलसिला फिर यहां रुका नहीं, बल्कि आगे बढ़ता रहा।

इस कड़ी में और भी नाम जुड़ते चले गए जिनमें राम प्रसाद शर्मा ‘प्रसाद’, महर्षि गिरिधर योगेश्वर, डा. राम मूर्ति वासुदेव ‘प्रशांत’, डा. गौतम शर्मा ‘व्यथित’, डा. सुशील कुमार ‘फुल्ल’, सैन्नी अशेष, डा. पीयूष गुलेरी, डा. प्रत्यूष गुलेरी, कृष्णा अवस्थी, सुदर्शन डोगरा, संसार चंद प्रभाकर, शशिकांत शास्त्री, संतोष शैलजा, किशोरी लाल वैद्य, हेमकांत कात्यायन, डा. मनोहर लाल, रतन चंद रत्नेश, प्रेम सागर कालिया, केशवचंद्र, मोती लाल घई, आशा शैली, प्रेमलता वात्सयायन, हरिकृष्ण मुरारी, यशवीर धर्माणी, सुदर्शन वशिष्ठ, शेर सिंह, प्रभात कुमार, श्रीनिवास जोशी, अमरदेव अंगिरस, डा. आशु फुल्ल, ओम प्रकाश सारस्वत, गुरमीत बेदी, खुशीराम गौतम, डा. कमल के. प्यासा, डा. प्रेमलाल आर्य, गिरीश हरनोट, प्रकाश चंद, शम्मी शर्मा, मामराज शर्मा आदि साहित्यकारों का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। इन बाल साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से बाल साहित्य में नए आयाम जोड़े और बाल साहित्य को समृद्ध किया है। इन साहित्यकारों ने मुख्यतः बाल कविता, बाल गीत, बाल कहानी आदि पर प्रमुखता से अपनी कलम चलाई। इस दौरान कुछ बाल एकांकी, बाल उपन्यास तथा बाल पहेलियों की रचना भी हुई। उपन्यास में डा. मस्त राम कपूर, डा, सुशील कुमार फुल्ल व संतोष शैलजा का नाम प्रमुखता से शामिल किया जा सकता है। डा. सुशील कुमार फुल्ल के नाम पांच उपन्यास हैं जो काफी चर्चित रहे हैं। इस बात का अनुमान यहीं से लगाया जा सकता है कि वे आज भी पाठकों की मांग पर रीप्रिंट हो रहे हैं। बाल एकांकी में पंडित संतराम वत्स्य, सुशील कुमार फुल्ल, रामकृष्ण कौशल, संतराम शर्मा, श्रानिवास जोशी, राजकुमार शर्मा, नरेंद्र अरुण, ओमप्रकाश सारस्वत, कृष्ण चंद्र महादेविया, हेमकांत कात्यायन, रामप्रसाद शर्मा, शशिकांत शास्त्री व त्रिलोक मेहरा आदि का कार्य प्रमुख रहा है। कुछ ऐसे भी साहित्यकार हमारे बीच में हैं जिन्होंने बाल एकांकियों को रचकर उन्हें छोटे-छोटे बच्चों से अभिनीत भी करवाया है। इनमें कृष्ण चंद्र महादेविया व श्रीनिवास जोशी आदि के नाम शामिल किए जा सकते हैं। हिमाचली बाल साहित्य में सैन्नी अशेष जी ने जिस गति और मात्रा में बाल कहानियों को रचा और हिमाचल के बाल साहित्य की बात हिमाचल के बाहर तक पहुंचाई, वह उल्लेखनीय है। उन्होंने 2500 से ज्यादा बाल कहानियों को रचा जिनका अनुवाद विभिन्न भाषाओं में खूब मात्रा में हुआ। बेशक, कुछ वर्षों तक हिमाचल में बाल साहित्य लेखन रुका भी रहा जब ज्यादातर साहित्यकार प्रौढ़ लेखन की ओर मुड़ गए। लेकिन इस खाई को अपनी कविता, कहानी, गीत से पाटने का प्रयास हमारे कुछ लेखक समय-समय पर करते भी रहे। यह बहुत ही सुखद बात है कि पिछले कुछ वर्षों में हिमाचल के बहुत से लेखक बाल साहित्य की तरफ  मुड़े हैं। इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाशीलता से बहुत ही उत्तम और रुचिकर बाल रचनाओं को पाठकों के समक्ष रखा है। वर्तमान में बाल साहित्य लेखन में सक्रिय रचनाकारों में डा. नलिनी विभा ‘नाजली’, डा. प्रत्यूष गुलेरी, रतनचंद रत्नेश, कृष्ण चंद्र महादेविया, पवन चौहान, कंचन शर्मा, अमर सिंह शौल, अनंत आलोक, राजीव त्रिगर्ती, आरके वशिष्ठ, अशोक दर्द, अदिति गुलेरी, कृष्णा ठाकुर, प्रतिभा शर्मा, आशु फुल्ल आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। इस दौरान कुछ बाल उपन्यासों की रचना भी हुई जिसमें लेखिका आशा शैली और डा. गंगा राम राजी के नाम को जोड़ा जाता है। अदिति गुलेरी ने अपनी पीएचडी बाल साहित्य में की है। उनका विषय है ‘हिमाचल में बाल साहित्य : सर्वेक्षण एवं विश्लेषण’। यह हिमाचल के बाल साहित्य पर किया गया पहला शोध कार्य है। इन सब बातों को सामने रखकर हम कह सकते हैं कि हिमाचल में बाल साहित्य पहले भी रचा जाता रहा है और आज भी इसकी रचनाशीलता अपनी प्रगति पर है। बात सिर्फ इतनी भर है कि इन साहित्यकारों को मीडिया में वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। इस वजह से हिमाचल के बाल साहित्य पर किसी ने गौर नहीं फरमाया। यह हिमाचल के बाल साहित्य के लिए सबसे दुखद पहलू रहा है। हिमाचली बाल साहित्य को ग्रहण लगने का एक कारण यह भी रहा कि इस प्रदेश में कोई ऐसी स्थायी बाल साहित्य पत्रिका आज तक नहीं निकल पाई जो हिमाचल का प्रतिनिधित्व कर पाए। बेशक, हिमाचल अकादमी इस विचार की ओर बराबर अग्रसर है। उम्मीद की जा सकती है कि हिमाचल से जल्द ही किसी बाल पत्रिका का आगाज होगा। हिमाचल में बाल साहित्य की भूमि बहुत उर्वरा है। बस, जरूरत है लेखन की इस ऊर्जा को बाल साहित्य की ओर मोड़ने भर की।


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