पर्यटन का बेहतर परिचय

By: Feb 27th, 2020 12:05 am

ट्रैवल इंडस्ट्री हिमाचल को किस दृष्टि से देख रही है, इसका एक नजराना कोलकाता में बेस्ट एडवेंचर टूरिस्ट डेस्टिनेशन अवार्ड के रूप में मिलता है। इंडिया इंटरनेशनल ट्रैवल मार्ट ने प्रदेश को श्रेष्ठ पर्यटन की मंजिल चुना है, तो यह प्रकृति का वरदान है। हालांकि यह कोई पहला पुरस्कार नहीं, फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल के प्रति ट्रैवल मार्केट का आकलन, सैलानियों को बेहतर परिचय दे रहा है। हिमाचल में पर्यटक जिस वजह से आना चाहता है, वह आज भी प्रकृति की देन है। यह दीगर है कि इस आवागमन को प्रदेश ने अपनी प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ा और न ही यह राज्य खुद को पर्यटन के रूप में मुकम्मल कर पाया। असीम संभावनाओं के कुछ झरोखे जरूर खुले, लेकिन अभी भी खुलेमन से पर्यटक के स्वागत के लिए हमने पलक पावड़े नहीं बिछाए हैं। पर्यटक अब घूमने-फिरने की ऐसी मानसिकता है, जो व्यक्तिगत आय का कुछ हिस्सा इसी मद में खर्चने के लिए नई अनुभूति, विश्रांति और चहलकदमी चुनता है। उसे लगातार नई ताजगी, व्यवस्था, आराम व चैन चाहिए। हिमाचल का पर्वतीय मोह एक सुकून की तरह सैलानियों को बुलावा भेजता है, लेकिन पर्यटक स्थलों का अनुभव इसी चैन के खिलाफ कटु अनुभव बन जाता है। दरअसल सोशल मीडिया ने हिमाचल की प्रस्तुति को उबारते हुए सैलानियों के वैश्विक संसार की आंखें खोली हैं। प्राकृतिक नजारों के बीच घूमते सैकड़ों कैमरा और मोबाइल के जरिए शेयर होते हिमाचल ने उस उत्साह को बरकरार रखा है, जिसके कारण पर्यटन एक बाजार सरीखा हो जाता है। बेशक प्रदेश के भीतर पर्यटन बाजार का दोहन तीव्रता से हो रहा है, लेकिन इसी बाजार ने हिमाचली पर्यटन के मूल्य खो दिए। अचानक साहसिक पर्यटन भी उछाल मार कर भीड़ बन गया और हम प्रांजलता को ही नहीं बचा पा रहे हैं। शिकारी देवी या बिजली महादेव तक पहुंचना कितना ट्रैकिंग को अंजाम देना, कितना आस्था को निभाना या कितना भीड़ में शामिल होना है, यह विचार करना होगा। पर्यटन की राह पकड़ते हिमाचल को अपना एक पक्ष बचाए रखना है ताकि आती बहारें प्रकृति को ही बेतरतीब खोद न दें। कम से कम पर्यटन सीजन की मुराद में जिस तरह से इससे जुड़े धंधे बढ़े हैं, वहां हिमाचली पहलुओं का अतिक्रमण स्पष्ट है। क्या खजियार में कभी झील क्षेत्र को बचाया जा सकता है या श्री रेणुका जी में सिकुड़ती जलधाराओं को रोका जा सकता है। तमाम मुख्य मार्गों के किनारों से नजर आती घाटियां अब ऊंचे निर्माण से बाधित हैं, तो हाई-वे पर्यटन के बचाव में टीसीपी का सीधा दखल कब होगा। कौन सा विभाग इतना सक्षम व शक्तिशाली है कि दृश्यावलियां बचा दे। धार्मिक स्थलों पर चढ़ती एडीबी की परत तो देखी जा सकती है, लेकिन मंदिर परिसरों का विस्तार केवल त्वरित राजनीतिक लाभ को ही परिभाषित कर रहा है। हिमाचल में पर्यटन रोमांच को एक मॉडल के रूप में विकसित करने के लिए विभागीय तालमेल, टीसीपी कानून का विस्तार, साडा की नई परिभाषा तथा ग्रामीण पर्यटन को नया स्वरूप देना होगा। सरकार हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक पर्यटक गांव विकसित करने को अगर विधायक निधि के साथ जोड़े तो एक साथ 68 नए स्थल विकसित होेंगे। यह पर्यटक गांव हाई-वे टूरिज्म, मंदिर सर्किट, साहसिक खेल, लोक कला केंद्र, मनोरंजन पार्क, ईको टूरिज्म, वाटर स्पोर्ट्स, साइंस सिटी, हॉट बाजार या फूड मार्ट की तरह विकसित हो सकते हैं। प्रदेश के ग्रामीण विकास, मत्स्य पालन, आईपीएच, पीडब्ल्यूडी, भाषा एवं संस्कृति, पर्यटन, स्थानीय निकाय, वन, कृषि तथा विज्ञान एवं तकनीक जैसे अनेक विभाग अपनी समन्वित योजनाओं के प्रदर्शन से 68 गांव विकसित कर सकते हैं। इसके अलावा हिमाचल के विभिन्न समारोहों, त्योहारों, खेलों, मेलों तथा छिंजों का संचालन अगर योजनाबद्ध तरीके से किया जाए, तो ग्रामीण पर्यटन के कई केंद्र चिन्हित होंगे।


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