पर्यटन बांटते पक्षी

By: Feb 10th, 2020 12:05 am

इन पंखों में कितना पर्यटन,कितना एहसास और कितना रोमांच है, इसका अंदाजा पौंग झील पहुंचे बिना नहीं होगा। एहसास का ऐसा मेला, जो हमारे परिवेश के पर्यावरण को टटोलता और हर साल आते प्रवासी पक्षी अपने हस्ताक्षर कर लौट जाते हैं। प्रवासी पक्षियों की ऐसी आबादी जो उन टापुओं को आबाद कर देती हैं, जहां कभी किसानों की टोलियां चर्चा के चौपाल में जीने की उमंगें बाटती थीं। अब प्रवासी पक्षी यहां लगातार आकर पर्यटन बांट रहे हैं। यहां विज्ञान के नए रिश्ते और विस्थापितों के सामने नए सफर के सारथी ये प्रवासी पक्षी अपने साथ पर्यटन का नया संसार बसा रहे हैं। पक्षियों की तादाद का अपना गणित इस हिसाब से भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है,क्योंकि यह विश्व की जीवंतता और भविष्य की संभावना का रेखांकन है। इसलिए पौंग झील में इस बार एक लाख पंद्रह हजार सात सौ एक पक्षियों का जमावड़ा, अध्ययन की तारीख बड़ी कर देता है और जब 114 प्रजातियां ठहरे हुए सागर के आसपास अपने जीने का सुखद अनुभव बटोरती हैं, तो परिदृश्य का अट्टहास सुना जा सकता है। बेशक इस बार पक्षी महोत्सव की उड़ान भरते हिमाचल के वन्य जीव विभाग ने अपना डेरा जमाया,लेकिन संभावनाओं को विस्तृत आकार देने की जरूरत है। पक्षी अगर पंख फैलाए पौंग बांध में निरंतर उतर रहे हैं, तो उन्हें चिन्हित करते अध्ययन को समझना होगा। यह केवल एक क्षेत्र के सीमांकन में चंद महीनों की मेहमाननवाजी नहीं,बल्कि यहां पूरे विश्व के लिए संदेश व सृष्टि को मुकम्मल करते परिवेश की देखभाल व संरक्षण की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। क्या हम झील के किनारों को केवल एक अवसर की उड़ान देंगे या एक बेहतर मंजिल की तरह प्रवासी पक्षियों का आशियाना संवारेंगे। जो भी हो प्रवासी पक्षियों के सफर के साथ स्थानीय समुदाय का कदमताल भी उसी तालमेल में चाहिए ताकि एवीटूरिज्म के हर पहलू में हिमाचल सशक्त हो सके। इसी के साथ प्रकृति आधारित पर्यटन यानी ईको टूरिज्म की विविधता में मूल्यवान या क्षमतावान पर्यटक के स्वागत का रास्ता बनाना पड़ेगा। ईको टूरिज्म की आर्थिकी में स्थानीय लोगों की भागीदारी नहीं होगी, तो सारे प्रयास केवल बनावटी ही प्रतीत होंगे। पक्षियों के संसार में पौंग बांध क्षेत्र में नई आर्थिकी का संचार जिस तरह की प्राथमिकता चाहता है, उसके यथार्थ में पूर्व प्रस्तावित विकास बोर्ड या प्राधिकरण का गठन आवश्यक हो जाता है। पक्षियों की हिफाजत के मायने केवल वन्य प्राणी संरक्षण का दायरा नहीं हो सकता, बल्कि इसके परिदृश्य में मानवीय संवेदना की नई तहें बिछानी पड़ेंगी। अगर प्रवासी पक्षियों का आगमन केवल कठोर नियमों की सुरक्षा बना रहेगा, तो मानव बस्तियों का संघर्ष अहसयोग की मुद्रा में रहेगा। अतः अवैध शिकार तथा झील के किनारों पर फसल बिजाई रोकने के लिए ऐसा पर्यटन मॉडल विकसित किया जाए, जो स्थानीय समुदाय को अतिरिक्त रोजगार दे। इस लिहाज से पौंग विकास प्राधिकरण का गठन इस सारे क्षेत्र को एक मॉडल की तरह विकसित कर सकता है। पक्षियों के नए संसार में नई आर्थिकी की दिशा एक तो सरकार की तरफ से आवश्यक सुविधाओं, अधोसंरचना तथा स्थानीय समुदाय को जोड़ने से तय होगी, दूसरे पक्षी प्रेमियों की सुरक्षा, मनोरंजन तथा आवश्यक जानकारियां मुहैया करवा कर मुकम्मल होगी। पौंग पक्षी विहार में पर्यटकों के लिए अलग तरह के टूअर तथा उनके अनुभव में नया एहसास डालने के लिए प्रशिक्षित गाइड, सामग्री, ऑडियो-वीडियो शो व क्षेत्रीय जानकारियों के संदर्भ सशक्त करने पड़ेंगे। इसके लिए संवाद, टूअर आपरेटरों को प्रोत्साहन तथा पक्षी प्रेमियों को आकर्षित करने का स्थायी अभियान शुरू करना होगा। बेहतर होगा अगर पौंग विकास प्राधिकरण जैसी एजेंसी के तहत वन्य प्राणी तथा पर्यटन विभाग के विंग जोड़े जाएं तथा अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की भूमिका में क्षेत्रीय जनता को प्रशिक्षित व प्रोत्साहित किया जाए। पौंग जलाशय के वार्षिक कैलेंडर में पक्षी महोत्सव के अलावा, मत्स्य आखेट, मसरूर महोत्सव, जल क्रीड़ा व नौकायन के साथ जुड़े समारोह भी चलते रहें। पक्षियों की प्रजातियों पर अध्ययन व जानकारियों का  एक केंद्र नगरोटा सूरियां महाविद्यालय के साथ स्थापित किया जा सकता है, क्योंकि पक्षी प्रेमी एक अलग तरह के ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान का पर्यटन का प्रसार है। ये अति समृद्ध, अति शिक्षित तथा प्रकृति प्रेमियों का विशिष्ट समाज है और अगर पौंग के पक्षी इन्हें बुला रहे हैं, तो इनके साथ खुशहाली का पैगाम भी नत्थी है।  


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